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पढ़ाई के साथ चीनी लड़कियों की यौन शोषण से लड़ाई

चीरी चान/वीके१४ सितम्बर २०१६

चीन में यौन उत्पीड़न के मामले बढ़ रहे हैं. इसलिए इस बारे में जागरुकता में भी इजाफा हो रहा है. फिर भी पीड़ितों के लिए आवाज उठाना मुश्किल होता है. एक वजह परिवार का दबाव होता है तो दूसरी तरफ ऐसे मामलों पर समाज का रवैया.

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तस्वीर: Reuters

यूनिवर्सिटी परिसर में छात्रों के यौन शोषण से जुड़ी एक रिपोर्ट चीन में हाल खूब चर्चा में रही. ये रिपोर्ट 23 साल के एक छात्र कांग छेन-वेई ने तैयार की थी. उन्होंने इस तरह के 60 मामलों की चार महीने तक पड़ताल के बाद ये रिपोर्ट तैयार की. उन्होंने समझने की कोशिश की कि बीजिंग नॉर्मल यूनिवर्सिटी (बीएनयू) में किन जगहों पर यौन उत्पीड़न के मामले होते हैं, इनका मकसद क्या है और इनके क्या नतीजे होते हैं.

चीनी साहित्य के छात्र कांग ने डीडब्ल्यू को बताया, "यौन उत्पीड़न को लेकर बात बहुत होती है लेकिन विश्लेषण नहीं किया जाता है कि ऐसा होता ही क्यों है. और इसके कैसे रोका जाए." कांग ने कई पीड़ितों से बात कर पाया कि उन्हें पता ही नहीं होता है कि आगे क्या किया जाए.

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मिसाल के तौर पर एक महिला का जिस इमारत में यौन उत्पीड़न हुआ, बाद में उसने वहां जाना ही छोड़ दिया. कांग पहले व्यक्ति नहीं है जिन्होंने यूनिवर्सिटी परिसर में होने वाले यौन उत्पीड़न का मुद्दा उठाया है. हाल के समय में, कई पीड़ितों, महिला कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इस बारे में आवाज बुलंद की है.

उनके प्रदर्शनों के बाद एक खुले खत पर 256 प्रोफेसरों और छात्रों ने हस्ताक्षर कर उसे शिक्षा मंत्रालय को सौंपा है. इसमें शियामेन यूनिवर्सिटी में यौन उत्पीड़न के मामले में इतिहास के प्रोफेसर के खिलाफ जांच की मांग की गई थी. बाद में उस प्रोफेसर को पढ़ाने के काम से हटा दिया गया.

इसी साल जून में नानचिंग यूनिवर्सिटी में एक छात्र ने चांसलर को पत्र लिखा कि किस तरह वो कैंपस में यौन उत्पीड़न की घटनाओं को रोक सकते हैं. ये पत्र एक छात्र के उत्पीड़न के बाद लिखा गया था. पत्र में लिखा गया कि ये तो हाल के महीनों में होने वाले मामलों से सिर्फ एक है.

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समय समय पर ऐसी खबरें चीनी मीडिया में आती रहती हैं. इन पर चर्चा भी होती है. कुछ पीड़ित सोशल मीडिया पर अपनी आपबीती बयान भी करते हैं. लेकिन इस तरह के मामलों पर कोई सटीक आंकड़े मौजूद नहीं हैं.

ये बात भी गौर करने वाली है कि इस तरह के हजारों मामले तो कभी सामने ही नहीं आते हैं. बहुत से पीड़ित मामला दर्ज कराने से बचते हैं. चीनी महिला अधिकार कार्यकर्ता ली थिंग-थिंग ने डीडब्ल्यू को बताया, "चीनी समाज में महिलाओं से संबंधित यौन विषयों पर चर्चा करना अच्छा नहीं माना जाता है. इससे यौन उत्पीड़न करने वालों को बढ़ावा मिलता है जबकि पीड़ित की इस बारे में दूसरों को बताने की हिम्मत नहीं होती है."

ली बताती हैं, "चीन एक पुरुष प्रधान समाज है और यौन उत्पीड़न की पीड़ितों को सहारा और सहयोग नहीं दिया जाता है."

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समाजशास्त्री और ‘लेफ्टओवर वीमन: द रिसर्जेंस ऑफ जेंडर इक्वेलिटी इन चाइना' की लेखिका लेटा होंग फिंचर कहती हैं कि यहां तक कि परिवार ही पीड़ित के लिए इंसाफ की मांग को दबा देते हैं. वे कहती हैं, "ज्यादातर मामलों में पीड़ित महिला होती हैं और उनके साथ कुछ ऐसा वैसा हो जाना बहुत ही शर्मनाक समझा जाता है. परिवार नहीं चाहते कि इस बारे में किसी को कुछ पता चले क्योंकि इससे उन्हें शर्मिंदगी उठानी पड़ती है."

विख्यात चीनी वकील ली इंग का कहना है कि अगर यौन उत्पीड़न करने वाला प्रोफेसर है तो फिर इस बात की संभावना और कम हो जाती है कि पीड़ित उसके बारे में किसी को कुछ बताए. उनका पिछले दस साल में ऐसे बहुत से केसों से वास्ता पड़ा है. उनका कहना है कि पीड़ित पर न सिर्फ परिवार और समाज का दबाव होता है बल्कि उन्हें ये चिंता भी लगी रहती है कि इससे टीचर के साथ उसके रिश्ते खराब हो जाएंगे.

यौन उत्पीड़न एक सामाजिक समस्या है जो चीन में हमेशा से रही है. लेकिन अब ऐसे मामलों पर मीडिया का ज्यादा ध्यान है लेकिन इस बारे में कानूनों में कुछ खास बदलाव नहीं किया गया है. वकील ली का कहना है, "उत्पीड़न करने वाले के लिए जो सजा है वो ज्यादा सख्त नहीं है. मान लीजिए कोई प्रोफेसर इसका दोषी पाया जाए तो उसे उस शिक्षण संस्थान से निकाला जा सकता है या फिर पढ़ाने के लिए अयोग्य करार दिया जा सकता है."

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इतना ही नहीं, इस तरह के अपराधों को गंभीर नहीं माना जाता है. उत्पीड़न करने वाला पीड़ित को चंद सौ डॉलर की रकम देकर स्वतंत्र हो जाता है. ली का कहना है, "ऐसे में पीड़ित को लगता है कि जब कुछ खास होना ही नहीं है तो फिर क्यों अपने करियर, परिवार से संबंध और शादी की संभावनाओं को जोखिम में डाला जाए." ऐसे में, पीड़ित को खामोश रहना कहीं आसान लगता है.