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समाज

वैज्ञानिक का 'बौद्धिक आजादी' का दावा खारिज

१३ अक्टूबर २०२१

ऑस्ट्रेलिया के सर्वोच्च न्यायालय ने एक वैज्ञानिक का 'बौद्धिक आजादी' का दावा खारिज करते हुए उन्हें यूनिवर्सिटी से बर्खास्त किए जाने को सही ठहराया है. 2018 में इस विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक को नौकरी से निकाल दिया गया था.

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तस्वीर: Marco Brivio/dpa/picture-alliance

ऑस्ट्रेलिया के सर्वोच्च न्यायालय ने जेम्स कुक यूनिवर्सिटी द्वारा एक वैज्ञानिक पीटर रिड को बर्खास्त किए जाने को सही ठहराया है. ऑस्ट्रेलिया का सर्वोच्च न्यायालय हाई कोर्ट कहलाता है.

हाई कोर्ट ने सार्वजनिक रूप से दिए बयानों को रिड की 'बौद्धिक आजादी' मानने से इनकार कर दिया. क्वीन्सलैंड यूनिवर्सिटी के पीटर रिड को 2018 में बर्खास्त किया गया था. उन्होंने कहा था कि ग्रेट बैरियर रीफ पर पर्यावरण परिवर्तन के प्रभाव को वैज्ञानिक बढ़ा चढ़ाकर पेश करते हैं.

रिड के इस बयान का पर्यावरणविदों ने खासा विरोध किया था जिसके बाद टाउन्सविल शहर में स्थित यूनिवर्सिटी ने उन्हें दुर्व्यवहार का दोषी माना और बर्खास्त कर दिया. रिड ने इस फैसले को अदालत में चुनौती दी थी.

अभिव्यक्ति की आजादी अलग है

बुधवार को हाई कोर्ट ने मामले में अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि नौकरी के कॉन्ट्रैक्ट में जो 'बौद्धिक आजादी' की बात कही गई है, वह 'अभिव्यक्ति की आम आजादी' नहीं है, इसलिए उस प्रावधान के तहत रिड की बर्खास्तगी को गलत नहीं ठहराया जा सकता.

कोर्ट के इस फैसले को अलग-अलग नजरिए से परखा जा रहा है. ऑस्ट्रेलिया के शिक्षा मंत्री एलन टज ने कहा कि वह विशेषज्ञों से सलाह करेंगे कि इस फैसले का यूनिवर्सिटी सेक्टर में नौकरियों पर क्या असर हो सकता है.

टज ने कहा, "वैसे तो मैं हाई कोर्ट के फैसले का सम्मान करता हूं लेकिन मैं इस बात को लेकर चिंतित हूं कि नौकरी के कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों का हमारे विश्वविद्यालयों में अभिव्यक्ति की आजादी पर और अकादमिक आजादी पर बुरा प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए.”

पीटर रिड ने 27 साल तक जेम्स कुक यूनिवर्सिटी के लिए काम किया था. वह फिजिक्स विभाग के अध्यक्ष रहे थे और दुनिया के जाने-माने शोधकर्ताओं में गिने जाते हैं. वैज्ञानिकों के लिए यूरोप के सोशल नेटवर्क रिसर्चगेट में पीटर रिड को दुनिया के टॉप 5 प्रतिशत शोधकर्ताओं में गिना जाता है.

कई साल चला विवाद

रिड विवाद में तब फंसे जब 2015 में उन्होंने एक पत्रकार को भेजे ईमेल में आरोप लगाया कि दुनिया के सबसे बड़े कोरल पार्क का प्रबंधन करने वाली ‘ग्रेट बैरियर रीफ मरीन पार्क अथॉरिटी' ने कुछ वैज्ञानिक आंकड़ों का हेरफेर किया है ताकि ग्रेट बैरियर रीफ के खतरे को बड़ा बताया जा सके.

देखें, प्रलय से पहले पर्यटन

2017 में स्काई न्यूज को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने यूनिवर्सिटी से ही जुड़ीं दो संस्थाओं ऑस्ट्रेलियन रिसर्च काउंसिल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर कोरल रिसर्च और ऑस्ट्रेलियन इंस्टिट्यूट ऑफ मरीन साइंस की आलोचना की. इसी के बाद उन पर प्रशासनिक कार्रवाई हुई.

यूनिवर्सिटी ने अदालत के फैसले का स्वागत किया है जिसमें कहा गया कि रिड पर दुर्व्यवहार के 18 आरोपों को 'बौद्धिक आजादी' के नाम पर सही नहीं ठहराया जा सकता. एक बयान में यूनिवर्सिटी ने कहा, "जेम्स कुक यूनिवर्सिटी ने हमेशा यह स्पष्ट किया है कि वह बौद्धिक खोजबीन और अध्यापकों की अकादमिक वह बौद्धिक आजादी का समर्थन करती है.”

खतरे में है ग्रेट बैरियर रीफ

रिड के विचारों को प्रकाशित करने वाले मेलबर्न स्थित एक रूढ़िवादी थिंक टैंक इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक अफेयर्स ने अदालत के फैसले पर निराशा जताई है. एक बयान में इंस्टीट्यूट ने कहा, "यह फैसला दिखाता है कि ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालय संकट में हैं और देश पर सेंसरशिप की संस्कृति हावी हो रही है. रिड के वकीलों ने अभी तक फैसले पर टिप्पणी नहीं की है.

यूनेस्को ने इसी साल ऑस्ट्रेलिया की ग्रेट बैरियर रीफ को खतरे में पड़ीं वैश्विक धरोहरों की सूची से निकालने की सलाह दी थी. इसके लिए समुद्र के बढ़ते तापमान को लेकर जरूरी कदम ना उठाए जाने को जिम्मेदार बताया गया था.

ग्रेट बैरियर रीफ को समुद्र के बढ़ते तापमान का भारी नुकसान हुआ है. 2016, 2017 और पिछले साल के नकुसान से दो तिहाई कोरल नष्ट हो चुके हैं.

वीके/एए (एपी)

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