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गैस की किल्लत ने जलाई लकड़ी के चूल्हों की आंच

११ नवम्बर २०२२

देश के बड़े शहरों में गैस की कमी के कारण शहरी लोग अपना खाना पकाने के लिए लकड़ी के चूल्हे का इस्तेमाल करने को मजबूर हो गए हैं. यह लोगों के स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी हानिकारक है.

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लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाना लोगों के लिए खतरनाक है और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है
लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाना लोगों के लिए खतरनाक है और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता हैतस्वीर: Reinhard Marscha/imageBROKER/picture alliance

अफ्रीकी देश कैमरून की राजधानी याऊंदे में कुछ दिनों पहले शाम के वक्त दर्जनों लोग भरे हुए गैस सिलेंडर की तलाश कर रहे थे. सिर पर खाली गैस सिलेंडर लिए एक महिला ने डीडब्ल्यू को बताया, "मेरी गैस खत्म हो गई... और इसलिए मैंने अपने सप्लायर को नया सिलेंडर लाने को कहा, लेकिन उसके पास भी भरा हुआ सिलेंडर नहीं है.”

महिला ने बताया कि वह भरे हुए गैस सिलेंडर खोजने की कोशिश कर रही थी, लेकिन कई जगहों पर जाने के बावजूद उसे सिलेंडर नहीं मिला. कैमरून के कई इलाकों में यह आम समस्या बन गई है. हालांकि, घरेलू गैस की कमी की स्पष्ट वजह सामने नहीं आ रही है.

स्थानीय मीडिया में कहा जा रहा है कि गैस के खुदरा विक्रेताओं को गैस आयात करने में समस्या का सामना करना पड़ रहा है. वहीं, यह अटकलें भी लगाई जा रही हैं कि सरकार द्वारा तय की गई कीमत से ज्यादा कीमतों पर बेचने के लिए गैस सिलेंडर की जमाखोरी की जा रही है.

लकड़ी के चूल्हों की ओर लौट रहे हैं श्रीलंका के लोग

राजधानी याऊंदे और देश के बड़े शहर दौआला में खाना पकाने के लिए ज्यादातर लोग एलपीजी का इस्तेमाल करते हैं. वर्ष 2017 के उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, इन दोनों शहरों में 63 फीसदी घरों में गैस से ही खाना पकाया जाता है. ऐसे में गैस की कमी से इन शहरी लोगों को काफी ज्यादा समस्या का सामना करना पड़ रहा है. वहीं, दूसरी ओर कुछ विक्रेता ज्यादा कमाई के लिए गलत तरीके अपना रहे हैं.

याऊंदे में मोटर साइकिल पर गैस सिलेंडर लेकर जा रहे कॉलिन्स सुह ने डीडब्ल्यू को बताया, "मैं गैस सिलेंडर खरीदने गया था. मुझे लगा कि यह सिलेंडर भरा हुआ है, लेकिन जब मैंने इसे हिलाने की कोशिश की, तो पाया कि एक छोटे से छेद से पानी निकल रहा है. वह पानी ही था.”

याऊंदे में गैस रिफिल प्लांट
याऊंदे में गैस रिफिल प्लांट तस्वीर: Jean-Pierre Kepseu/MAXPPP/dpa/picture alliance

जंगल और लोगों की रक्षा

सरकार की महत्वाकांक्षी योजना की वजह से कैमरून के शहरी क्षेत्रों में खाना पकाने के लिए गैस का इस्तेमाल पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ा है. सरकार ने जब 2016 में इस योजना को पेश किया था, तब इसका उद्देश्य एलपीजी के इस्तेमाल को तीन गुना अधिक बढ़ाना था. योजना थी कि 2030 तक कैमरून के 58 फीसदी घरों में गैस से खाना पके.

इस वृहत योजना के तहत, एलपीजी से जुड़े बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए 39.2 करोड़ डॉलर का निवेश किया गया, ताकि इन पैसों का इस्तेमाल गैस के भंडारण, खाली सिलेंडर को फिर से भरने और उसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए किया जा सके.

