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कैंसर के लिए काफी हद तक आदतें जिम्मेदार

२२ अगस्त २०२२

स्मोकिंग, अल्कोहल और मोटापा, इन तीन कारणों से कैंसर तेजी से फैल रहा है. लान्सेट के शोध के मुताबिक 2019 में कैंसर से हुई आधी मौतों के पीछे यही तीन कारण थे.

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स्मोकिंग
तस्वीर: Noah Wedel/Kirchner-Media/picture alliance

प्रतिष्ठित ब्रिटिश जर्नल लान्सेट का दावा है कि तंबाकू, अल्कोहल और हाई बॉडी मास इंडेक्स यानि मोटापे को काबू में कर कैंसर के बढ़ते मामलों पर लगाम लगाई जा सकती है. शोध के मुताबिक व्यवहार बन चुकी कुछ आदतें, कैंसर से होने वाली मौतों के लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं. लान्सेट का दावा है कि 2019 में दुनिया भर में कैंसर हुई 44.4 फीसदी मौतें मानव व्यवहार से जुड़ी थीं.

वैज्ञानिकों ने ऐसे 34 रिस्क फैक्टरों की पहचान की है जो सबसे ज्यादा कैंसर का खतरा पैदा करते हैं. इनमें सबसे ज्यादा गंभीर स्मोकिंग है. कैंसर के 33.9 फीसदी मामले तंबाकू का सेवन करने वाले लोगों से जुड़े मिले. 2019 में पूरे विश्व में 23 किस्म के कैंसर से एक करोड़ लोगों की मौत हुई. लान्सेट के रिसर्चरों इन एक करोड़ मौतों की पड़ताल की.

शोध के सीनियर को ऑर्थर क्रिस्टोफर मरे कहते हैं, "कैंसर का बोझ जनस्वास्थ्य के लिए अब भी एक गंभीर चुनौती बना हुआ है और दुनिया भर में इसका असर बढ़ता जा रहा है."

भारत में सस्ते और तमाम किस्म के तंबाकू प्रोडक्ट्स
भारत में सस्ते और तमाम किस्म के तंबाकू प्रोडक्ट्सतस्वीर: Nasir Kachroo/NurPhoto/picture alliance

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शोध यह भी कहता है कि कैंसर का असर वित्तीय और मौसमी परिस्थितियों के साथ साथ उम्र पर भी निर्भर करता है. निम्न आय वर्ग वाले देशों में स्मोकिंग, असुरक्षित सेक्स और अल्कोहल कैंसर के मरीज की उम्र पर बहुत गहरा असर डालते हैं. दक्षिण एशिया, मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका और सब सहारा देशओं में मेटाबॉलिक रिस्क बहुत ज्यादा है. ये सारे इलाके सोशल डेमोग्राफिक इंडेक्स में काफी नीचे आते हैं.

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कैंसर रजिस्ट्री डाटा के मुताबिक भारत में हर साल कैंसर के 8 लाख नए मामले सामने आ रहे हैं. प्रोजेक्टेड डाटा इस संख्या को 2.4 करोड़ प्रति वर्ष बता रहा है. इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च की रिपोर्ट "बर्डन ऑफ कैंसर्स इन इंडिया" के मुताबिक 2025 तक भारत में हर साल कैंसर के करीब 2.9 करोड़ मामले सामने आ सकते हैं. फिलहाल भारत में कैंसर के ज्यादातर मामले तंबाकू से जुड़े मिलते हैं.

शोध का दावा है कि आदतों में बदलाव कर कैंसर के खिलाफ काफी हद तक सुरक्षा हासिल की जा सकती है. शोध के मुताबिक कैंसर की जल्द पहचान और असरदार इलाज अब भी प्राथमिकता में शामिल होना चाहिए.

ओएसजे/एनआर (एएफपी, डीपीए)