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विदेशों में मरने वाले नेपालियों की संख्या में भारी बढ़त

२७ दिसम्बर २०१६

नेपाल के 10 फीसदी लोग विदेशों में काम करते हैं. लेकिन अब विदेशों में मरने वाले नेपालियों की संख्या बढ़ रही है. पिछले 8 साल में 5000 नेपाली विदेशी जमीन पर जान गंवा चुके हैं.

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Nepal Tote Auswanderer
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/N. Shrestha

छोटे से कद की एक महिला को लोग नजरअंदाज करके गुजर सकते हैं. काठमांडू एयरपोर्ट के बाहर जिस तरह से वह पतली सी शॉल में सिकुड़ी बैठी है, उसे देखकर आप अंदाजा ही लगा सकते हैं कि उसे कितनी ठंड लग रही होगी. लेकिन अपने बच्चे को उसने जिस तरह चिपकाया हुआ है, उससे जाहिर है कि बच्चे को ठंड से पूरी तरह बचा रखा है. लोग गुजर रहे हैं. हिमालय में ट्रेकिंग के लिए जाने वाले बैकपैकर्स पीठ पर वजन लादे गुजर जाते हैं. दर्जनों चीनी पर्यटक हंसते खेलते हुए अपनी पहले से तैयार खड़ी बस में जा बैठते हैं. चमकती नीली वर्दियों में एक एयरलाइंस का स्टाफ टक-टक की आवाज करते छोटे कद की इस महिला के पास से गुजर जाता है. हर ओर जिंदगी अपनी रफ्तार से चल रही है. बस सरोज कुमारी मंडल की जिंदगी थम गई है. 26 साल की सरोज कड़कड़ाती ठंड को शायद इसलिए एक पतली सी शॉल में झेल पा रही है क्योंकि दुख का ताप उसे जला रहा है. अपने पति को खो देने का दुख. उसका पति, जो परदेस में कमाने गया था, आज लौट रहा है. एक ताबूत में.

नेपाल से हर रोज सैकड़ों नौजवान परदेस में नौकरी के लिए जाते हैं. जिस रोज सरोज एयरपोर्ट के बाहर बैठी अपने पति के ताबूत का इंतजार कर रही है, उस रोज भी 1500 युवक विदेश गए हैं. और छह लौटे हैं, ताबूतों में, जिनमें से हरेक पर टैग लगा है. एक टैग पर सरोज के पति नाम लिखा है: बालकिशन मंडल खटवे का शव.

हाल के सालों में नेपाल ने अपने लोगों को नौकरी के लिए विदेश भेजने के लिए प्रोत्साहन बढ़ाया है. इस कारण बाहर जाने वाले युवकों की संख्या दोगुनी हो गई है. ज्यादातर लोग सऊदी अरब और मलेशिया जाते हैं. नेपाल सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 2008 में लगभग दो लाख 20 हजार नेपाली विदेशों में नौकरी करने गए थे. 2015 में यह संख्या दोगुने को पार कर चुकी थी. इस साल पांच लाख लोग विदेश गए. लेकिन ताबूतों में लौटने वालों की तादाद कई गुना बढ़ गई है. 2008 में विदेश जाने वाले हर 2500 कामगारों में से एक की मौत विदेशी जमीन पर हुई थी. बीते साल, हर 500 में से एक नेपाली. 2008 से अब तक 5000 नेपाली विदेशों में मारे गए हैं. यह संख्या इराक युद्ध में मारे गए अमेरिकी सैनिकों से भी ज्यादा है.

Nepal Tote Auswanderer
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/N. Shrestha

इन लोगों के मरने के कारणों में अक्सर कुदरती मौत लिखा होता है, जिसका मतलब समझा जाता है कि दिल का दौरा पड़ा होगा. यानी जब दिनभर के थकाऊ काम के बाद बंदा बिस्तर पर लेटा तो फिर उठा ही नहीं. सरोज को भी उसके पति के बारे में यही बताया गया है. लेकिन डॉक्टर इस वजह को संदेह की नजर से देख रहे हैं क्योंकि एक पैटर्न है जो हर मौत में नजर आता है. ऐसा हर दशक में होता है जब एशियाई प्रवासी नींद में मरने लगते हैं. ऐसा अमेरिका में 1970 के दशक में हुआ था. सिंगापुर में 80 के दशक में और इस दशक में चीन में ऐसा ही हुआ. दर्जनों लोग सोए और फिर कभी नहीं जगे. इस पैटर्न को डॉक्टर अनएक्सप्लेन्ड नॉक्टरनल डेथ सिंड्रोम कहते हैं. अब इन मौतों की जांच की योजना बनाई जा रही है. अगले साल से यह जांच शुरू होगी क्योंकि इस साल तो अब बहुत देर हो चुकी है.

नेपाल के 2.8 करोड़ लोगों में से 10 फीसदी विदेश में काम करते हैं. वे हर साल 6 अरब डॉलर देश भेजते हैं, यानी कुल आय का 30 प्रतिशत. विदेश से आने वाली आय के मामले में नेपाल से आगे बस ताजिकिस्तान और किर्गिस्तान ही हैं. नेपाली दूतावास अपने कामगारों को खूब प्रोत्साहित करते हैं. दोहा, कतर के दूतावास ने अपनी वेबसाइट पर लिख रखा है, "नेपाली कामगार अपनी मेहनत, लगन और वफादारी के लिए जाने जाते हैं. ये लोग मुश्किल से मुश्किल मौसम में भी काम कर सकते हैं." और सरकार कहती है कि इतने लोग बाहर जाएंगे तो कुछ लोग मरेंगे भी. नेपाली सरकार के विदेशी रोजगार विभाग की प्रवक्ता रमा भट्टराई कहती हैं, "वहां वे विदेशी कर्मचारी के रूप में मरते हैं. यहां वे तब मरते हैं जब बस खड्ड में गिर जाती है."

सरोज ने ताबूत में बंद अपने पति को रिसीव कर लिया है. तीन साल का उसका बेटा चमकीले ताबूत के इर्द-गिर्द खेल रहा है. वह घर लौटने के इंतजार में खड़ी है क्योंकि अभी सफर खत्म नहीं, शुरू हुआ है.

वीके/एमजे (एएफपी)