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अपराधभारत

भारत में बढ़ रहा आदिवासियों पर अत्याचार

चारु कार्तिकेय
४ जुलाई २०२२

संभव है कि कुछ ही दिनों में भारत को पहली आदिवासी राष्ट्रपति मिल जाए, लेकिन धरातल पर आदिवासियों पर अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं. मध्य प्रदेश इस मामले में सबसे आगे है जहां 2020 में इस तरह के मामले 30 प्रतिशत बढ़ गए.

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Indien | Umstrittene Solarparks in den Ausläufern des Himalaya
तस्वीर: Anupam Nath/AP/picture alliance / ASSOCIATED PRESS

अगर एनडीए सरकार राष्ट्रपति पद के लिए अपने उम्मीदवार को जिताने के लिए आंकड़े जुटा लेती है तो संभव है कि भारत को द्रौपदी मुर्मू के रूप में उसकी पहली आदिवासी राष्ट्रपति मिल जाए. लेकिन दूसरी तरफ धरातल पर सच्चाई यह है कि देश में आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार बढ़ता ही जा रहा है.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अपराध के अलग से आंकड़े इकठ्ठा करता है और ब्यूरो की रिपोर्टें दिखाती हैं कि इस तरह के मामलों में कोई कमी नहीं आ रही है.

(पढ़ें: मध्य प्रदेश: गौ हत्या के संदेह पर 2 आदिवासियों की पीट-पीट कर हत्या)

मध्य प्रदेश में हालत ज्यादा खराब

ब्यूरो की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में देश में अनुसूचित जनजाति के लोगों के साथ अत्याचार के 8,272 मामले दर्ज किए गए, जो 2019 के मुताबिक 9.3 प्रतिशत का उछाल है. इन मामलों में सबसे आगे रहा मध्य प्रदेश जहां कुल मामलों में से 29 प्रतिशत मामले (2,401) दर्ज किए गए.

आदिवासी
पश्चिम बंगाल के संथाल आदिवासीतस्वीर: Payel Samanta/DW

आदिवासी मध्य प्रदेश की आबादी का करीब 22 प्रतिशत हैं और सभी राजनीतिक पार्टियों के बीच आदिवासियों के वोट हासिल करने की होड़ लगी रहती है. इसके बावजूद आम आदिवासियों को शोषण और अत्याचार से निजात नहीं मिल पा रही है.

दो जुलाई को ही प्रदेश में एक आदिवासी महिला के साथ हुई एक घटना सामने आई. गुना जिले में रहने वाली रामप्यारी सहरिया पर जमीन के विवाद को लेकर कुछ लोगों ने उनके खेत में हमला कर दिया और उनके शरीर पर डीजल छिड़क कर आग लगा दी.

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आदिवासी महिला को जिंदा जलाया

उसके बाद हमलावरों ने दर्द से कराहती रामप्यारी का वीडियो भी बनाया जो अब सोशल मीडिया तक पहुंच चुका है. सहरिया के पति ने किसी तरह से उन्हें बचाया और अस्पताल पहुंचाया.

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स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार रामप्यारी 80 प्रतिशत जल चुकी हैं. उनका भोपाल के एक अस्पताल में इलाज चल रहा है और उनकी हालत गंभीर बताई जा रही है. मध्य  प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह उन्हें देखने अस्पताल पहुंचे और सरकार से उनका इलाज मुफ्त कराने की मांग की.

ऐक्टिविस्टों का कहना है कि यह घटना प्रदेश में आदिवासियों के हाल की कहानी बयां करती है. ना सिर्फ आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं, बल्कि प्रदेश में इस तरह के मामलों का अदालतों में लंबित रहना भी बढ़ता जा रहा है.

पुलिस, अदालतें भी कर रहीं निराश

एनसीआरबी के मुताबिक अदालतों में आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार के कम से कम 10,302 मामले लंबित हैं. जिन मामलों में सुनवाई पूरी हुई उन्हें कन्विक्शन या सजा होने की दर महज 36 प्रतिशत है.

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आदिवासी
जेलों में बंद कैदियों में भी दलितों और आदिवासियों की संख्या ज्यादा हैतस्वीर: Anindito Mukherjee/dpa/picture alliance

इसका मतलब है आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार के मामलों में पुलिस की जांच में कमी रह जाती है जिसकी वजह से आरोपितों को सजा नहीं हो पाती. गुना वाले मामले में भी रामप्यारी के पति अर्जुन सहरिया ने आरोप लगाया है कि उन्होंने हमलवारों के खिलाफ पहले भी शिकायत की है लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की.

बल्कि दलितों और आदिवासियों के खिलाफ पुलिस के भेदभाव के भी संकेत मिलते हैं. एनसीआरबी के ही आंकड़ों के जेलों में बंद कैदियों में अनुसूचित जनजाति के कैदियों की संख्या भी सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश में ही है.

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