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वाराणसी के गांव की खबर दिखाने के जुर्म में पत्रकार पर मुकदमा

समीरात्मज मिश्र
२२ जून २०२०

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में उनके गोद लिए गांव के हालात दिखाने वाली रिपोर्ट की वजह से एक न्यूज वेबसाइट की रिपोर्टर और उनके संपादक पर एफआईआर दर्ज की गई है.

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Türkei Protest Pressefreiheit
तस्वीर: Getty Images/C. McGrath

न्यूज वेबसाइट scroll.in की कार्यकारी संपादक सुप्रिया शर्मा और वेबसाइट की मुख्य संपादक के खिलाफ वाराणसी पुलिस ने एक महिला की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की है. सुप्रिया शर्मा ने पीएम मोदी के गोद लिए गांव डोमरी में लॉकडाउन के दौरान लोगों की स्थिति का जायजा लेती हुई एक रिपोर्ट अपनी वेबसाइट पर लिखी थी. सुप्रिया शर्मा ने इस दौरान कई लोगों का इंटरव्यू किया था जिनमें माला देवी नाम की एक महिला भी शामिल थीं.

वेबसाइट के मुताबिक, इंटरव्यू के दौरान माला देवी ने रिपोर्टर को बताया था कि वह घरों में काम करती हैं और लॉकडाउन के दौरान उन्हें भोजन की किल्लत हो रही है. रिपोर्ट के अनुसार महिला ने रिपोर्टर को यह भी बताया था कि उनके पास राशन कार्ड नहीं है, जिससे उन्हें खाने की भी दिक्कत हो रही है.

लेकिन माला देवी ने दावा किया है कि उन्होंने ये बातें रिपोर्टर को नहीं बताई थीं और रिपोर्टर ने उनकी गरीबी का मजाक उड़ाया है. पुलिस के मुताबिक, डोमरी गांव की रहने वाली माला देवी की शिकायत पर वाराणसी में रामनगर थाने की पुलिस ने 13 जून को एफआईआर दर्ज की है. पुलिस ने उनकी शिकायत के आधार पर आईपीसी की धारा 501 और 269 के अलावा एससी-एसटी ऐक्ट के तहत भी मुकदमा दर्ज किया है.

महिला ने बदला बयान

एफआईआर में लिखा है कि माला देवी ने अपनी शिकायत में पुलिस को बताया कि सुप्रिया शर्मा ने उनके बयान और उनकी पहचान को गलत तरीके से पेश किया. माला देवी ने एफआईआर में यह भी दावा किया है कि वह घरों में काम नहीं करती हैं बल्कि आउटसोर्सिंग के तहत वाराणसी नगर निगम में काम करती हैं. जबकि रिपोर्ट में उन्हें घरों में काम करने वाली बताया गया है.

माला देवी ने अपनी शिकायत में लिखा है कि लॉकडाउन के दौरान उन्हें और उनके परिवार के किसी भी सदस्य को किसी भी तरह की दिक्कत नहीं हुई. शिकायत में आगे लिखा है, "ऐसा कहकर कि मैं और मेरे बच्चे भूखे रह गए, सुप्रिया शर्मा ने मेरी गरीबी और जाति का मजाक उड़ाया है.”

हालांकि एफआईआर के बावजूद सुप्रिया शर्मा अपनी रिपोर्ट पर कायम हैं और उनका दावा है कि उन्होंने कोई भी बात तथ्यों से परे जाकर नहीं लिखी है. एफआईआर में वेबसाइट की संपादक को भी नामजद किया गया है. हालांकि अभी तक पुलिस ने सुप्रिया शर्मा पर कोई कार्रवाई नहीं की है.

विनोद दुआ और सिद्धार्थ वरदराजन के मामले

इससे पहले देश के जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ पर भी दिल्ली और हिमाचल प्रदेश में अलग-अलग जगहों पर एफआईआर दर्ज कराई गई थी. विनोद दुआ पर फेक न्यूज फैलाने का आरोप लगाया गया था. हिमाचल प्रदेश में उन पर दर्ज की गई एफआईआर में देशद्रोह की धारा भी शामिल की गई थी. हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने विशेष सुनवाई के दौरान राज्य सरकार को निर्देश दिया कि छह जुलाई तक उनकी गिरफ्तारी नहीं हो सकती. इस दौरान मामले की जांच की जा सकती है.

