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तमिलनाडु: बिहारी मजदूरों की हत्या की फेक न्यूज किसने फैलाई

मनीष कुमार
७ मार्च २०२३

तमिलनाडु में हुई 2 मौतों के बाद फेक न्यूज और कहीं के भी वीडियो को इनसे जोड़कर खूब वायरल किए गए. बड़ा सवाल यह है कि ये अफवाहें किसने और क्यों फैलाईं.

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तमिलनाडु में बिहार के लोगों के साथ मारपीट व हत्या की अफवाह इतनी तेजी से फैली कि बिहार के कामगार बड़ी संख्या में वापस लौट आए. इस अफवाह के फैलने में मीडिया, सोशल मीडिया और राजनीतिक पार्टियों व नेताओं की बड़ी भूमिका रही.
तमिलनाडु में बिहार के लोगों के साथ मारपीट व हत्या की अफवाह इतनी तेजी से फैली कि बिहार के कामगार बड़ी संख्या में वापस लौट आए. इस अफवाह के फैलने में मीडिया, सोशल मीडिया और राजनीतिक पार्टियों व नेताओं की बड़ी भूमिका रही.तस्वीर: Manish Kumar/DW

तमिलनाडु में बिहार के लोगों के साथ मारपीट व हत्या की अफवाह इतनी तेजी से फैली कि बिहार के कामगार बड़ी संख्या में वापस लौट आए. इस अफवाह के फैलने में मीडिया, सोशल मीडिया और राजनीतिक पार्टियों व नेताओं की बड़ी भूमिका रही. एक के बाद एक कई झूठे वायरल वीडियो ने आग में घी डालने का काम किया. हालांकि, बिहार और तमिलनाडु सरकार ने बेहतरीन आपसी तालमेल से वास्तविक स्थिति को सामने लाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. फैक्टचेकर्स की मेहनत से भी साफ हो गया कि जान-बूझ कर तमिलनाडु में बिहार के कामगारों पर हमले की अफवाह फैलाई गई. बड़ा सवाल यह है कि ये अफवाहें किसने और क्यों फैलाईं? 

दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार, करीब डेढ़ माह पहले तमिलनाडु के तिरुपुर में चाय की एक दुकान में सिगरेट के धुएं को लेकर उठा विवाद अफवाहों की वजह से इतना बड़ा बवंडर बन गया. विवाद हुआ तो उत्तर भारतीय जुटे और स्थानीय लोगों को दौड़ा लिया. कुछ लोगों ने इसका वीडियो बनाकर उसे वायरल कर दिया. कुछ तमिल संगठनों ने इसे अपनी अस्मिता का मुद्दा बना दिया और फिर शुरू हो गया फर्जी वीडियो और अफवाहों का दौर. इसके बाद बाहरी कामगारों की प्रताड़ना की अफवाह से प्रवासियों के लौटने की शुरुआत हो गई. 

दो मौतों की अफवाह से फैली दहशत

इस बीच तमिलनाडु में बिहार के जमुई जिले के सिकंदरा थाना क्षेत्र के दो लोगों की मौत का मामला सामने आ गया. इससे माहौल और गरमा गया. तिरुपुर में धंधौर निवासी कामेश्वर यादव के पुत्र पवन यादव की हत्या कर दी गई थी. एक और मामले में रविदास टोले के एक युवक का शव 26 फरवरी को फंदे से झूलता हुआ मिला था. दोनों की मौत को बिहारियों पर तमिलों के हमलों से जोड़ दिया गया, जिससे बिहार व दूसरे हिंदीभाषी राज्यों के कामगारों में डर फैला.

जमुई जिले में यह खबर फैलने पर पुलिस अधीक्षक डॉ. शौर्य सुमन ने इसका खंडन करते हुए कहा कि वहां से ऐसी कोई बात नहीं बताई गई है. इस संबंध में फर्जी वीडियो वायरल किया जा रहा है. इसे वायरल करने वाले की पहचान की जा रही है. त्वरित कार्रवाई करते हुए जमुई पुलिस ने अफवाहों के बीच हकीकत की तलाश करते हुए बीते शुक्रवार को तिरुपुर से लौटे तथा वहां मौजूद कामगारों से बातचीत की.

