कश्मीर में मतदान के बीच विदेशी राजनयिकों का दौरा
२५ सितम्बर २०२४भारी सुरक्षा के बीच जम्मू और कश्मीर की 26 सीटों पर मतदान जारी है. इनमें कश्मीर की 15 सीटें और जम्मू की 11 सीटें शामिल हैं. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, कई जगह मतदाता तड़के ही मतदान केंद्रों के बाहर पहुंच गए थे. कई मतदान केंद्रों के बाहर लंबी कतारें भी देखी गईं.
इस दौर में पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष रविंदर रैना और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष तारिक हमीद कारा जैसे नेताओं की भी किस्मत का फैसला होगा. पहले चरण में करीब 61 प्रतिशत मतदान हुआ था. इस चरण में भी मतदान प्रतिशत ऊंचा रहने की उम्मीद है.
साल 2019 में जम्मू और कश्मीर के विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने और राज्य को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के बाद पहली बार यहां विधानसभा चुनाव कराए जा रहे हैं. लगभग सभी स्थानीय पार्टियां, कई राष्ट्रीय दल और कई निर्दलीय उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरे हैं.
भारत सरकार ने दूसरे चरण के मतदान को 'देखने' के लिए 16 देशों के राजनयिकों को कश्मीर आने का निमंत्रण दिया था. 20 राजनयिकों का एक दल 25 सितंबर की सुबह ही श्रीनगर पहुंच गया था. इस दल में किन देशों के राजनयिक शामिल हैं, इसकी कोई आधिकारिक जानकारी उपलब्ध नहीं है.
विदेशी राजनयिकों का दौरा
डीडब्ल्यू के सूत्रों के मुताबिक इनमें अमेरिका, सिंगापुर, स्पेन, नॉर्वे, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, मेक्सिको, गुयाना, सोमालिया, पनामा, नाइजीरिया, तंजानिया, रवांडा, अल्जीरिया और फिलीपींस के राजनयिक शामिल हैं.
कुछ मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक रूस, यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया ने भी अपने राजनयिकों को भेजा है. अधिकांश राजनयिक चार्ज द' अफेयर्स और डिप्टी चीफ ऑफ मिशन हैं. इन पदों पर काम करने वाले राजनयिक मूल रूप से दूतावास के प्रमुख (यानी राजदूत) के डिप्टी या सहायक होते हैं. इस दल के साथ भारत के विदेश मंत्रालय के चार अधिकारी भी हैं.
कुछ देशों ने अपने प्रतिनिधि भेजने के विदेश मंत्रालय के निमंत्रण को अस्वीकार भी किया. जर्मनी के दूतावास के सूत्रों ने डीडब्ल्यू को बताया कि उन्हें भी यह निमंत्रण मिला था, लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया क्योंकि उन्हें यह "शॉर्ट नोटिस" पर मिला था.
पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने मतदान प्रक्रिया देखने के लिए विदेशी राजनयिकों को बुलाए जाने की आलोचना की है. उन्होंने कहा है कि राजनयिकों को 'गाइडेड टूरिस्ट' की तरह लाया जा रहा है.
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, अब्दुल्ला ने सवाल उठाया है कि दूसरे देश जब जम्मू और कश्मीर पर कोई टिप्पणी करते हैं, तो भारत सरकार कहती है कि कश्मीर हमारा आतंरिक मामला है और दूसरों को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, तो अगर सरकार को यह हस्तक्षेप नहीं चाहिए तो राजनयिकों को यहां क्यों लाया जा रहा है.
विदेशी पत्रकारों को नहीं मिली इजाजत
अब्दुल्ला ने यह सवाल भी उठाया कि अगर राजनयिकों को यहां लाया जा सकता है, तो विदेशी पत्रकारों को यहां आने और चुनाव दिखाने की इजाजत क्यों नहीं दी जा रही है. हालांकि, विदेशी पत्रकारों पर कश्मीर में आधिकारिक रूप से कोई बैन नहीं लगाया गया है, लेकिन सूत्रों ने डीडब्ल्यू को बताया कि अधिकांश विदेशी पत्रकारों के कश्मीर जाने के आवेदन स्वीकार नहीं किए जा रहे हैं.
समाचार एजेंसी एपी का भी कहना है कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों के लिए काम करने वाले अधिकांश पत्रकारों को बिना कोई कारण बताए रिपोर्ट करने की इजाजत नहीं दी गई है.
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, उमर अब्दुल्ला ने यह भी दावा किया कि लोगों के वोट डालने की वजह यह नहीं है कि वे भारत सरकार से बहुत खुश हैं, बल्कि वो उन्हें परेशान करने की सरकार की सारी कोशिशों के बावजूद वोट दे रहे हैं. कई आम कश्मीरी मतदाता भी अपने प्रतिनिधियों के चुने जाने का इंतजार कर रहे हैं.
श्रीनगर में 40 साल के तारिक अहमद ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "10 साल पहले आखिरी चुनाव हुए थे और तबसे हमें भगवान के भरोसे छोड़ दिया गया है...किसी ने हमसे हमारी तकलीफों के बारे में नहीं पूछा. मैं खुश हूं कि यह चुनाव हो रहा है. मैं उम्मीद करता हूं कि हमें अपना प्रतिनिधि मिलेगा, जिसके सामने मेरे जैसे गरीब लोग अपने रोजमर्रा के मुद्दे रख पाएंगे."
तीसरे और आखिरी चरण का मतदान एक अक्तूबर को होगा. वोटों की गिनती आठ अक्टूबर को होगी.