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समाज

100 दिन बाद जर्मनी में कैसे काबू आया कोरोना

विलियम नोआ ग्लूक्रॉफ्ट
६ मई २०२०

जर्मनी के पड़ोसी देशों इटली और फ्रांस में कोरोना ने बड़ा कहर बरपाया. लेकिन जर्मनी ने इस महामारी के असर को कम कर दिया है. जर्मनी के 80 प्रतिशत कोरोना वायरस के मरीज ठीक हो चुके हैं. यहां करीब 7,000 लोगों की जान गई है.

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Deutschland Gross-Umstadt | Bietjungfer mit Mundschutz
तस्वीर: picture-alliance/Joaquim Ferreira

जर्मनी में कोरोना वायरस का पहला मरीज म्यूनिख शहर के बाहरी इलाके में मिला था. इस मरीज के सामने आने पर सरकार ने जो कदम उठाए वो पूरे देश में आए 1 लाख 60 हजार से ज्यादा पॉजिटिव मामलों के लिए एक मानक प्रक्रिया बन गई. टेस्ट, आइसोलेट और ट्रेस यानी जांच, मरीज को अलग करना और उसके संपर्कों की जांच करना.

इस विकेंद्रीकृत लेकिन व्यापक तरीके से जर्मनी ने अपने यहां मृत्युदर को इतना कम रखने में सफलता पाई. इसके लिए जर्मनी की अंतरराष्ट्रीय मीडिया में तारीफ हो रही है. जर्मनी के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि कोरोना के प्रकोप के दौरान किसी भी समय जर्मनी की स्वास्थ्य व्यवस्था पर जरूरत से ज्यादा बोझ नहीं आया. इसके लिए जर्मनी ने खास रणनीति से काम किया जो काम आई.

पहले मामले के सामने आने के दो दिन बाद 29 जनवरी को जर्मन स्वास्थ्य मंत्री जेंस स्पान ने कहा था,"हम अलर्ट पर हैं और एकदम तैयार हैं. हम लगातार यूरोपीय और अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों के साथ-साथ अपने राज्यों के भी लगातार संपर्क में हैं."

एक नए तरह का नॉर्मल

फरवरी में धीरे-धीरे जिंदगी बदलने लगी. तब तक अधिकतर संक्रमित मामले विदेशों से लौटकर आ रहे लोगों में ही सामने आ रहे थे. यहां पर चीन की तरह लॉकडाउन करना अकल्पनीय लग रहा था. विशेषज्ञों का मानना था कि एक लोकतंत्र में इस तरह के कदम उठाना मुश्किल होगा. बिजनेस और सीमाओं को खुला रखा गया. फरवरी के मध्य में बर्लिन में अंतरराष्ट्रीय बर्लिन फिल्म महोत्सव हुआ जहां पर दूसरे देशों से बड़ी संख्या में लोग आए. वहां पर सैकड़ों फिल्मों की स्क्रीनिंग हुई और कई पार्टियां भी चलीं.

रॉबर्ट कॉख इंस्टीट्यूट फॉर पब्लिक हेल्थ ने तब कहा कि जर्मनी के लिए खतरे का स्तर कम है. संस्थान के निदेश लोथर विलेर ने 24 फरवरी को कहा था कि कोरोना वायरस जर्मनी में आएगा लेकिन यहां इसका विस्फोट नहीं होगा बल्कि ये धीरे-धीरे फैलेगा और कुछ इलाकों तक ही सीमित रहेगा. लेकिन मार्च के आते ही यह बदलने लगा. रॉबर्ट कॉख इंस्टीट्यूट ने खतरे के स्तर को कम से बढ़ाकर मध्यम कर दिया. इसके बाद कई सारे बड़े आयोजनों को रद्द करना शुरू किया गया. सबसे पहले बर्लिन इंटरनेशनल ट्रेवल ट्रेड शो को रद्द किया गया.

बर्लिन के शेरिटे टीचिंग हॉस्पिटल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी उलरिष फ्रेई ने बताया कि बर्लिन का पहला कोरोना वायरस का मामला इत्तेफाक से पहचान में आया. इस विश्व प्रसिद्ध अस्पताल ने दुनिया में सबसे पहले कोरोना वायरस का डायग्नोस्टिक टेस्ट विकसित किया. इसके बाद तय किया गया कि हर फ्लू जैसे लक्षण वाले वयक्ति का टेस्ट किया जाएगा. अगर ऐसा नहीं किया जाता तो शायद यहां पर भी इटली जैसा हाल हो सकता था जहां हजारों लोगों की मौत हो गई. इतनी सावधानी के बावजूद इस अस्पताल को अपनी आपातकालीन सुविधा को बंद करना पड़ा और अपने स्टाफ के कई लोगों को सावधानी के तौर पर घर भेज दिया.

मैर्केल बोलीं और सब सतर्क हो गए

11 मार्च को जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने कोरोना वायरस के मामले पर अपनी बात रखी. 11 मार्च को ही डब्ल्यूएचओ ने कोविड-19 को एक वैश्विक महामारी घोषित किया था. मैर्केल ने कहा कि जर्मनी की 60 से 70 प्रतिशत आबादी कोरोना वायरस की चपेट में आ सकती है. यह कोई मनमाना आंकड़ा नहीं था. बॉन के यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल ने अपनी रिसर्च में ये आंकड़ा दिया था. इस रिसर्च में कहा गया कि कोरोना वायरस के मरीजों का आंकड़ा आधिकारिक संख्या से 10 गुना ज्यादा हो सकता है. हालांकि यह सुनने में थोड़ा अजीब था. इस आंकड़े के लिए मैर्केल की आलोचना भी हुई. हालांकि कई लोगों ने उनकी स्पष्टवादिता के लिए उनकी तारीफ की.

