भारत में कार्बन उत्सर्जन में बढ़ोतरी
१४ नवम्बर २०२४यह जानकारी ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट के लिए काम कर रहे वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क ने दी है. इस टीम द्वारा दी गई प्राथमिक जानकारी के मुताबिक 2024 में पिछले साल के मुकाबले जीवाश्म ईंधनों से होने वाला कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन 0.8 प्रतिशत बढ़ कर 37.4 अरब टन हो गया.
यह एक नया रिकॉर्ड है. इस रिसर्च के मुताबिक इस साल के अंत तक भारत के कार्बन उत्सर्जन में 4.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की जा सकती है, जो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी है. कोयले से होने वाले उत्सर्जन से 4.5 प्रतिशत, तेल से 3.6 प्रतिशत, प्राकृतिक गैस से 11.8 प्रतिशत और सीमेंट से चार प्रतिशत बढ़ोतरी का अनुमान है.
नहीं हासिल हो पाएगा जलवायु लक्ष्य
यह आंकड़े मासिक डाटा और साल के अंत के अनुमान पर आधारित है और इस वजह से मौजूदा अनुमान से थोड़ा सा ज्यादा या कम हो सकते हैं. शोधकर्ताओं का कहना है कि भारत से उत्सर्जन में बढ़ोतरी और अंतरराष्ट्रीय विमानन में बढ़ोतरी की वजह से अंतरराष्ट्रीय उत्सर्जन का स्तर बढ़ गया.
चीन में भी उत्सर्जन में बढ़ोतरी होने का अनुमान है. यूरोपीय संघ और अमेरिका में उत्सर्जन में कमी आई है. अगर जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन में वनों की कटाई जैसे कदमों से होने वाले उत्सर्जन को जोड़ दें तो 2024 का आंकड़ा (41.6 अरब टन) लगभग पिछले साल जितना ही है.
शोधकर्ताओं का कहना है कि दुनिया अगर इस दर से आगे बढ़ती रही तो पेरिस संधि में तय हुए 1.5 डिग्री सेल्सियस ग्लोबल वार्मिंग के लक्ष्य को और जल्दी हासिल करने की जरूरत पड़ जाएगी.
शोध के मुताबिक अगर इस लक्ष्य को हासिल करना है तो पूरी दुनिया को नेट-जीरो उत्सर्जन 2030 के दशक के अंत से पहले ही हासिल करना होगा. अधिकांश देशों का नेट-जीरो लक्ष्य इससे कहीं बाद का है. भारत ने 2070 तक और चीन ने 2060 तक नेट-जीरो हासिल कर लेने का लक्ष्य बनाया है.
वैज्ञानिकों ने कहा कि पेरिस संधि के लक्ष्य को हासिल करने के लिए दुनिया के पास अब सिर्फ 235 अरब टन उत्सर्जन का "बजट" बचा है. मौजूदा उत्सर्जन दर के हिसाब से यह बजट छह सालों में खत्म हो जाएगा.
कैसे हो सकता है सुधार
वैज्ञानिकों का कहना है कि रिन्यूएबल बिजली और इलेक्ट्रिक गाड़ियों की वजह से कुछ जीवाश्म ईंधनों को खत्म करने में मदद मिल रही है, लेकिन गैस और तेल से उत्सर्जन में बढ़ोतरी अभी भी चिंता का विषय बनी हुई है. ओस्लो स्थित सेंटर फॉर इंटरनैशनल क्लाइमेट रिसर्च में शोध निदेशक ग्लेन पीटर्स का कहना है कि दुनिया जीवाश्म ईंधनों से होने वाले उत्सर्जन की चोटी पर पहुंचने के बेहद करीब है.
पीटर्स ने पत्रकारों को बताया, "रिन्यूएबल मजबूती से बढ़ रहे हैं, इलेक्ट्रिक वाहन मजबूती से बढ़ रहे हैं, लेकिन फिर भी यह काफी नहीं है." उन्होंने यह भी कहा कि उत्सर्जन में चोटी पर पहुंचने का पता कई सालों के डाटा को इकठ्ठा करने के बाद चलेगा. मिसाल के तौर पर चीन में उत्सर्जन में बढ़ोतरी कोयले और गैस से हो रही है.
पीटर्स ने बताया, "मुमकिन है कि चीन में इलेक्ट्रिक वाहनों के तेजी से बढ़ते इस्तेमाल की वजह से तेल का इस्तेमाल चोटी पर पहुंच चुका है. इसका मतलब है कि यह तकनीकें मदद जरूर करती हैं."
शोध में यह भी सामने आया कि वायुमंडल में से कार्बन डाइऑक्साइड को निकाल कर उसका स्थायी भंडारण करने जैसे नई तकनीकों का पेड़ लगाने जैसे प्रकृति-आधारित कदमों के मुकाबले बहुत छोटा असर हो रहा है. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 2024 औद्योगिक युग से पहले के तापमान के मुकाबले 1.5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म होने की राह पर है. हालांकि इसका यह मतलब नहीं है कि जलवायुलक्ष्य पीछे छूट गया है क्योंकि उसके लिए तापमान को दशकों में मापा जाता है.
सीके/वीके (एएफपी)