अनुमान है कि 6 से 14 साल की उम्र वाला हर चार में से एक अफगान बच्चा अपने परिवार की माली मदद के लिए मजदूरी करता है. वे ऐसे कई कामों में लगे हैं जो किसी तरह से भी बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं माने जा सकते.
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Debt traps and poverty drive child labor in Afghanistan
पिछले कई महीनों से अफगानिस्तान कभी बम धमाके तो कभी आत्मघाती हमलों के चलते सुर्खियां बटोर रहा है. अब तक इसमें कई सौ बेकसूर अफगान लोगों की जान जा चुकी है. लेकिन देश की सुरक्षा व्यवस्था सुधरने का नाम ही नहीं ले रही. इन हमलों ने स्थानीय लोगों में निराशा भर दी है. वहीं सरकार भी सुरक्षा के मसले पर विफल साबित हो रही है.
क्या कभी सुधरेगा अफगानिस्तान का हाल
लगातार हो रहे हमले
लगातार हो रहे इन हमलों ने एक बार फिर अफगानिस्तान को दुनिया की निगाहों में ला दिया है. आतंकवादी गुट तालिबान और इस्लामिक स्टेट (आईएस) समय-समय पर इन हमलों की जिम्मेदारी लेते रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ अफगानिस्तान सरकार पर भी दबाव है कि वह तालिबान और आईएस के कब्जे वाले इलाकों में अपना शासन कायम कर सके.
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आक्रामक नीति
हाल में ही तालिबान ने अफगानिस्तान के भीतर बेहद ही आक्रामक नीति अपनाने की घोषणा की. साथ ही राष्ट्रपति के साथ शांति वार्ता के प्रस्ताव को भी सिरे से खारिज कर दिया. आतंकवादी गुट अफगानिस्तान में सख्त इस्लामिक कानूनों को लागू करने के पक्षधर हैं. उनका आक्रामक कैंपेन अमेरिका की कड़ी सैन्य रणनीतियों का उत्तर है.
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ट्रंप की अफगान नीति
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने पिछले साल अफगानिस्तान के लिए नई रणनीति तय की थी. इसके तहत अफगान सुरक्षा बलों के प्रशिक्षण और मदद के लिए 11000 अतिरिक्त शीर्ष अमेरिकी सैनिकों की तैनाती की बात कही गई थी. इसके साथ ही ट्रंप ने तालिबान के खिलाफ लड़ाई में अफगान सैनिकों को समर्थन देने की प्रतिबद्धता जताई थी. साथ ही यह भी कहा था कि अफगानिस्तान में जरूरत के मुताबिक अमेरिका की उपस्थिति बनी रहेगी.
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अफगान शांति प्रक्रिया
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने इस साल फरवरी में तालिबान के सामने शांति वार्ता का प्रस्ताव रखा था. लेकिन तालिबान ने इस ओर कोई रुचि नहीं दिखाई. और, इसे एक षड्यंत्र कहकर खारिज कर दिया. विशेषज्ञों के मुताबिक कोई भी आतंकी समूह उस वक्त बातचीत में शामिल नहीं होगा जब जमीन पर उसकी पकड़ मजबूत बनी हुई हो.
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पाकिस्तान की भूमिका
अफगानिस्तान के धमाके, पाकिस्तान पर भी दबाव बढ़ा रहे हैं. अफगानिस्तान और अमेरिका दोनों ही पाकिस्तान पर आतंकियों को आश्रय देने का आरोप लगाते रहे हैं. लेकिन पाकिस्तान लगातार इन आरोपों का खंडन करता रहा है.
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तालिबान के इतर
तालिबान के अलावा अफगान लड़ाकों के सरदारों की भी देश की राजनीति में अहम भूमिका है. पिछले साल, हिज्ब-ए-इस्लामी के नेता गुलबुद्दीन हिकमतयार 20 साल देश से बाहर रहने के बाद अफगान राजनीति में वापस लौ़टे हैं. साल 2016 में अफगान सरकार ने हिकमतयार के साथ इस उम्मीद के साथ समझौता किया था कि ये समूह काबुल के साथ बेहतर संबंध रखेंगे.
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असक्षम सरकार
अफगानिस्तान में सत्ता के लिए जारी इस लड़ाई का असर राष्ट्रपति की कुर्सी पर भी हो रहा है. मौजूदा राष्ट्रपति अशरफ गनी की लोकप्रियता और स्वीकार्यता जनता के बीच लगातार घट रही है. वहीं अफगान सरकार में बढ़ते भ्रष्टाचार और भीतरी खींचतान के चलते भी आतंकवाद के खिलाफ सरकार की मुहिम कमजोर पड़ी है.