पता चला कि किसी व्यक्ति ने अपनी आंख से किसी तरह की हिंसा नहीं देखी. हर कोई मोबाइल फोन पर वीडियो और मैसेज आने का हवाला दे रहा था. जिस पवन की हत्या का वीडियो वायरल कर दहशत का माहौल बनाया गया था, उसका कत्ल किसी महिला से संबंध के शक में किया गया था. इस मामले में पुलिस ने झारखंड निवासी उपेंद्र धारी को गिरफ्तार किया. तिरुपुर के पुलिस उपायुक्त समेत त्रिची तथा कोयंबटूर के पुलिस व प्राशासनिक अधिकारियों ने भी बिहारियों पर हमले की वायरल खबरों को फर्जी व अफवाह बताया.

बिहार पुलिस की जांच में भी यह बात सामने आई है कि सोशल मीडिया पर प्रवासी बिहारी कामगारों के साथ हिंसा की अफवाह साजिश के तहत फैलाई गई.
बिहार पुलिस की जांच में भी यह बात सामने आई है कि सोशल मीडिया पर प्रवासी बिहारी कामगारों के साथ हिंसा की अफवाह साजिश के तहत फैलाई गई.तस्वीर: Manish Kumar/DW

गरमाई राजनीति, हमलावर हुई भाजपा

इधर, जैसे ही बिहार में तमिलनाडु से कामगारों के लौटने की खबरें मीडिया की सुर्खियां बनने लगीं, राजनीति भी तेज हो गई. पिछले हफ्ते इसे लेकर विधानसभा सत्र के दौरान जमकर हंगामा हुआ. भाजपा ने नीतीश सरकार को इस मुद्दे पर घेरते हुए सदन की कार्यवाही का बहिष्कार तक किया. बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता विजय कुमार सिन्हा ने कहा, 'बिहार सरकार इन घटनाओं को छुपाना चाहती है. जबकि तमिलनाडु से लौटकर आने वाले मजदूरों ने जो आपबीती सुनाई है, उससे साफ है कि वहां उनके साथ अन्याय हुआ है. बिहारी मजदूरों के मान-सम्मान के लिए नीतीश सरकार को अविलंब ठोस कदम उठाना चाहिए.'

उन्होंने उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव पर भी निशाना साधते हुए कहा, 'इस प्रकरण को झूठा ठहराते हुए इसे भ्रम फैलाने वाला कहकर उन्होंने अपनी मजदूर विरोधी मानसिकता दिखा दी है. जो हवाई जहाज पर केक काटते हैं, उन्हें मजदूरों के दुख-दर्द का अंदाजा कैसे होगा?' वहीं, इस मुद्दे को लेकर जदयू और डीएमके ने जमकर पलटवार किया. डीएमके के नेता टीकेएस एलंगोवन ने कहा कि भाजपा अफवाह की राजनीति कर रही है और तमिलनाडु में कामगार पूरी तरह सुरक्षित हैं.

जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा कि भाजपा कनफुकवा पार्टी है, अफवाह फैलाना उनकी हताशा का प्रतीक है और उन्हें दिल्ली की गद्दी जाने का भय सता रहा है. उपमुख्यमंत्री व आरजेडी नेता तेजस्वी प्रसाद यादव ने भी भाजपा की आलोचना करते हुए कहा, 'यह दो राज्यों के बीच का मामला है. हम तमिलनाडु गई टीम की रिपोर्ट की प्रतीक्षा कर रहे हैं. इस मुद्दे को लेकर सरकार काफी गंभीर है.' आरजेडी ने तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों पर हमले की फर्जी खबर पर ओछी राजनीति करने का आरोप लगाते हुए भाजपा से सार्वजनिक रूप से माफी मांगने को कहा है.

