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ऑस्ट्रेलिया पर किसने कराया इतना बड़ा साइबर हमला

१९ जून २०२०

ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने सरकार समेत देश की कई बड़ी कंपनियों पर हुए साइबर अटैक को “राज्य-समर्थित” हरकत बताया है. किसी का नाम नहीं लिया गया लेकिन शक की सुई चीन की ओर घूमती दिख रही है.

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ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसनतस्वीर: Reuters/Aap/M. Tsikas

ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने कहा है कि देश बहुत बड़े स्तर के साइबर हमले का शिकार बनाया गया है. सरकार, सार्वजनिक सेवाओं और कारोबार जैसे हर क्षेत्र में ऐसे हमले करवाने में चीन का हाथ होने का शक जताया जा रहा है. प्रधानमंत्री मॉरिसन ने प्रेस क्रॉन्फ्रेंस कर यह जानकारी दी कि अब तक कई संवेदनशील विभागों को निशाना बनाया जा चुका है. उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि आने वाले समय में भी ऑस्ट्रेलियाई लोगों को कुछ "खास तरह के जोखिम" और ऐसे कई हमले झेलने पड़ सकते हैं.

मॉरिसन ने बिना किसी देश पर आरोप लगाए केवल इतना कहा कि ऐसा उच्चस्तरीय साइबर हमला करने की क्षमता अभी केवल मुठ्ठी भर देशों के पास ही है. इनमें चीन, ईरान, इस्राएल, उत्तर कोरिया, रूस, अमेरिका और कुछ गिने चुने यूरोपीय देश शामिल हैं. विश्व के इन्हीं देशों के पास ऐसे विकसित साइबरयुद्ध छेड़ने वाले हथियार हैं. लेकिन इन सबमें हमले के पीछे होने का शक सबसे पहले चीन पर जताया जा रहा है. इसका कारण यह माना जा रहा है कि चीन के कम्युनिस्ट शासन के हितों के खिलाफ बोलने के लिए ऑस्ट्रेलिया को चीन सजा देना चाहता है.

माना जा रहा है कि हाल ही में जब ऑस्ट्रेलिया ने कोरोना वायरस की महामारी की शुरुआत के बारे में जांच कराने की मांग की तो इससे चीन काफी नाराज हो गया. इसके अलावा भी ऑस्ट्रेलिया लगातार चीन की उस तथाकथित आर्थिक "जबरदस्ती" के खिलाफ बोलता आया है जिसे हुआवे जैसी चीनी कंपनियों के माध्यम से फैलाया जाता है. उसका मानना रहा है कि विश्व भर में फैली ऐसी तकनीकी कंपनियां असल में चीन के लिए संवेदनशील सूचनाएं इकट्ठा करने और चीन को उसका फायदा पहुंचाने के लिए काम करती हैं.

उधर चीन ने भी अपने छात्रों और पर्यटकों को ऑस्ट्रेलिया जाने से मना किया है और ऑस्ट्रेलियाई उत्पादों पर कई तरह के व्यापारिक प्रतिबंध लगा दिए हैं. हाल ही में चीन ने एक ऑस्ट्रेलियाई नागरिक को ड्रग्स की तस्करी के लिए मौत की सजा भी सुनाई थी. एक साल पहले भी ऑस्ट्रेलियाई संसद, राजनीतिक दल और कई विश्वविद्यालय ऐसे बड़े स्तर के साइबर हमलों का शिकार बने थे और उस समय भी शक चीन पर ही जताया गया था.

चीन इन आरोपों को "गैरजिम्मेदाराना” अटकलें और उसकी छवि "खराब" करने की कोशिश बताया आया है. विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मामलों में जिम्मेदारी किसी पर ठहराना अकसर बहुत कठिन होता है और उसमें बहुत समय लगता है. अगर दोषी का नाम सार्वजनिक कर दिया जाए तो उससे तनाव के और ज्यादा बढ़ने की संभावना होती है. 

प्रधानमंत्री मॉरिसन ने कहा है कि इस हमले में किसी का भी व्यक्तिगत डाटा चोरी नहीं हुआ है और ज्यादातर हमले असफल रहे. फिर भी भविष्य के लिए उन्होंने स्वास्थ्य और जरूरी सेवाओं से जुड़ी कंपनियों को साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों की राय लेने और उससे बचाव की व्यवस्था करने की सलाह दी है. ऑस्ट्रेलिया ‘फाइव आइज इंटेलिजेंस-शेयरिंग नेटवर्क' का हिस्सा है, जिसके बाकी चार सदस्य ब्रिटेन, कनाडा, न्यूजीलैंड और अमेरिका हैं. इन देशों के पास कई अत्याधुनिक साइबर सुविधाएं भी हैं, लेकिन इसके कारण वे अपने दुश्मनों के निशाने पर भी रहते हैं.

आरपी/सीके (एएफपी, रॉयटर्स, एपी)

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