1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

भारत सरकार पर दबाव बनातीं सॉफ्ट ड्रिंक कंपनियां

१५ अप्रैल २०२२

भारतीय में अरबों डॉलर का कारोबार करने वाली कुछ बड़ी कंपनियां, सरकार पर अपना फैसला बदलने के लिए दबाव डालने की कोशिश कर रही हैं. ये कंपनियां जानती है कि उनका तरीका पर्यावरण को बर्बाद कर रहा है.

https://p.dw.com/p/49z6t
कोका कोला
दबाव डालने वालों में कोका कोला, पेप्सिको, डाबर और पार्लेतस्वीर: Igor Golovniov/Zuma/picture alliance

भारत में एक जुलाई 2022 से कोई भी कोल्ड ड्रिंक कंपनी प्लास्टिक स्ट्रॉ इस्तेमाल नहीं कर सकेगी. भारत सरकार ने 12 अगस्त 2021 को सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने की अधिसूचना जारी की. सरकार का कहना है कि सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल करने वाली कंपनियों को समय रहते नया रास्ता तलाशने के लिए नोटिस भी दिया गया. अब एक जुलाई 2022 से प्रतिबंध लागू होने जा रहा है.

सॉफ्ट ड्रिंक्स बनाने वाली कंपनियां भारत में हर साल 6.5 अरब डॉलर का कारोबार करती हैं. इस बाजार में प्लास्टिक स्ट्रॉ के साथ बिकने वाले जूस और डेयरी प्रोडक्ट्स के छोटे पैकेटों की हिस्सेदारी 79 करोड़ डॉलर की है. इन पैकेटों की पैकेजिंग, पर्यावरण को खस्ताहाल करने में बड़ी भूमिका निभाती है.

राजधानी नई दिल्ली में कचरा प्रबंधन की एक्सपर्ट चित्रा मुखर्जी इस प्रतिबंध को बेहद जरूरी बताती हैं. मुखर्जी के मुताबिक समंदर तक पहुंचने वाले इंसानी कचरे में प्लास्टिक स्ट्रॉ की मात्रा बहुत ज्यादा है. यह नदियों और महासागरों को प्रदूषित करने के मामले में टॉप 10 में आता है.

समंदर तक पहुंचने वाले प्लास्टिक में सबसे ज्यादा बोतलें और स्ट्रॉ
समंदर तक पहुंचने वाले प्लास्टिक में सबसे ज्यादा बोतलें और स्ट्रॉतस्वीर: Justin Hofman/Greenpeace

सरकार पर दबाव डालने की कोशिश

भारत में कोका कोला, पेप्सिको, पार्ले और डाबर जैसी बड़ी कंपनियां छोटे पैकेटों में जूस, कोल्ड ड्रिंक, लस्सी और फ्लेवर्ड मिल्क बेचती हैं. आम तौर पर ये कैरी ऑन पैकेट होते हैं, जो फौरी प्यास बुझाने के बाद स्ट्रॉ समेत फेंक दिए जाते हैं.

दुनिया और दिमाग में प्लास्टिक स्ट्रॉ के कई विकल्प मौजूद हैं. बीते दो साल में कई देश प्लास्टिक स्ट्रॉ पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा चुके हैं. वहां अब कागज, या लकड़ी के स्ट्रॉ इस्तेमाल किए जा रहे हैं. हालांकि भारत में अपने जूस या इस तरह के दूसरे सामान बेचने वाली दिग्गज कंपनियां इस बैन को टलवाने की कोशिश कर रही हैं. बैन के खिलाफ पेप्सिको, कोका कोला, पार्ले एग्रो और डाबर जैसी कंपनियां अपने पक्ष में लॉबिंग कर रही हैं.

भारत में 79 करोड़ डॉलर का है छोटे पैक वाले सॉफ्ट ड्रिंक्स का बाजार
भारत में 79 करोड़ डॉलर का है छोटे पैक वाले सॉफ्ट ड्रिंक्स का बाजार तस्वीर: IMAGO/Hindustan Times

उद्योग समूह, एक्शन एलायंस फॉर रिसाइक्लिंग बेवरेज कार्टन्स (AARC) के चीफ एक्जीक्यूटिव प्रवीण अग्रवाल कहते हैं, "हमें चिंता है कि यह (प्रतिबंध) डिमांड के पीक सीजन में आ रहा है.”

अग्रवाल ग्राहकों को भी ढाल बनाने की कोशिश करते दिखते हैं, "ग्राहक और ब्रांड मालिकों का सामना बड़ी बाधाओं से होगा.”

पर्यावरण मंत्रालय बनाम दिग्गज कंपनियां

भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने दो बहुराष्ट्रीय (कोका कोला, पेप्सिको) और दो भारतीय कंपनियों (पार्ले और डाबर) के सामने झुकने से इनकार कर दिया है. 6 अप्रैल को पर्यावरण मंत्रालय ने एक मेमो जारी किया. इसमें कहा गया है कि, उद्योग को "विकल्पों को अपनाने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए.” सरकार के मुताबिक इस बारे में उद्योगों को एक साल से भी ज्यादा समय का नोटिस पीरियड दिया गया था.