दो महीने पहले न्यूज वेबसाइट ‘द वायर' के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन पर भी उत्तर प्रदेश के अयोध्या में दो एफआईआर दर्ज की गई थीं. उन पर आरोप है कि उन्होंने लॉकडाउन के बावजूद अयोध्या में होने वाले एक कार्यक्रम में योगी आदित्यनाथ के शामिल होने संबंधी बात छापकर अफवाह फैलाई. हालांकि ‘द वायर' ने जवाब में कहा है कि इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री का जाना सार्वजनिक रिकॉर्ड और जानकारी का विषय है, इसलिए अफवाह फैलाने जैसी बात यहां लागू ही नहीं होती.

योगी आदित्यनाथ सरकार की इस कार्रवाई का देशभर के 3,500 से ज्यादा बुद्धिजीवियों ने विरोध भी किया जिनमें कई जाने-माने कानूनविद, शिक्षाविद, अभिनेता, कलाकार और लेखक शामिल हैं. इन लोगों ने अपने वक्तव्य में कहा था कि यह प्रेस की आजादी पर सीधा हमला है. सुप्रिया शर्मा और विनोद दुआ पर हुए एफआईआर की भी कई पत्रकार संगठनों ने निंदा की है.

मिड डे मील वाला पत्रकार याद है?

इससे पहले भी कई स्थानीय पत्रकारों के खिलाफ सरकार विरोधी खबरें छापने के कथित जुर्म में एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं. अभी पिछले महीने ही यूपी के फतेहपुर जिले के पत्रकार अजय भदौरिया पर स्थानीय प्रशासन ने एफआईआर दर्ज करा दी, जिसके खिलाफ जिले के तमाम पत्रकारों ने जल सत्याग्रह शुरू कर दिया था. अजय भदौरिया ने एक नेत्रहीन दंपत्ति को लॉकडाउन में राशन से संबंधित दिक्कतों का जिक्र करते हुए जिले में चल रहे कम्यूनिटी किचन पर सवाल उठाए थे.

पिछले साल मिर्जापुर में मिड डे मील में धांधली की खबर दिखाने वाले पत्रकार पर भी एफआईआर दर्ज कर दी गई. बाद में जिले के डीएम ने इसकी बड़ी दिलचस्प वजह बताई कि प्रिंट का पत्रकार वीडियो कैसे बना सकता है. प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को भी इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा था.

दिल्ली स्थित राइट एंड रिस्क्स एनालिसिस ग्रुप ने हाल के दिनों में ऐसे 55 पत्रकारों को परेशान किए जाने के उदाहरण इकट्ठे किए हैं जिन्हें सरकारी नीतियों की आलोचना या फिर जमीनी हकीकत दिखाने के कथित जुर्म में मुकदमेबाजी का सामना करना पड़ा है और गंभीर धाराओं में उन पर केस दर्ज हुए हैं. इनमें सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में 11, जम्मू-कश्मीर में 6, हिमाचल में 5 मामले शामिल हैं जबकि तमिलनाडु, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में ऐसे चार-चार मामले दर्ज किए गए हैं.

180 देशों में भारत 142वें स्थान पर

दुनिया भर में प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में भारत का स्थान पहले भी काफी नीचे था जो लगातार गिरता ही जा रहा है. साल 2009 में प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत 105वें स्थान पर था जबकि एक दशक बाद यह 142वें स्थान पर पहुंच चुका है. इसी साल अप्रैल महीने में जारी हुए रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के वार्षिक विश्लेषण के अनुसार वैश्विक प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में 180 देशों में भारत 142वें स्थान पर है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में न सिर्फ लगातार प्रेस की आजादी का उल्लंघन हुआ, बल्कि पत्रकारों के विरुद्ध पुलिस ने भी हिंसात्मक कार्रवाई की. रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि सोशल मीडिया पर उन पत्रकारों के खिलाफ सुनियोजित तरीके से नफरत फैलाई गई, जिन्होंने कुछ ऐसा लिखा या बोला था जो हिंदुत्व समर्थकों को नागवार गुजरा.

पेरिस स्थित रिपोर्टर्स सैन्स फ्रन्टियर्स (आरएसएफ) यानी रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स एक गैर-लाभकारी संगठन है जो दुनिया भर के पत्रकारों और पत्रकारिता पर होने वाले हमलों पर नजर रखता है और उनके खिलाफ आवाज उठाने का काम करता है.

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