ऑटिज्म से प्रभावित लोगों की निगाह से भी देखिए
५ अगस्त २०२२ऑटिज्म वाले लोग ही अपनी स्थिति के बारे में सबसे सही ढंग से बता सकते हैं. वे ऑटिज्म को एक अलग - यानी खुद अपने - नजरिए से देखते हैं. रिकी सेरर यही करते हैं.
सेरर कहते हैं, "ऑटिज्म, मानसिक विकास से जुड़ा एक गंभीर विकार है लेकिन ये सिर्फ उतना ही नहीं है. आपको जन्मजात ऑटिज्म हो सकता है. आपका मस्तिष्क एक गैर-ऑटिस्टिक व्यक्ति के मस्तिष्क से अलग ढंग से काम करता है. हमारे लिए ये संवेदी नजरिए का सवाल है और एक तरीका है जिसके जरिए ऑटिस्टिक व्यक्ति अपने अनुभवों की छंटाई करते हैं."
कई ऑटिस्टिक लोग अपने अनुभवों को अलग अलग बयान नहीं कर पाते हैं, उन्हें छांट कर नहीं देख पाते हैं या उन अनुभवों को फिल्टर कर पाने की उनकी सामर्थ्य अल्प-विकसित होती है.
मस्तिष्क प्रति सेकंड एक करोड़ से कुछ ज्यादा संवेदी छापों को सूचना में बदलता है. हम लोग ऐसे करीब 40 इम्प्रेशन्स यानी छापों के बारे में जानते हैं. सबसे महत्वपूर्ण सूचना और अधिक प्रोसेस होने के लिए आगे आ जाती है – रोजाना प्रति मिनट जो उद्दीपन हम तक पहुंचते हैं, मस्तिष्क उन सभी से निपटने लायक नहीं बना है. लिहाजा हम अपने अनुभवों को चुनते हैं और फिल्टर करते हैं.
लेकिन ऑटिज्म स्पेक्ट्रम में आने वाले सेरर जैसे लोगों के लिए ये एक अलग मामला हो जाता है. सेरर कहते हैं, "हम जो भी देखते, महसूस करते और अनुभूत करते हैं वो सब अनडाइल्युटड यानी विशुद्ध होता है, और हमें उन सबसे निपटना होता है." ये अतिरिक्त उत्तेजना एक स्थायी तनाव है.
अतिरिक्त उत्तेजना से परहेज
ऑटिज्म के मनोरोगी अपने मस्तिष्क की अति उत्तेजना को अलग अलग ढंग से हैंडल करते हैं. वे उन स्थितियों से परहेज करने या निकलने की कोशिश करते हैं जो बहुत प्रचंड होती हैं. ये वो सबसे पहला काम है जो ऑटिस्टिक लोगों को एक सामान्य दिन बिताने के लिए करना चाहिए.
प्रकाश एक फैक्टर हो सकता है. सेरर कहते हैं, "हम हमेशा धूप के चश्मे पहनते हैं और कार में एंटी ग्लेर बचाव का इस्तेमाल करते हैं." 44 साल के सेरर के मुताबिक, "हम रोशनी के प्रति बहुत ही ज्यादा संवदेशनशील हैं. लेकिन अन्य लोग कार की हेडलाइट में सीधे देख सकते हैं. कुछ लोग आपकी आंखों में नहीं देखते हैं जबकि दूसरे लोग मिलने वालों को घूरते हैं." सेरर कहते हैं कि ये जो भी है कोई चीज हमेशा अलग होती है.
दूसरे किस्म के ऑटिस्टिक लोगों को ध्वनि और शोर से निपटने में बहुत ज्यादा तकलीफ होती है. उन्हें खुद को शोर से बचाए रखना होता है जिससे उनके मस्तिष्क पर अतिरिक्त बोझ न पड़े. ऑटिज्म के स्पेक्ट्रम यानी उसकी विस्तृत श्रेणी में आने वाले कुछ लोगों को, दूसरे व्यक्ति से बात करते हुए पृष्ठभूमि के शोर को फिल्टर करने में कठिनाई होती है. अगर बात बिगड़ जाए तो उनका दिमाग चकरा जाता है और वे अस्त-व्यस्त हो जाते हैं.
