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रिसर्च: देर होने पर भी काम करती है एस्ट्राजेनेका

२९ जून २०२१

ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में पता चला है कि एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की दूसरी और तीसरी खुराक में देर होने के बावजूद इसकी वायरस से बचाने की क्षमता बनी रहती है. शोध पर अभी अन्य वैज्ञानिकों की टिप्पणियां आनी बाकी हैं.

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तस्वीर: Ajit Solanki/AP/dpa/picture alliance

सोमवार को जारी हुई ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी की शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि पहली और दूसरी खुराक के बीच 45 हफ्ते का अंतराल भी इम्यूनिटी बनाए रखने में कामयाब रहा. मुख्य शोधकर्ता ऐंड्रयू पोलार्ड कहते हैं, "जिन देशों में वैक्सीन की सप्लाई कम है, उनके लिए यह सूचना राहत देने वाली होनी चाहिए क्योंकि उन्हें शायद इस बात की फिक्र है कि वे अपनी जनता को दूसरी खुराक नहीं दे पा रहे हैं.”

शोधकर्ताओं ने यह भी कहा है कि तीसरी खुराक को बूस्टर डोज के तौर पर इस्तेमाल करने के नतीजे भी सकारात्मक मिले हैं. शोध से जुड़ीं टेरेसा लाम्बे बताती हैं, "अभी यह नहीं पता है कि इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए या वायरस के विभिन्न स्वरूपों के खिलाफ इम्यूनिटी के लिए तीसरी खुराक की जरूरत होगी या नहीं लेकिन जरूरत पड़ती है तो नतीजे सकारात्मक रहे हैं.”

फिलहाल 160 देश एस्ट्राजेनेका वैक्सीन का ही इस्तेमाल कर रहे हैं. कम दाम और लाने-ले जाने में सुगमता के कारण इस वैक्सीन को प्राथमिकता दी गई है. हालांकि कुछ कारणों से इस वैक्सीन पर लोगों का भरोसा गिर गया था. बहुत कम संख्या में ही सही, लेकिन ऐसे मामले सामने आए थे जिनमें एस्ट्राजेनेका वैक्सीन के बाद मरीजों में खून के थक्के बने.

मिला-जुलाकर वैक्सीन देना भी कारगर

ऑक्सफर्ड की ही एक अन्य रिसर्च में यह पाया गया है कि फाइजर-बायोएनटेक और एस्ट्राजेनेका वैक्सीन को मिलाकर देना भी कारगर है. शोधकर्ताओं ने पाया कि दो खुराकों के मिश्रण ने वायरस के खिलाफ ज्यादा एंटीबॉडी बनाए.

वैज्ञानिकों ने मरीजों को फाइजर-बायोएनटेक और एस्ट्राजेनेका की दो खुराकों का अलग-अलग मिश्रण दिया. यानी कुछ मरीजों को दोनों खुराक एक ही वैक्सीन की दी गईं जबकि कुछ को पहली खुराक फाइजर और दूसरी एस्ट्राजेनेका की, जबकि कुछ को पहली खुराक एस्ट्राजेनेका और दूसरी फाइजर की दी गई.

शोधकर्ताओं ने एंटीबॉडी और टी-सेल की प्रतिक्रिया दोनों का ही अध्ययन किया. एंटीबॉडी वायरस को कोशिकाओं को संक्रमित करने से रोकते हैं जबकि टी-सेल पहले से ही संक्रमित हो चुकीं कोशिकाओं को खोजकर उन्हें नष्ट कर देते हैं.

रिसर्च में पाया गया कि फाइजर-बायोएनटेक की दो खुराकों ने एंटीबॉडी बनाने में सबसे जोरदार प्रतिक्रिया दी. लेकिन जब फाइजर और एस्ट्राजेनेका की एक-एक खुराक दी गई, तो एस्ट्रेजेनेका की ही दोनों खुराकों के मुकाबले यह ज्यादा असरदार साबित हुई. फाइजर की पहली और एस्ट्राजेनेका की दूसरी खुराक देने पर टी-सेल की प्रतिक्रिया सबसे अच्छी रही.

नतीजे बहुत अहम नहीं

यह परीक्षण 830 लोगों पर किया गया, जिन्हें चार हफ्ते के अंतराल पर खुराक दी गई थीं. इस अध्ययन पर भी अन्य वैज्ञानिकों की टिप्पणियां आनी बाकी हैं.

एस्ट्राजेनेका वैक्सीन को ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एस्ट्राजेनेका फार्मा कंपनी के साथ मिलकर विकसित किया है. यूनिवर्सिटी का कहना है कि इस अध्ययन के नतीजे टीकाकरण में लचीलापन ला सकते हैं. हालांकि उन्होंने चेतावनी दी है कि ये नतीजे इतने अहम नहीं हैं कि इनके आधार पर टीकाकरण के बारे में पहले से दिए गए निर्देशों का पालन ही ना किया जाए.

वैक्सीन के परीक्षणों में शामिल रहे यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मैथ्यू स्नेप ने कहा, "यह उत्साहजनक है कि खुराकों को मिला-जुलाकर देने से एंटीबॉडी और टी-सेल की सकारात्मक प्रतिक्रिया रही है. लेकिन जब तक कि बहुत बड़ी वजह ना हो, वैसा ही करते रहना चाहिए जो साबित हो चुका है कि वाकई काम करता है.”

वीके/एए (एएफपी, रॉयटर्स)

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