एक्शन में नीतीश सरकार, अफसरों की टीम भेजी

उत्तर भारतीयों पर कथित हमले की खबर के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देश पर अफसरों की एक टीम शनिवार को तमिलनाडु पहुंच गई. इस चार सदस्यीय टीम में ग्रामीण विकास विभाग के सचिव डी. बालामुरुगन, सीआईडी के आइजी पी. कन्नन, श्रम विभाग के आयुक्त आलोक कुमार और स्पेशल टास्क फोर्स के एसपी संतोष कुमार शामिल हैं. यह टीम वहां कामगारों से मिलकर उनकी समस्या को जानने का प्रयास करेगी तथा सोशल मीडिया में वायरल वीडियो को लेकर स्थानीय लोगों व अधिकारियों से बातचीत करेगी.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, इस टीम ने तिरुपुर में जिला प्रशासन द्वारा श्रमिकों की सुरक्षा के लिए उठाए कदमों पर संतोष जताया है. डी. बालामुरुगन के नेतृत्व में गई टीम ने जिलाधिकारी एस विनीत, पुलिस कमिश्नर प्रवीण कुमार, टेक्सटाइल उद्योग के प्रतिनिधियों तथा दूसरे राज्यों से मजदूरों को लाने वाले ठेकेदारों से भी बातचीत की. बिहार से गई इस टीम के सदस्यों ने कामगारों से भी बातचीत कर उनसे अफवाहों पर ध्यान नहीं देने का आग्रह किया.

केवल तिरुपुर में ही रेडीमेड कपड़ों और इससे संबंधित फैक्ट्रियों में करीब पौने दो लाख प्रवासी कामगार कार्यरत हैं.  तमिलनाडु पुलिस ने हेल्पलाइन नंबर भी जारी किए हैं, जिस पर बिहार से जुड़े प्रभावित लोग अपनी शिकायत या समस्या दर्ज करा सकते हैं.

इस बीच तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने भी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को फोन कर वहां रह रहे बिहार के लोगों की सुरक्षा का भरोसा दिलाया. उन्होंने कहा, 'उत्तर भारत के जो लोग यहां काम कर रहे हैं, वे सभी सुरक्षित हैं. उन पर किसी भी तरह आंच नहीं आने दी जाएगी. यदि किसी के साथ कुछ होता है, तो वह पुलिस को सूचना दे. उस पर तुरंत कार्रवाई की जाएगी. सभी कामगार हमारे हैं.' तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने भी ट्वीट कर कहा कि श्रमिकों को घबराने की जरूरत नहीं है और तमिलनाडु के लोग अच्छे व मिलनसार हैं.

कई पर एफआईआर, एक गिरफ्तार

एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार इस बीच तमिलनाडु पुलिस ने प्रवासी श्रमिकों पर हमले की अफवाह के बाद राज्य के भाजपा अध्यक्ष के. अन्नामलाई के खिलाफ अलग-अलग धाराओं में एफआईआर दर्ज की है. इसके अलावा पुलिस ने अफवाह फैलाने के आरोप में एक हिंदी दैनिक समाचारपत्र के संपादक, दो सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और भाजपा प्रवक्ता प्रशांत उमराव के खिलाफ भी मामला दर्ज किया है.

इधर, बिहार पुलिस की जांच में भी यह बात सामने आई है कि सोशल मीडिया पर प्रवासी बिहारी कामगारों के साथ हिंसा की अफवाह साजिश के तहत फैलाई गई. सब कुछ सुनियोजित तरीके से किया गया. एडीजी जे. एस. गंगवार ने 6 मार्च को पटना में पत्रकारों को बताया कि ऐसे 30 आपत्तिजनक वीडियो व पोस्ट की पहचान की गई है. बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध इकाई (ईओयू) के थाने में इस मामले में एफआईआर की गई है. पुलिस मुख्यालय के अनुसार प्रारंभिक जांच में भ्रामक खबरों को आधार बनाकर ही अफवाह फैलाए जाने की बात सामने आ रही है.

