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कोविड-19 का टीका: लैब से आप तक कैसे पहुंचेगा

आशुतोष पाण्डेय
२८ अगस्त २०२०

तमाम चुनौतियां पार कर कोविड-19 वायरस का टीका बनने के बाद भी उसे फार्मा कंपनियों की लैब से आम लोगों तक पहुंचाने का सफर कम कठिन नहीं होगा. डिलीवरी कंपनियां इसके लिए बहुत खास तैयारी कर रही हैं.

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Niederlande | Gefrieranlagen von UPS
तस्वीर: DW/A. Pandey

लंबे लंबे समानांतर कतारों में खड़े दर्जनों दो मीटर ऊंचे फ्रीजर में लगातार -80 डिग्री सेल्सियस तापमान बरकरार रखा जाता है. इन्हीं में कोविड-19 के टीके रखे जाएंगे. यहीं से होकर टीके आगे लोगों तक का सफर तय करेंगे. लगभग फुटबॉल के फील्ड जितनी बड़ी ऐसी एक स्टोरेज फेसिलिटी यूरोप के नीदरलैंड में अमेरिकी लॉजिस्टिक्स कंपनी यूपीएस ने बनाई है. एक बार टीके बन जाएं तो यहां से उन्हें सुरक्षित तरीके से पूरे विश्व में पहुंचाने की तैयारी तेजी से चल रही है.

ऐसी तैयारियां केवल डिलीवरी कंपनियों के अलावा विश्व स्तर पर तमाम सरकारें, अंतरराष्ट्रीय संगठन और फार्मा कंपनियां भी कर रही हैं. महामारी की शुरुआत से अब तक ये सब टीके के विकास, उत्पादन और सप्लाई चेन स्थापित करने में कई अरब डॉलर का निवेश कर चुके हैं. नीदरलैंड में स्थित यूपीएस हेल्थकेयर के प्रमुख अनूक हेसेन बताते हैं, "हम अपनी क्षमताओं और अनुभव का इस्तेमाल कर और बड़ा निवेश कर इसकी तैयारी कर रहे हैं ताकि कोविड वायरस से लड़ने में दवा उद्योग की मदद कर सकें."

Niederlande | Gefrieranlagen von UPS
डीप फ्रीजर में बहुत नीचे के तापमान पर वैक्सीन को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है.तस्वीर: DW/A. Pandey

जर्मनी और अमेरिका में यूपीएस के एयर कार्गो के पास ही ऐसे सेंटर बनाए जा रहे हैं. केवल इन दो सेंटरों में ही ऐसे करीब 600 फ्रीजर रखे जाएंगे. ऐसे हर एक फ्रीजर में वैक्सीन के 48,000 डोज रखे जा सकते हैं. इसके अलावा और भी संवेदनशील वैक्सीन को स्टोर करने के लिए इन्हीं सेंटरों में डीप फ्रीजर भी बनाए जा रहे हैं. दुनिया में कुछ जगहों पर ऐसे संवेदनशील टीकों पर भी काम चल रहा है जो मैसेंजर-आरएनए पर आधारित हैं और शरीर में जाकर कोरोना वायरस जैसा प्रोटीन बना सकते हैं. यूपीएस सेंटर के हेसेन ने बताया कि कंपनी कई बड़ी बड़ी फार्मा कंपनियों के साथ बातचीत कर रही है. फिलहाल अमेरिकी फार्मा कंपनियां मॉडर्ना और फाइजर, जर्मन कंपनियां बायोएनटेक और क्योरवैक मैसेंजर आरएनए आधारित ऐसी वैक्सीन पर काम कर रही हैं.

कोरोना के टीके का सफर

तैयार होने के बाद लैब से टीका विशेष, इंसुलेटेड डिब्बों में निकलेगा. टीके को ठंडा रखने के लिए इन डिब्बों में सूखी बर्फ या जमी हुई कार्बन डाय ऑक्साइड भरी होगी. फिर इन डिब्बों को यूपीएस केन्द्र जैसे फ्रीजर फार्म में लाया जाएगा. वहां इन डिब्बों को सावधानी से खोलकर स्ट्रेचर जैसे मेज पर एक मुलायम सतह पर रखा जाएगा, जहां से यह फ्रीजर में रख दिए जाएंगे. डीडब्ल्यू से खास बातचीत में फ्रीजर फार्म के प्रमुख हेसेन ने बताया,  "इन फ्रीजर फार्मों में कोई बिना पीपीई किट पहने काम नहीं कर सकता. हमारे कर्मचारियों को सही गियर, दस्ताने, चश्मे वगैरह मुहैया कराए जाएंगे. इनके बिना कोई इतने ठंडे तापमान में चल नहीं पाएगा."

आगे का सफर ऐसा होगा कि जैसे ही ग्राहकों की ओर से टीके की मांग आएगी, टीकों को फिर से वैसे ही इंसुलेटेड डिब्बों में सूखी बर्फ के साथ डालकर पैक किया जाएगा. इन डिब्बों में टीका अधिक से अधिक 96 घंटों तक सही तापमान पर रखा जा सकता है.  जिन कमरों में इन्हें पैक किया जाएगा, जरूरत पड़ने पर वहां का तापमान -20 डिग्री तक ठंडा रखा जा सकता है. वैसे आम तौर पर ज्यादातर तरह के मौजूदा टीकों के लिए 2 से 8 डिग्री तक का तापमान आदर्श माना जाता है. पैक किए गए टीकों के डिब्बों को फिर विमानों के द्वारा सुरक्षित तरीके से दुनिया के किसी भी छोर तक पहुंचाया जाएगा.

Niederlande | Gefrieranlagen von UPS
2 से 8 डिग्री सेल्सियस पर रखे जा सकने वाले टीके ऐसे खुले सेंटरों में रखे जा सकते हैं.तस्वीर: DW/A. Pandey

फिलहाल तो विश्व भर में किसी भी तरह कोविड-19 का टीका बनाने की प्रतिस्पर्धा चल रही है. इस बारे में बहुत कम जानकारी मिल पा रही है कि ये टीके कितने नाजुक या स्थिर होंगे और उन्हें लोगों तक पहुंचाने में कितनी सावधानी से पेश आना होगा.  हालांकि आने वाली चुनौती के लिए तैयार रहने की कोशिश में यूपीएस जैसी कंपनियां वैक्सीन के ट्रायल फेज में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं और अमेरिकी शहर एटलांटा में उनकी एक यूनिट बहुत सख्त दिशा निर्देशों के तहत क्लीनिकल ट्रायल के लिए वैक्सीन पहुंचाने का काम कर रही है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, इस समय विश्व में करीब 170 टीकों पर काम चल रहा है, जिनमें से 30 का क्लीनिकल ट्रायल चल रहा है.  इनमें से सभी टीके ऐसे नहीं हैं जिन्हें -80 डिग्री सेल्सियस पर स्टोर करने की जरूरत है. लेकिन स्टोरेज कंपनियों की कोशिश है कि चाहे जैसी भी वैक्सीन बने उसे लोगों तक पहुंचाने में स्टोरेज की कमी के कारण देर नहीं होनी चाहिए.

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