महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच क्यों है सीमा विवाद
२ जनवरी २०२०महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच सीमा विवाद बढ़ गया है. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने इस विवाद को सुलझाने के लिए दो मंत्रियों छगन भुजबल और एकनाथ शिंदे की समन्वय समिति बनाई है. दोनों राज्यों का यह विवाद सुप्रीम कोर्ट में भी लंबित है. ठाकरे ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार इस मामले पर गंभीर है. इसके लिए वे कानून सलाह ले रहे हैं और एक समयबद्ध तरीके से इस विवाद को सुलझाने पर काम कर रहे हैं.
29 दिसंबर को कर्नाटक के बेलगावी जिले में उद्धव ठाकरे के पुतले जलाए गए. वहीं महाराष्ट्र के कोल्हापुर में कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के पुतले जलाए गए. दोनों राज्यों ने इन इलाकों में जाने वाली रोडवेज बसों को भी बंद कर दिया है.
क्या है विवाद की वजह
1947 से पहले महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्य अलग नहीं थे. तब बॉम्बे प्रेसीडेंसी और मैसूर स्टेट हुआ करते थे. आज के कर्नाटक के कई इलाके भी तब बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा थे. आज के बीजापुर, बेलगावी (पुराना नाम बेलगाम), धारवाड़ और उत्तर कन्नड जिले बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा थे. बॉम्बे प्रेसीडेंसी में मराठी, गुजराती और कन्नड भाषाएं बोलने वाले लोग रहा करते थे. भारत की आजादी के बाद राज्यों का बंटवारा शुरू हुआ. बेलगाम में मराठी बोलने वालों की संख्या कन्नड बोलने वालों की संख्या से ज्यादा थी. बेलगाम नगरीय निकाय ने 1948 में मांग की कि इसे मराठी बहुल होने के चलते प्रस्तावित महाराष्ट्र राज्य का हिस्सा बनाया जाए.
1956 में राज्य पुनर्गठन कानून लागू हुआ तो बेलगाम को महाराष्ट्र की जगह मैसूर स्टेट का हिस्सा बना दिया गया. मैसूर स्टेट का नाम बदलकर 1973 में कर्नाटक हो गया. 1948 में बेलगाम को महाराष्ट्र में मिलाने की मांग के साथ ही महाराष्ट्र एकीकरण समिति नाम से एक समूह बन गया. इस समिति की मांग थी कि कर्नाटक में आने वाले 800 मराठी भाषी गांवों को कर्नाटक से निकालकर महाराष्ट्र का हिस्सा बनाया जाए. इनमें से अधिकतर गांव बेलगाम जिले का हिस्सा थे. बेलगाम शहर में भी मराठी भाषी ज्यादा हैं इसलिए बेलगाम को भी महाराष्ट्र में मिलाने की मांग आई.
1957 में महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र से इस पर आपत्ति जताई. इस मांग को लेकर महाराष्ट्र के एक नेता सेनापति बापत भूख हड़ताल पर बैठ गए. महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र सरकार से इस मुद्दे पर एक आयोग बनाने की मांग की. 1966 में केंद्र सरकार ने एक रिटायर्ड न्यायाधीश मेहर चंद महाजन की अध्यक्षता में महाजन कमीशन बना दिया. इस कमीशन ने 1967 में अपनी रिपोर्ट दी. इस रिपोर्ट में सिफारिश थी कि उत्तर कन्नड जिले में आने वाले कारवाड सहित 264 गांव महाराष्ट्र को दे दिए जाएं. साथ ही हलियल और सूपा इलाके के 300 गांव भी महाराष्ट्र को दे दिए जाएं. हालांकि इनमें बेलगाम शहर शामिल नहीं था. इसके अलावा महाराष्ट्र के शोलापुर समेत 247 गांव कर्नाटक को दिए जाएं. साथ ही केरल का कासरगोड जिला भी कर्नाटक को दे दिया जाए.
महाराष्ट्र और केरल, दोनों की राज्य सरकारों ने आयोग की रिपोर्ट का विरोध किया. महाराष्ट्र सरकार ने इस रिपोर्ट को बिना तर्क वाली और एकपक्षीय बताया. इस विरोध के चलते केंद्र सरकार ने रिपोर्ट को लागू नहीं किया. 1983 में बेलगाम में पहली बार नगर निकाय के चुनाव हुए. इन चुनावों में महाराष्ट्र एकीकरण समिति के प्रभाव वाले उम्मीदवार ज्यादा संख्या में जीतकर आए. नगर निकाय और 250 से ज्यादा मराठी बहुल गांवों ने राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजा कि उन्हें महाराष्ट्र में मिला दिया जाए. इसके विरोध में 1986 में कर्नाटक में कई जगह हिंसा हुई जिनमें नौ लोग मारे गए. बेलगाम के लोगों ने मांग की कि उन्हें सरकारी आदेश मराठी भाषा में दिए जाएं. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और विवाद चलता रहा.
2005 में बेलगाम नगर निकाय ने फिर से महाराष्ट्र में मिलने की सिफारिश वाला प्रस्ताव पास कर कर्नाटक सरकार को भेजा. कर्नाटक सरकार ने इस प्रस्ताव को अंसवैधानिक बताकर रद्द कर दिया. साथ ही बेलगाम नगर निकाय को भी भंग कर दिया. महाजन एकीकरण समिति के नेताओं ने इसका विरोध किया और इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी. समिति ने कर्नाटक सरकार पर मराठियों की आवाज दबाने का आरोप लगाया. दिसंबर 2005 में महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इस विवाद को सुलझाने की अपील दाखिल की. महाराष्ट्र सरकार ने मांग की कि फैसला आने तक इस इलाके को केंद्र सरकार के अधिकार में ले लिया जाए. हालंकि ऐसा नहीं हुआ. इस याचिका पर अभी सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं आया है.
2006 में बेलगावी पर अपना दावा मजबूत करने के लिए कर्नाटक सरकार ने विधानसभा का एक पांच दिवसीय विशेष सत्र बेलगावी में बुलाया. साथ ही तय किया कि विधानसभा का शीत सत्र यहीं बुलाया जाएगा. 2012 में कर्नाटक सरकार ने बेलगावी में सुवर्ण विधानसौदा नाम से एक नई विधानसभा की इमारत का यहां उद्घाटन किया. यहां पर विधानसभा का शीत सत्र बुलाया जाता है.
2019 में मुख्यमंत्री बनने के बाद उद्धव ठाकरे से महाराष्ट्र एकीकरण समिति के नेताओं ने इस मुद्दे पर ध्यान देने की मांग की. ठाकरे ने इस पर दो सदस्यों की समिति बनाई. इसके विरोध में कर्नाटक नवनिर्माण सेना नाम के समूह ने बेलगावी में उद्धव का पुतला जलाया. कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने कहा कि कर्नाटक की एक इंच जमीन भी किसी राज्य को देने का सवाल नहीं उठता. विरोध में कोल्हापुर में उनका पुतला जलाया गया. साथ ही सिनेमाघरों से कन्नड फिल्मों को हटवा दिया गया. फिलहाल दोनों राज्यों की सीमा पर पुलिसबल बड़ी संख्या में तैनात हैं.
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