इसके बाद धीरे-धीरे चीजें बदलनी शुरू हो गईं. स्कूल और सीमाएं बंद कर दी गईं. सामान्य जनजीवन असाधारण रूप से धीमा होने लगा. मैर्केल ने 18 मार्च को देश के नाम संबोधन दिया. ये सामान्य बात नहीं थी क्योंकि मैर्केल इस तरह देश के संबोधन नहीं देती हैं. उन्होंने इस महामारी को दूसरे विश्वयुद्ध के बाद की सबसे बड़ी चुनौती बताया. अत्याचार और उथल-पुथल के इतिहास वाले देश में ये बात बड़ी महत्वपूर्ण थी. इसका मकसद लोगों के बीच डर पैदा करने की बजाय सोशल डिस्टैंसिंग के नियमों का पालन करने की अपील थी.

जर्मन सरकार द्वारा उठाए गए इन कदमों के बाद आए ओपिनियन पोल में उनकी रेटिंग बढ़ने लगी. पिछले कुछ महीनों से मैर्केल और उनकी पार्टी की लोकप्रियता में लगातार कमी आ रही थी. लेकिन अब नए ओपिनियन पोल में मैर्केल की लोकप्रियता 80 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई.

जर्मनी के बाहर के कई विश्लेषकों ने भी मैर्केल की प्रशंसा की. उन्होंने मैर्केल को जर्मनी की 'सांइटिस्ट इन चीफ' कहा. उनका मानना था कि जर्मनी ने राजनीतिक तौर भी गलत कदम नहीं उठाए और भरोसे की कमी नहीं आने दी जैसा अमेरिका और ब्रिटेन में हुआ. वहां पर मौत की दर जर्मनी से चार गुना है.

हालांकि कई लोग कम आशावादी रहे हैं. वो जर्मनी की सफलता को अच्छी किस्मत और ठीक समय पर उठाए गए कदमों का परिणाम बताती है. हालांकि बाद में मौत की दर थोड़ी बढ़ी क्योंकि यह वायरस कुछ नर्सिंग होम में फैल गया. कुल मौतों में से लगभग हर तीसरी मौत इन नर्सिंग होम में हुई है. रॉबर्ट कोच संस्थान के मुताबिक 70 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में मौत की दर 87 प्रतिशत से अधिक है लेकिन इनमें मिले मामलों की संख्या महज 19 प्रतिशत है.

जर्मन स्वास्थ्य मंत्री येंस श्पान बार बार कहते रहे हैं कि हम विनम्र हैं लेकिन अतिआत्मविश्वासी नहीं हैं. हांलांकि वो जर्मनी में बड़े पैमाने पर हुई टेस्टिंग के बारे में भी बताते हैं. टेस्टिंग बड़े पैमाने पर हुई है लेकिन ये इतनी आक्रामक नहीं है जितनी प्रथमदृष्टया दिखाई देती है. जर्मनी ने प्रति व्यक्ति इटली के लगभग बराबर ही टेस्ट किए हैं. जर्मनी ने अपनी क्षमता से आधे ही टेस्ट हर सप्ताह किए हैं. जर्मनी की प्रयोगशालाओं का कहना है कि वे अपनी टेस्टिंग की क्षमता हर सप्ताह 8,60,000 तक करने जा रहे हैं. हालांकि रॉबर्ट कॉख इंस्टीट्यूट का मानना है कि जर्मनी की क्षमता 10 लाख प्रति सप्ताह होनी चाहिए.

अभी भी सांस अटकी हुई है

इस महामारी को रोकने के लिए लगाई गई पाबंदियां अलग-अलग समय पर कई दिनों में लागू की गईं. इस बीमारी को फैलने के लिए यह पर्याप्त समय था. इनको लागू भी अलग-अलग तरीके से किया क्योंकि जर्मनी के संवैधानिक ढांचे की वजह एक साथ इन सभी निर्देशों को सभी 16 राज्यों पर लागू करना आसान भी नहीं था.

जर्मनी में अप्रैल का महीना अधिकतर लोगों का घर में बैठकर ही बीता है. अब इन पाबंदियों को एक-एक कर हटाया जा रहा है. सभी राज्यों ने सार्वजनिक स्थानों पर मास्क लगाना जरूरी कर दिया है. कई राज्य और भी फैसले ले रहे हैं. कई जगह पर दुकान के आकार के हिसाब से दुकान खोलने की अनुमति दी है. हालांकि अदालत ने इस अनुमति को भेदभावपूर्ण बताया है.

जर्मनी के प्रमुख वायरलोजिस्ट क्रिश्टियान ड्रोस्टेन ने गार्डियन से कहा, "जर्मनी को फिर से खोलने की योजना की अलग-अलग व्याख्याएं की जा सकती हैं. हमें चिंता है कि कहीं इससे वायरस के फिर से फैलने की दर ना बढ़ जाए और हमें कोरोना वायरस की दूसरी लहर का सामना ना करना पड़ जाए."

जर्मनी में संक्रमण फैलने की दर अभी एक के नीचे है. संक्रमण की दर से ही पता चलता है कि वायरस कितनी तेजी से फैलता है. ड्रोस्टेन जैसे स्वास्थ्य विशेषज्ञ चाहते हैं कि ये इसके भी कम हो जाए. जर्मनी फिर से सामान्य हालात की ओर बढ़ तो रहा है लेकिन अभी भी लोगों की सांसें अटकी हुई हैं क्योंकि किसी को नहीं पता कि आगे क्या होगा.

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