एलपीजी के इस्तेमाल को बढ़ावा देना आम जनता और पर्यावरण दोनों के लिए फायदेमंद है. कैमरून में, लोग पारंपरिक रूप से लकड़ी के चूल्हे पर भोजन तैयार करते हैं. वहीं कुछ लोग लकड़ी से बने चारकोल का भी इस्तेमाल करते हैं.  यही वजह है कि कैमरून में ईंधन के तौर पर लकड़ी का इस्तेमाल करने के लिए बड़े पैमाने पर वनों की कटाई की जाती है. देश का कांगो बेसिन अमेजन के बाद दुनिया का सबसे बड़ा वर्षा वन क्षेत्र है.

कैमरून में ईंधन के तौर पर लकड़ी का इस्तेमाल करने के लिए बड़े पैमाने पर वनों की कटाई की जाती है
कैमरून में ईंधन के तौर पर लकड़ी का इस्तेमाल करने के लिए बड़े पैमाने पर वनों की कटाई की जाती हैतस्वीर: Michael Runkel/robertharding/picture alliance

हालांकि, लकड़ी के चूल्हे पर खाना पकाना पर्यावरण के लिए काफी नुकसानदेह है. इससे न सिर्फ एलपीजी के मुकाबले पांच गुना ज्यादा कार्बन उत्सर्जन होता है, बल्कि यह जलवायु परिवर्तन में भी अहम भूमिका निभाता है.

लकड़ी का ईंधन लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक है, खासकर अगर लोग घर के अंदर खाना बनाते हैं. इस स्थिति में, वातावरण में जो छोटे कण निकलते हैं वे लोगों के फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं. इससे बच्चों में निमोनिया और वयस्कों में हृदय रोग और फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है. लकड़ी इकट्ठा करने का ज्यादातर काम महिलाएं करती हैं जिसमें उन्हें काफी समय लगता है. एलपीजी के इस्तेमाल से ये सारी समस्याएं दूर हो जाती हैं.

ब्रिटेन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपूल ने एलपीजी के इस्तेमाल को लेकर 2020 में एक अध्ययन किया. इसमें पाया गया कि एलपीजी पर खाना पकाने से जंगलों की रक्षा होती है. साथ ही, आम जनता के स्वास्थ्य और समाज पर सकारात्मक असर पड़ता है.”

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लकड़ी के चूल्हे पर वापसी

फिलहाल, गैस की कमी शहरी निवासियों को लकड़ी या चारकोल से खाना पकाने की परंपरा पर वापस लौटने को मजबूर कर रही है. एक महिला से यह पूछे जाने पर कि वह इस समय खाना पकाने के लिए किस चीज का इस्तेमाल कर रही हैं, उन्होंने कहा, "अफ्रीकी महिला को अपनी जड़ों को याद रखना चाहिए. हम लकड़ी के चूल्हे पर खाना पका रहे हैं.” वहीं एक अन्य महिला ने कहा, "गैस की कमी की वजह से मुझे चारकोल के चूल्हे पर चावल पकाना पड़ा.”

फिर से लकड़ी के चूल्हे के इस्तेमाल पर लोगों को वापस लौटते देख दौआला शहर में रहने वाले पर्यावरणविद् फोर्बेश फिलिप चिंतित हैं. वह कहते हैं, "यह पर्यावरण के लिए अच्छी खबर नहीं है. हालांकि, अफ्रीका के अन्य हिस्सों की तुलना में कैमरून में कम लोग लकड़ी का इस्तेमाल करते हैं. अगर शहरी निवासी लकड़ी के इस्तेमाल पर वापस लौटते हैं, तो इसका मतलब है कि ग्रामीण क्षेत्र से ज्यादा से ज्यादा लकड़ी शहरों में लायी जा रही है.”

गैस की किल्लत से जूझते लोग
गैस की किल्लत से जूझते लोगतस्वीर: Nicolas Marino/imago images

आयातित गैस पर निर्भरता

कैमरून में 2018 से प्राकृतिक गैस का उत्पादन शुरू हुआ है. तब से यह देश घरेलू बाजार में एलपीजी की आपूर्ति के लिए इसका एक हिस्सा संसाधित कर रहा है. देश की रिफाइनरी सालाना लगभग 34,000 मीट्रिक टन गैस का उत्पादन करती है, जबकि घरेलू जरूरत 1,50,000 टन है. ऐसे में जरूरतों को पूरा करने के लिए गैस का आयात करना जरूरी है.

सरकार ने कहा है कि वह इस साल 1,20,000 मीट्रिक टन एलपीजी आयात करने की योजना बना रही है. हालांकि, अभी तक गैस की मौजूदा कमी की समस्या को हल नहीं किया जा सका है.