आपत्तिजनक पोस्ट के मामले में जमुई जिले के लक्ष्मीपुर थाना क्षेत्र अंतर्गत दिघ्घी निवासी अमन कुमार, पोर्टल चलाने वाले मनीष कश्यप व राकेश तिवारी तथा ट्विटर यूजर युवराज सिंह राजपूत पर प्राथमिकी दर्ज की गई है. अमन कुमार को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. बिहार पुलिस ने यह भी साफ किया है कि तमिलनाडु में बिहार के लोगों पर हमले के वीडियो पुराने हैं. एक वीडियो झारखंड तथा बिहार के एक व्यक्ति के आपसी विवाद से संबंधित है, वहीं व्यक्ति की हत्या कर उसे फंदे से लटकाने वाला वायरल वीडियो किसी की आत्महत्या का पुराना वीडियो है.

कम मजदूरी पर काम करने को लेकर होता है विवाद

कामगारों पर हमले के वीडियो भले ही फर्जी हों, लेकिन तमिलनाडु से लौटे लोगों का कहना है कि वहां की स्थिति ठीक नहीं है. कामगार धर्मेंद्र कुमार का कहना था कि स्थानीय लोगों की सोच है कि हिंदीभाषी उत्तर भारतीयों के कारण ही उन्हें उचित मजदूरी नहीं मिल पाती है. जो काम वे 800 रुपये में करते हैं, उसके लिए उन्हें हजार रुपये से अधिक मांगने को कहा जाता है. धर्मेंद के साथ रहे जहानाबाद के रंजीत ने भी ऐसी ही बात कही.

जमुई के संजय मांझी का कहना था कि वहां डर का माहौल तो बन ही गया है. उन्हें दीपावली या छठ के मौके पर घर आना था, लेकिन स्थिति के बिगड़ने की बात जानकर वह होली पर ही घर चले आए. उनके साथी रंजय का कहना था कि जो मजदूर लौटना चाह रहे हैं, उन्हें पैसे देने में आनाकानी की जा रही है. अगर मजदूर लौट गए, तो तिरुपुर की फैक्ट्रियों पर ताला लग जाएगा.

दावे-प्रतिदावे जो भी हों, यह तो सच है कि बिहार अभी भी पलायन के दंश को झेल रहा है. एक यक्ष प्रश्न पहले की तरह ही बरकरार है कि आखिरकार ऐसी स्थिति क्यों आ रही है कि लाखों की संख्या में कामगारों को रोजी-रोटी की तलाश में दूसरे राज्यों का रुख करना पड़ रहा है. मनरेगा को छोड़ रोजगार सृजन का कोई बड़ा जरिया नहीं दिख रहा.

6 मार्च को भी बिहार विधानसभा में ग्रामीण विकास विभाग की अनुपूरक मांग पर हुई बहस के दौरान मंत्री श्रवण कुमार ने कहा कि केंद्र सरकार की उपेक्षा के कारण राज्य से श्रमिकों का पलायन बढ़ा है. चालू वित्त वर्ष में मनरेगा के तहत 27 करोड़ श्रम दिवस की मांग की गई थी. तीन किस्तों में 25 करोड़ श्रम दिवस की स्वीकृति मिली तथा इसके लिए निर्धारित धन का आवंटन भी समय पर नहीं किया जाता है. जाहिर है, एक-दूसरे पर दोषारोपण का खेल निर्बाध जारी है.

तमाम सरकारी दावों के बीच राज्य में उद्योग-धंधों की स्थिति जस-की-तस ही है. निवेशकों को आकर्षित करने के प्रयासों का बेहतर नतीजा नहीं मिल रहा. खेती-किसानी के लिए राज्य में मजदूर बमुश्किल मिल रहे. जबकि इन्हीं मजदूरों की बदौलत दूसरे राज्यों की अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है. ऐसे प्रवासी कामगारों का सटीक आंकड़ा भी राज्य सरकार के पास नहीं है. कोरोना महामारी के समय इसकी सख्त जरूरत महसूस की गई थी. दूसरे राज्यों के निवासियों को जब-जब अपनी हकमारी का डर सताएगा, तब-तब प्रवासी कामगारों को संकट का सामना करना पड़ेगा.

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