शोर के खिलाफ शोर का इस्तेमाल
सेरर कहते हैं कि जब शोर बहुत ही ज्यादा होने लगता है तो हालात से निपटने के तरीके भी हैं. उदाहरण के लिए आप नॉयज कैंसलिंग यानी ध्वनिरोधी हेडफोन्स का इस्तेमाल कर सकते हैं. अगर ये उपाय भी काम न करे तो ऑटिस्टिक लोग अक्सर "स्टिमिंग" यानी सेल्फ स्टिमुलेटिंग बिहेवियर (आत्म-उद्दीपक व्यवहार) का उपयोग करते हैं. स्टिमिंग अतिरिक्त उत्तेजना से बचाती है, मस्तिष्क को शांत करती है और अंदरूनी दबाव को निकालने में मदद करती है.
ये रेपिटेटिव यानी पुनरावर्ती व्यवहार हो सकता है जैसे कि कभी आगे कभी पीछे चलना या ऊपर नीचे झूलना या कूदना. लेकिन ये ध्वनियां पैदा करना भी हो सकता है. जैसे कि जोर जोर से गिनती करना या अंगुलियां चटकाना. इन आवाजों के बीच ये उन तकलीफदेह उद्दीपनों को डुबो देने का तरीका है- जिसमें प्रचंड उत्तेजना भी शामिल है, फिर उस स्थिति पर काबू पाना आसान हो जाता है.
सेरर कहते हैं, "कल्पना कीजिए कि आपको खुजली होने लगी है. ये एक बेकाबू, बेहद नागवार सा उद्दीपन है, जिसे आप खुजलाकर नियंत्रित करते हैं- आप एक अनियंत्रित उद्दीपन को अपने एक नियंत्रित उद्दीपन की मदद से ढांप रहे हैं." प्रचंड स्थितियों में सेरर कभी कभार अपना गाल काट लेते हैं.
बाहर निकलना जब मुश्किल होता है
ऑटिज्म से प्रभावित लोगों का बाहर निकलना, दूसरे लोगों से मिलना, भीड़ में निकलना कठिन हो सकता है. सेरर कहते हैं, "हम उन हालातों की तुलना एक वॉशबेसिन से करना चाहते हैं. हर उद्दीपन पानी की एक बूंद की तरह है. वो अंगुली में भर जाने लायक हो सकता है या एक कप या एक बाल्टी में. गैर-ऑटिस्टिक लोगों के लिए पानी लगातार टपकता रह सकता है, वो आखिर में खत्म हो जाएगा. लेकिन ऑटिस्टिक लोगों के लिए, नाली जाम हो जाती है." और उनमें तनाव का स्तर बढ़ता जाता है.
लोगों की आंख में आंख डालकर देखना
सेरर एक दृष्टिहीन दोस्त का जिक्र करते हैं. उनसे मिलना, वे कहते हैं, बहुत खुशगवार होता है क्योंकि उन्हें एक-दूसरे की आंखों में देखने की जरूरत नहीं पड़ती. लेकिन दृष्टिसंपन्न लोगों से मिलना अलग होता है. आई कॉन्टेक्ट बनाने की उनकी प्रवृत्ति होती है.
सेरर कहते हैं, "क्योंकि हमारा दिमाग हर चीज बिना फिल्टर किए हमारी ओर उछाल देता है, तो हम उनके चेहरों की हर हरकत को देख सकते हैं, हर छोटी चीज दिख जाती है, आंख मारना, चिकोटी काटना. ये बहुत ज्यादा हो जाता है और हम किसी भी चीज पर ध्यान नहीं दे पाते हैं."
