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दलित पिटते हैं, गाली खाते हैं और गोली भी: रिपोर्ट

२९ सितम्बर २०१६

सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर तमाम प्रयासों के बावजूद दलितों पर अत्याचार की घटनाएं लगातार सामने आती रहती हैं. महाराष्ट्र सहित देश के कई राज्यों में पिछले साल दलितों के विरुद्ध हिंसा की घटनाओं में वृद्धि दर्ज की गई है.

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Indien Wahlen Archiv 15.01.2014 BSP
तस्वीर: DW/S. Waheed

जहां महाराष्ट्र में इन दिनों मराठा समुदाय दलित उत्पीड़न रोकथाम कानून के दुरुपयोग का हवाला देते हुए इसे रद्द करने की मांग कर रहा है वहीं ताजा आंकड़े बताते हैं कि राज्य में दलित उत्पीड़न की स्थिति में कोई सुधार नहीं हो पाया है. ताजा आंकड़ों के मुताबिक पिछले डेढ़ साल में दलितों के विरुद्ध हिंसा के लगभग साढ़े तीन हजार मामले दर्ज किए गए.

जारी हैं दलितों के खिलाफ अत्याचार

इस साल के शुरुआती 6 महीने में ही महाराष्ट्र में 1100 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं. महाराष्ट्र के गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2015 में दलितों की हत्या के 97 जबकि बलात्कार के 331 मामले दर्ज किए गए. वहीं, इस साल जून के अंत तक बलात्कार के 142 और हत्या के 36 मामले सामने आ चुके हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के अनुसार 2015 में राज्य में अनुसूचित जाति के सदस्यों के खिलाफ हुए अपराध के 1800 से ज्यादा मामले दर्ज किये गए जबकि अनुसूचित जनजाति के खिलाफ होने वाले अपराधों की संख्या तब 483 थी.

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वैसे उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार और आंध्र प्रदेश के मुकाबले महाराष्ट्र में दलित उत्पीड़न के मामले काफी कम हैं. 2015 में उत्तर प्रदेश में 8 हजार से ज्यादा मामले सामने आए जबकि राजस्थान में लगभग 7 हजार दलित उत्पीड़न के मामले दर्ज किए गए. दलित उत्पीड़न के लिहाज से बिहार की स्थिति भी अच्छी नहीं है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार यहां दलित उत्पीड़न के लगभग साढ़े छह हजार मामले दर्ज किए गए. गुजरात में दलित विरोधी घटनाओं में पिछले कुछ महीनों में तेजी आई है. खासतौर पर उना हमले के बाद मरे हुए जानवरों को उठाने से इनकार करने पर दलितों की पिटाई के मामले सामने आए हैं.

खैरलांजी हत्याकांड के 10 साल

29 सितम्बर 2006 को महाराष्ट्र के खैरलांजी में एक दलित परिवार के चार लोगों की क्रूरतापूर्ण हत्या कर दी गई थी. हत्या से पहले चारों सदस्यों को निर्वस्त्र कर घुमाया और उसके बाद उनके अंग काट डाले गए थे. इसके बाद पूरे राज्य में भड़के दलित आन्दोलन के बाद सरकार ने दलितों के विरुद्ध अत्याचार के मामलों को गंभीरता से लेने और त्वरित कार्रवाई का भरोसा दिलाया था. लेकिन पिछले 10 साल का रिकॉर्ड देखने से ऐसा नहीं लगता कि दलितों के विरुद्ध अपराध करने वालों में कानून का कोई भय है. दलित समुदाय के विजय वाहने कहते हैं कि सरकार दलित उत्पीड़न को रोक पाने में असफल रही है. विजय कहते हैं कि खैरलांजी जैसे मामले होते रहते हैं लेकिन दलित अब भी ऊंची जातियों के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाने की हिम्मत नहीं करता.

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उत्पीड़न रोकथाम कानून पर सवाल

महाराष्ट्र में चल रहे मराठा समुदाय के आन्दोलन की आड़ में दलित उत्पीड़न रोकथाम कानून के समीक्षा की बात कही जा रही है. मराठा समुदाय की मांग है कि इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है. केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री रामदास आठवले की उपयोगिता और आवश्यकता जताते हुए कहा है कि वह दलित उत्पीड़न कानून को रद्द नहीं होने देंगे. वह कहते हैं, "यदि आवश्यक संशोधन सुझाया गया, तो मंत्रालय निश्चित ही उस पर विचार करेगा." वहीं मराठा आन्दोलन को अपना समर्थन देने वाले एनसीपी मुखिया शरद पवार ने भी साफ किया है कि वह दलित उत्पीड़न कानून के खिलाफ नहीं बल्कि कानून के दुरुपयोग को रोके जाने के पक्ष में हैं. उन्होंने कहा, "दलित इस कानून का दुरुपयोग नहीं करते बल्कि आपसी रंजिश के चलते सवर्ण ही एक दूसरे के खिलाफ किसी दलित का इस्तेमाल कर एट्रोसिटी ऐक्ट का दुरुपयोग करते हैं."

दलित युवा अनिल जाधव कहते हैं कि दलित समुदाय के जो भी अपराधी है उनको कड़ी सजा दी जानी चाहिए लेकिन कुछ दलितों के अपराध के आधार पर कानून में बदलाव की बात करना उचित नहीं है. दलित समुदाय को लगता है कि इस कानून की जरूरत अभी भी है. इस कानून के सहारे उन्हें अपनी शिकायत दर्ज कराने में थोड़ी आसानी होती है. दलित उत्पीड़न के मामले को उजागर करने में यह कानून सहायक साबित हुआ है.

रिपोर्ट: विश्वरत्न