5-10 साल में दुनिया से गायब होने वाला है केला!
१७ अगस्त २०१६कैलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने तीन ऐसी बीमारियों का पता लगाया है जिनकी वजह से केले पर विलुप्त हो जाने का खतरा मंडरा रहा है. इस खोज का फायदा यह हुआ है कि अब वैज्ञानिक केले की ऐसी नस्ल ईजाद करने में जुट गए हैं जिसमें इन घातक बीमारियों की प्रतिरोधक क्षमता हो. डेविस में कैलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता आयोनिस स्टेर्जियोपोलस ने बताया, "हमने पता लगाया है कि केले की तीन सबसे गंभीर बीमारियों में से दो वायरल हो चुकी हैं क्योंकि इन बीमारियों ने केले के भीतर मौजूद पोषक तत्वों को अपने लिए इस्तेमाल करने की योग्यता विकसित कर ली है." स्टेर्जियोपोलस बताते हैं कि अब तक इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया था कि केले के मेटाबोलिज्म में ही बदलाव हो गए हैं.
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केला उन पांच चीजों में शामिल है जो रोजाना के भोजन में सबसे आमतौर पर इस्तेमाल होती हैं. दुनिया के 120 देशों में इसका उत्पादन होता है. सालाना लगभग 10 करोड़ टन केला पैदा किया जाता है. लेकिन जिस तेजी से मौजूदा बीमारियां विकसित हो रही हैं, ऐसा हो सकता है कि आने वाले 5 से 10 साल में पूरा केला उद्योग ही खात्मे के कगार पर पहुंच जाए. इसका असर सिर्फ लोगों के भोजन पर नहीं होगा बल्कि करोड़ों छोटे और मझले किसानों की जिंदगी बर्बादी के कगार पर पहुंच जाएगी. साथ ही केला उद्योग से जुड़े करोड़ों लोगों के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो जाएगा.
सिगाटोका नाम की एक बीमारी पहले ही केले के उत्पादन को 40 फीसदी तक घटा चुकी है. सिगाटोका एक बहुत जटिल किस्म की बीमारी है जिसके अंदर तीन तरह की फुंदियां हैं. पिछली सदी में यह बीमारी अस्तित्व में आई और तेजी से फैली है. इसके दो प्रकार यूमूसाए लीफ स्पॉट और ब्लैक सिगाटोका इस वक्त केले की सबसे खतरनाक बीमारियां हैं. ब्लैक सिगोटा से तो दुनियाभर के लोग परेशान हैं क्योंकि इसकी वजह से उत्पादन में भारी गिरावट देखी जा रही है.
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स्टेर्जियोपोलस बताते हैं कि इस वक्त जो कैवेंडिश केला उगाया जा रहा है दरअसल, वह एक ही नस्ल के अलग-अलग क्लोन हैं. इसका मतलब यह है कि एक ही बीमारी पूरी की पूरी नस्ल को खत्म कर सकती है क्योंकि उनका जीन एक ही है. वह कहते हैं, "जो बीमारी एक पौधे को खत्म कर सकती है, वह सारी पौध को खत्म करने में सक्षम है."
वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि ये बीमारियां ऐसा घातक प्रहार करती हैं कि केले का आत्मरक्षा का पूरा सिस्टम बर्बाद हो जाता है. और इनका प्रहार का तरीका ऐसा खतरनाक है कि ये बीमारियां केले के पौधे में मौजूद पोषक तत्वों को ही अपने बढ़ने का आधार बना लेती हैं. नतीजा यह होता है कि हमलावर फफूंदी ऐसे एंजाइम्स पैदा करती है जो पौधे की कोशिकाओं को तोड़ देती हैं. फिर वे इन कोशिकाओं में मौजूद शर्करा और दूसरे कार्बोहाइड्रेट्स को ही अपना भोजन बना लेती हैं. यानी केला जिस चीज को अपनी ताकत बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करता, वही चीज बीमारी की ताकत बन जाती है. इसका नतीजा यह होगा कि 5-10 साल में केले के सारे पौधों की मौत हो चुकी होगी.
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