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पैसिफिक में मात के बावजूद बढ़ रहे हैं चीन के हौसले

विवेक कुमार
३ जून २०२२

चीन को पैसिफिक देशों के साथ समझौता करने में कामयाबी नहीं मिली. लेकिन उसके हौसले लगातार बढ़ रहे हैं और वे कामयाब भी हो रहे हैं.

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फिजी में चीन के विदेश मंत्री वांग यी
फिजी में चीन के विदेश मंत्री वांग यीतस्वीर: Fiji Government/picture alliance/AP

इसी हफ्ते कनाडा की सेना ने आरोप लगाया है कि चीन के लड़ाकू विमान अंतरराष्ट्रीय समुद्र में उसके विमानों से उलझने की कोशिश कर रहे हैं. उत्तर कोरिया की निगरानी में तैनात कनाडाई विमानों ने यह शिकायत की है.

कनाडा ने कहा है कि उत्तर कोरिया को अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के उल्लंघन से रोकने के लिए निगरानी करने वाले उसके विमानों को चीन की सेना परेशान कर रही है. कनाडा की सेना का कहना है कि कई बार चीनी विमान उसके विमानों के रास्ते में आ गए जिस कारण उन्हें अपना रास्ता बदलना पड़ा.

कनाडा की सेना का आरोप है कि 26 अप्रैल से 26 मई के बीच पीपल्स लिबरेशन आर्मी एयर फोर्स के विमानों ने कई बार रॉयल कनेडियन एयर फोर्स के सीपी-140 औरॉरा पट्रोलिंग एयरक्राफ्ट का रास्ता रोका. बुधवार को जारी एक बयान में कनाडा की सेना ने कहा कि एक महीने के भीतर ऐसा एक से ज्यादा बार हुआ.

कनाडा ने कहा, "इस संपर्क के दौरान चीनी विमान ने अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा नियमों का पालन नहीं किया. यह संपर्क गैर-पेशेवराना है और/या हमारी वायु सेना के अफसरों की सुरक्षा को खतरे में डालने वाला है.” बयान में बताया गया कि कुछ मामलों में तो उसके वायुसैनिकों को इतना ज्यादा खतरा महसूस हुआ कि उन्हें एकाएक रास्ता बदल लेना पड़ा ताकि कहीं टक्कर ही ना हो जाए.

चीन ने अभी इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं की है. कनाडाई सेना ने कहा कि ये संपर्क और इनकी बढ़ती संख्या चिंता का विषय हैं. कनाडा की वायु सेना संयुक्त राष्ट्र की इजाजत से उत्तर कोरिया पर प्रतिबंधों का पालन कराने वाले अभियान का हिस्सा है.

ऑपरेशन नियोन

कनाडा जिस मिशन की बात कर रहा है, उसका नाम ऑपरेशन नियोन है. इस अभियान के तहत सैन्य जहाज, विमान और सुरक्षाबलों को समुद्र में निगरानी के लिए तैनात किया जाता है. इस तैनाती का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि प्रतिबंधित सामान की आवाजाही या लेनदेन ना हो. वे देखते हैं कि उत्तर कोरिया का कोई जहाज समुद्र के बीच में भी किसी अन्य जहाज से सामान का आदान प्रदान तो नहीं कर रहा है.

चीन लगातार उत्तर कोरिया से सहानुभूति दिखाता रहा है. पिछले हफ्ते भी उत्तर कोरिया पर ताजा प्रतिबंध लगाने का एक प्रस्ताव चीन और रूस ने सुरक्षा परिषद में वीटो कर दिया था. अमेरिका के नेतृत्व में यह प्रस्ताव उत्तर कोरिया के लगातार किए जा रहे मिसाइल परीक्षणों के विरोध में था जिसे चीन और रूस ने रोक दिया.

चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्त जाओ लीजियान ने बुधवार को साप्ताहिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकारों को बताया, "मौजूदा हालात में प्रतिबंधों को बढ़ाना समस्या का हल नहीं है.” चीन और रूस की वायु सेनाओं ने पिछले हफ्ते जापान सागर, पूर्वी चीन सागर और पश्चिमी प्रशांत सागर में एक साझा अभ्यास भी किया था. यूक्रेन पर रूस द्वारा सैन्य कार्रवाई शुरू किए जाने के बाद अपनी तरह का यह पहला अभियान था.

हिंद-प्रशांत में चीन की कोशिशें

चीन हिंद-प्रशांत में सैन्य और कूटनीतिक दोनों ही तरह की गतिविधियां लगातार बढ़ा रहा है. पिछले हफ्ते ही चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने दस पैसिफिक देशों को मिलाकर एक अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौता करने की कोशिश की थी जिसमें उसे कामयाबी नहीं मिल पाई है.