ऑटिज्म और कीटनाशकों के बीच रिश्ता
ऑटिस्टिक लोग और भावनाएं
लोग अक्सर कहते हैं कि ऑटिस्टिक लोगों में भावना नहीं होती. सेरर इसे समझाते हैं, "ये उल्टा है, ऑटिस्टिक लोगों में भावनाएं बहुत कम नहीं बल्कि बहुत ज्यादा होती हैं. भावनाएं भी उद्दीपन या उत्तेजनाएं हैं. और कुछ लोग नहीं जानते कि वे कैसा महसूस करते हैं."
सारा मामला दुविधापूर्ण है. उनके पास अपनी भावनाओं को समझने और व्यवस्थित करने का समय नहीं होता. और इसके अलावा भी कई ऑटिस्टिक लोग, एक गैर-ऑटिस्टिक व्यक्ति की तरह बर्ताव करने की कोशिश में ही ज्यादा पड़े रहते हैं. और इस चक्कर में अपनी बहुत सारी ऊर्जा और सामर्थ्य गंवा बैठते हैं.
एक अकेली और असाधारण एकाग्रता
ऑटिस्टिक लोग यथासंभव बहुत सारे बाहरी उद्दीपनों को कम करने के लिए खुद को प्रशिक्षित कर लेते हैं. ऐसा कर पाने की बदौलत वो एक अकेली चीज पर ध्यान केंद्रित कर पाते हैं- और बाकी तमाम चीजों को अनदेखा कर देते हैं.
छोटी छोटी चीजें ध्यान को बुरी तरह भटका सकती हैं. ये सिर्फ एक लैंप की फड़फड़ाहट भी हो सकती है. इस हाइपर-फोकस यानी धुर-केंद्रिकता या एक चीज पर समूची एकाग्रता के नकारात्मक प्रभाव भी हो सकते हैं. हो सकता है कि ऑटिस्टिक लोग भूख या प्यास का अहसास ही न कर सकें, बाहर भले ही गर्मी हो या ठंडक.
हर कोशिश एक चीज पर केंद्रित होती है. ये पेचीदा गणितीय सवालों को हल करने से जुड़ी हो सकती है या कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर तैयार करने से. ऑटिस्टिक लोग आईटी कंपनियों में बहुत लोकप्रिय कर्मचारी बन चुके हैं क्योंकि किसी व्यक्ति या किसी चीज से वे डिस्टर्ब नहीं हो पाते हैं.
सचेत और सजग रहना महत्वपूर्ण है
ऑटिज्म वाले लोगों के जीवन बिताने का कोई एक नियत तरीका या स्थान नहीं है. ये किसी भी प्रकार का उद्दीपन या उत्तेजना हो सकती है जो उनके तनाव को बढ़ा सकती है. लेकिन कोई ऐसी सामान्य इकाई या निर्धारित माप नहीं है जो हरेक ऑटिस्टिक व्यक्ति को फिट बैठे.
सेरर कहते हैं, "हमारा सुझाव है कि लोग एक स्पोर्ट वॉच अपने पास रखें क्योंकि ब्लड प्रेशर और नब्ज देखकर स्ट्रेस लेवल को ट्रैक करना आसान हो जाता है." तनाव उन स्थितियों में भी हो सकता है जो यूं आराम के लिए तय होती हैं.
सेरर कहते हैं, "हम जंगल में वॉक कर रहे हो सकते हैं, बिल्कुल अकेले और तब भी हमारा मस्तिष्क अत्यधिक सक्रियता दिखा रहा हो सकता है, सामने से तेज रौशनी का भभका आने की वजह से या हमें कोई तीखी गंध आ जाए या कोई चिड़िया गाना शुरू कर दे, कोई भी चीज ऐसी हो जाए जो पहले से नियोजित या निर्धारित न हो- तो तनाव भड़क सकता है. कोई ऐसा पर्यावरण नहीं है जहां हम एक ऑटिस्टिक व्यक्ति के रूप में सचेत होना छोड़ दें."