फिर जागा बोडोलैंड का भूत
असम में विभिन्न बोडो संगठनों ने बीजेपी सरकार पर राजनीतिक साजिश रचने का आरोप लगाते हुए आंदोलन का बिगुल बजा दिया है.
अखिल बोडो छात्र संघ (आब्सू), नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट आफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) और पीपल्स जॉइंट एक्शन कमिटी फॉर बोडोलैंड ने अलग राज्य की मांग में नए सिरे से आंदोलन का फैसला किया है.
इन संगठनों ने जातीय बोडो लोगों की सुरक्षा व अधिकार सुनिश्चित करने और एक संयुक्त बोडो राष्ट्र की मांग की है. उनका आरोप है कि बोडोलैंड मसले के समाधान का झूठा वादा कर एनडीए सरकार सत्ता पर काबिज हुई थी.
असम के बोडोबहुल इलाके में अलग राज्य की मांग में आंदोलन का इतिहास आठ दशक से भी ज्यादा पुराना है. लेकिन उपेंद्रनाथ ब्रह्म की अगुवाई में अखिल बोडो छात्र संघ (आब्सू) ने दो मार्च, 1987 को बोडोलैंड को अलग राज्य का दर्जा देने की मांग में जोरदार आंदोलन छेड़ा था.
इसी दौरान उग्रवादी संगठन बोडो सेक्यूरिटी फोर्स के गठन के बाद आंदोलन हिंसक हो उठा. यही संगठन आगे चल कर वर्ष 1994 में नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) बन गया.
एनडीएफबी और आब्सू के नेताओं के बीच टकराव भी उसी समय शुरू हुआ.
ताकतवर बोडो छात्र संघ आब्सू के नेता भारतीय संविधान के तहत अलग राज्य की मांग कर रहे थे लेकिन एनडीएफबी भारत से अलग होकर बोडोलैंड नामक आजाद देश की मांग कर रहा था.
बोडोलैंड टेरीटोरियल ऑटोनोमस डिस्ट्रिक्ट के चार जिलों-कोकराझार, चिरांग, बक्सा और उदालगुड़ी की आबादी में लगभग 30 फीसदी बोडो हैं. यही इलाके की सबसे बड़ी जनजाति है.
असम सरकार ने वर्ष 1993 में बोडोलैंड स्वायत्त परिषद के गठन के लिए आब्सू के साथ समझौता किया था. लेकिन यह प्रयोग नाकाम रहने के बाद आब्सू ने वर्ष 1996 में नए सिरे से अलग राज्य के लिए आंदोलन शुरू कर दिया. उसी साल बोडोलैंड लिबरेशन टाइगर्स (बीएलटी) नामक उग्रवादी संगठन का भी उदय हुआ.
फरवरी, 2003 में केंद्र ने बीएलटी के साथ बोडो समझौता किया. बीएलटी ने समझौते के बाद हथियार डाल दिए और बोडोलैंड टेरीटोरियल काउंसिल पर इसी संगठन का कब्जा हो गया. बाद में इसने बोडो पीपल्स पार्टी नामक राजनीतिक पार्टी का गठन किया जो फिलहाल राज्य में बीजेपी सरकार की सहयोगी है.