वांग यी ने पिछले हफ्ते आठ पैसिफिक देशों का दौरा किया था. शनिवार को वह फिजी के अपने दौरे पर पहुंचे थे. फिजी के प्रधानमंत्री फ्रैंक बैनिमारामा ने चीन द्वारा प्रस्तावित समझौते को पैसिफिक देशों द्वारा नकार दिए जाने का ऐलान किया. उन्होंने कहा कि पैसिफिक देश इस बात पर एकमत हैं. वांग यी के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा, "हमेशा की तरह, हमने किसी भी समझौते के लिए आम सहमति को प्राथमिकता दी है. फिजी द्विपक्षीय संबंधों के लिए हमेशा नई गुंजाइशों की तलाश में रहेगा. जब तक हम मिल जुलकर अपने लोगों की चुनौतियों का समाधान नहीं खोजेंगे, चुनौतियां बढ़ती जाएंगी.”

चीन के लिए यह एक बड़ा झटका है क्योंकि बीते दिनों हीअमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 11 पैसिफिक देशों को मिलाकर जापान में एक व्यापार समझौते का ऐलान किया था. उसके बाद वांग यी इस समझौते को लेकर खासे उत्सुक थे. फिजी में चीन के राजदूत कियान बो ने कहा कि कुछ प्रशांत देशों को प्रस्तावों के कुछ तत्वों पर आपत्तियां थीं. उन्होंने बताया, "ये दस देश, जिनके साथ हमारे कूटनीतिक संबंध हैं, आमतौर पर समर्थन करते हैं लेकिन कुछ विशेष मुद्दों पर उनकी कुछ चिंताएं हैं.”

उन्होंने कहा कि वांग यी के दौरे के बाद चीन अपने रुख पर एक पत्र प्रकाशित करेगा. बो ने कहा, "हम अपने दोस्तों के साथ लगातार विचार विमर्श करते हैं. यह चीन की नीति है. हम अन्य देशों पर कुछ नहीं थोपते. ऐसा कभी नहीं हुआ. हमने फिजी के साथ तीन समझौते किए हैं, जो आर्थिक विकास से जुड़े हैं.”

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उधर चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने कहा चीन पैसिफिक देशों को बिना किसी राजनीतिक शर्त के समर्थन करता रहेगा. उन्होंने कहा, "सभी ने बेल्ट एंड रोड सहयोग के उच्च-गुणवत्ता वाले विकास के प्रति प्रतिबद्धता जताई है और कहा है कि कोविड-19 जैसी चुनौतियों से मिलकर निपटना है व आर्थिक बहाली की ओर बढ़ना है.”

‘रुकेगा नहीं चीन'

चीन के यूरोपीय मामलों के महानिदेशक वांग लूटोंग का कहना है कि पैसिफिक देश किसी के घर का पिछवाड़ा नहीं हैं. ट्विटर पर उन्होंने लिखा, "चीन और पैसिफिक देशों के बीच सहयोग इलाके के लोगों के लिए वास्विक लाभ लेकर आएगा. चीन पैसिफिक के द्वीपीय देशों और उनके लोगों की आवाज सुनता रहेगा. वे किसी का बैकयार्ड नहीं हैं.”

ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के बेंजामिन हेर्सकोविच ने अल जजीरा से बातचीत में कहा कि इस इनकार से चीन रुकने वाला नहीं है. उन्होंने कहा, "चीन अपने कूटनीतिक, व्यापारिक, आर्थिक और नागरिकों के बीच परस्पर संबंधों को और बढ़ाएगा ताकि इस तरह का समझौता किया जा सके.”

अमेरिका सरकार ने पिछले समय में पैसिफिक में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है, जिसका मकसद चीन की बढ़त को रोकना माना जाता है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि इन तमाम कोशिशों के बावजूद चीन एशिया में अपनी बढ़त लगातार बना रहा है. ऑस्ट्रेलिया के लोवी इंस्टीट्यूट का एशिया पावर इंडेक्स दिखाता है कि 2018 के बाद से इलाके में अमेरिका का प्रभाव लगातार कम हो रहा है जबकि चीन का प्रभाव बढ़ रहा है.

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इस इंडेक्स का विश्लेषण करते हुए इंस्टीट्यूट की फेलो सुजैना पैटन लिखती हैं कि 20 साल पहले दक्षिणपूर्व एशिया का सिर्फ पांच प्रतिशत निर्यात चीन को होता था और 16 प्रतिशत अमेरिका को जाता था. 2020 तक दोनों 15-15 प्रतिशत के साथ बराबरी पर आ गए थे. पैटन लिखती हैं, "पूरे व्यापार पर नजर डाली जाए तो चीन का बढ़ता कुनबा स्पष्ट नजर आता है. मात्रा के मामले में क्षेत्र में चीन का व्यापार अमेरिका से लगभग ढाई गुना ज्यादा है. चीन अब लगभग हर एशियाई देश का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है.”

 

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