भारत में कुछ स्टार्ट अप्स और रेस्तरां 2019 से कागज के स्ट्रॉ इस्तेमाल कर रहे हैं
भारत में कुछ स्टार्ट अप्स और रेस्तरां 2019 से कागज के स्ट्रॉ इस्तेमाल कर रहे हैंतस्वीर: Altaf Qadri/AP Photo/picture alliance

समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक AARC ने सरकार पर दबाव डालने की कई कोशिशें कीं. ऐसी ही एक कोशिश अक्टूबर 2021 में की गई. प्रतिबंध के एलान के बाद नए विकल्प तलाशने के बजाए AARC ने पर्यावरण मंत्रालय को खत भेजे. इस चिट्ठियों में तर्क दिया गया कि ऑस्ट्रेलिया, चीन और मलेशिया जैसे देशों में प्लास्टिक स्ट्रॉ का इस्तेमाल जारी है.

भारत सरकार का पक्ष

सरकार को लगता है कि सिर्फ एक बार इस्तेमाल किए जाने वाले प्लास्टिक स्ट्रॉ "लो यूटिलिटी प्रोडक्ट्स” की श्रेणी में आते हैं. इनके बदले कागज के स्ट्रॉ इस्तेमाल किए जा सकते हैं. यूरोपीय संघ के देश, अमेरिका के कई राज्य, कनाडा और ब्रिटेन समेत कई देश हाल के वर्षों में सफलता से प्लास्टिक स्ट्रॉ से मुक्ति पा चुके हैं.

कागज या लकड़ी के स्ट्रॉ, प्लास्टिक की तुलना में थोड़े महंगे जरूर होते हैं, लेकिन ये पर्यावरण को जख्मी नहीं करते हैं. जैविक रूप से जल्दी विघटित होने के कारण लकड़ी और कागज के स्ट्रॉ जमीन और पानी को दूषित नहीं करते हैं.

चीन, मलेशिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की आड़ लेतीं सॉफ्ट ड्रिंक कंपनियां
चीन, मलेशिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की आड़ लेतीं सॉफ्ट ड्रिंक कंपनियांतस्वीर: Mohd Rasfan/AFP

मानने को तैयार नहीं कंपनियां

एक एक दिन गुजरने के साथ बैन लागू होने का समय करीब आ रहा है. लेकिन AARC के चीफ एक्जीक्यूटिव प्रवीण अग्रवाल कहते हैं, "हम सरकार को एक बार फिर मनाने की कोशिश करेंगे.” अग्रवाल के मुताबिक शीतल पेय पदार्थ बेचने वाले उद्योग को अपनी सप्लाई चेन ठीक करने के लिए कम से कम 15 से 18 महीने की जरूरत है, तब जाकर वह दूसरे किस्म के स्ट्रॉ इस्तेमाल कर सकेंगे.

पर्यावरण के लिहाज से बेहद महंगा पड़ता है एक मामूली प्लास्टिक स्ट्रॉ
पर्यावरण के लिहाज से बेहद महंगा पड़ता है एक मामूली प्लास्टिक स्ट्रॉतस्वीर: Mayank Makhija/NurPhoto/picture alliance

जुलाई 2022 से किन किन चीजों पर प्रतिबंध

भारत सरकार ने अगस्त 2021 में प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट अमेंडमेंट रूल्स पास किए. इन नियमों के तहत 20 किस्म के सिंगल यूज प्लास्टिक की पहचान की गई. भारत सरकार के रसायन और पेट्रोकेमिकल्स विभाग द्वारा गठित एक कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक, बहुत सारे कामों में प्लास्टिक सिर्फ एक बार इस्तेमाल करने के बाद फेंक दिया जाता है. इस प्लास्टिक की कीमत भले ही बहुत ही कम हो लेकिन पर्यावरण पर बेहद बुरा असर पड़ता है. पर्यावरण संरक्षण के लिहाज ये प्लास्टिक बेहद महंगा पड़ता है.

"प्रकृति के लिए अभिशाप का उदाहरण भर हैं प्लास्टिक स्ट्रॉ"

ऐसे प्लास्टिक में 50 माइक्रॉन से हल्की पॉलीथिन, प्लास्टिक स्ट्रॉ, टॉफियों के रैपर, रैपिंग प्लास्टिक, फोम कप प्लेट, ईयरबड्स, सिगरेट फिल्टर, प्लास्टिक के बैनर और छोटी बोतलें शामिल हैं.

पूरे भारत में हर दिन भारी मात्रा में इस्तेमाल होता है सिंगल यूज प्लास्टिक
पूरे भारत में हर दिन भारी मात्रा में इस्तेमाल होता है सिंगल यूज प्लास्टिकतस्वीर: Saikat Paul/Pacific Press/picture alliance

भारतीय पर्यावरण मंत्रालय और एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के मुतबिक, देश में 43 फीसदी प्लास्टिक पैकेजिंग में इस्तेमाल होता है. और इसमें सिंगल यूज प्लास्टिक की भरमार है.

एक जुलाई 2022 से इस तरह के सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लागू हो जाएगा. प्रतिबंध कितना कारगर होगा, ये राज्य सरकारों पर भी निर्भर करेगा. आखिरकार प्रतिबंध को जमीन पर लागू करने में उनकी भूमिका निर्णायक होगी.

रिपोर्ट: ओंकार सिंह जनौटी, आदित्य कालरा, नेहा अरोड़ा (रॉयटर्स)

प्लास्टिक पाउच की समस्या से जूझते विकासशील देश