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घट रही है भारत में कामकाजी महिलाओं की संख्या

आदिल भट
१२ मई २०२३

जनसंख्या के मामले में भारत चीन को पीछे छोड़ चुका है और 2030 तक भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने को तैयार है. लेकिन भारत अभी भी एक पितृसत्तात्मक समाज बना हुआ है.

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सबसे बड़ी आबादी और महिलाओं को काम नहीं
सबसे बड़ी आबादी और महिलाओं को काम नहींतस्वीर: Kabir Jhangiani/ZUMA Press/picture alliance

अमनजीत कौर नई दिल्ली स्थित ऑनक्यू मीडिया (ONQUE Media) में सलाहकार रह चुकी हैं. पांच साल पहले कॉर्पोरेट की दुनिया में तेजी से सफलता की सीढ़ियां चढ़ रही थीं. वो मार्केटिंग जॉब कर रही थीं, कंटेंट बनाती थीं और अलग-अलग कंपनियों के लिए वेबसाइट्स डिजाइन करती थीं. अपने इस काम से उन्हें काफी लगाव था. काम में इतना व्यस्त रहती थीं कि अपने लिए उन्होंने सोचने की फुर्सत बहुत कम मिलती थी.

लेकिन शादी ने उनके जीवन को पूरी तरह से बदल दिया. परिवार के दबाव के कारण उन्होंने अपना करियर छोड़ने का फैसला किया. हालांकि यह आसान नहीं था लेकिन उनका मानना था कि बच्चे की परवरिश का नैतिक दायित्व उनकी पेशेवर महत्वाकांक्षाओं से ऊपर है.

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अब जबकि उनका बेटा बड़ा हो गया है, तो उन्हें लगता है कि अब वापस काम पर जाना चाहिए. लेकिन दोबारा वापसी के लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ रहा है. डीडब्ल्यू से बातचीत में वह कहती हैं, "अपना करियर छोड़ना मेरे लिए शारीरिक और मानसिक तौर पर सबसे बड़ा झटका था. कई साल बाद अब करियर में दोबारा वापसी करना बड़ा मुश्किल लग रहा है. मुझे लगता है कि बाहर जाने और काम करने को लेकर मुझमें आत्मविश्वास की कमी आ गई है.”

रूपी सिंह ने शादी से पहले पंजाब के एक गांव के पब्लिक स्कूल में पांच साल तक पढ़ाया था. वो राजनीति शास्त्र में पोस्ट ग्रैजुएट हैं. लेकिन शादी के बाद उनके ससुराल वालों ने नौकरी छोड़ने का दबाव बनाया क्योंकि स्कूल उनके घर से काफी दूर था. डीडब्ल्यू से बातचीत में रूपी सिंह कहती हैं कि नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर होने के बाद वह एक हफ्ते तक रोती रहीं. फिलहाल वह अपना समय घरेलू कामों में बिता रही हैं.

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वह कहती हैं, "मेरे पास अब पैसे भी नहीं हैं और मुझे अपनी हर जरूरत के लिए अपने पति से पैसे मांगने पड़ते हैं- अपने निजी खर्चों से लेकर घरेलू खर्चों तक के लिए. यह मुझे बहुत बुरा लगता है.”

लाखों महिलाएं नौकरियां छोड़ रही हैं

अमनजीत और रूपी की तरह शादी और बच्चे होने के बाद हर साल लाखों महिलाएं अपना करियर छोड़ रही हैं. भारत सबसे ज्यादा आबादी वाले देश के तौर पर इस साल चीन को भी पीछे छोड़ चुका है और सबसे तेज रफ्तार से बढ़ रही अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, लेकिन आज भी यह देश लैंगिक असमानता जैसी रूढ़िवादी मान्यताओं को ढो रहा है जहां पितृसत्तात्मक समाज की महिलाओं के बारे में यही सोच है कि उनका मुख्य काम घर पर रहकर घरेलू काम करना है.

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हाल के दशकों में, भारत में कामकाजी महिलाओं की संख्या में काफी कमी आई है. विश्व बैंक के मुताबिक, "भारत में औपचारिक और अनौपचारिक कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी साल 2005 में 27 फीसद थी लेकिन 2021 में यह घटकर 23 फीसद ही रह गई.”

2018 में हुए सर्वेक्षण के मुताबिक, कार्यक्षेत्र में महिलाओं की हिस्सेदारी के मामले में 131 देशों की सूची में भारत का 120वां स्थान था.

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में कार्यक्षेत्र में महिलाओं की कमी के पीछे कई कारण हैं जिनमें बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी, शादी के बाद घर की देखभाल, स्किल्स की कमी, शैक्षणिक व्यवधान और नौकरियों की कमी शामिल हैं. महिलाओं को घर के बाहर जाकर काम नहीं करना चाहिए, जैसी मान्यताओं के चलते भी महिलाओं को अक्सर हिंसा का सामना करना पड़ता है और इस वजह से भी कई बार महिलाएं नौकरियों के प्रति हतोत्साहित हो जाती हैं.

2018 में थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन के सर्वेक्षण से पता चलता है कि भारत, महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देशों में से एक है, खासतौर पर यौन हिंसा के जोखिम के मामले में.

बेहतर रोजगार स्थिति को बढ़ावा जरूरी

अर्थशास्त्रियों ने सुझाव दिया है कि भारत में ऐसे लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है जिनकी उम्र काम करने वाली है, इसलिए भारत को महिलाओं के लिए ज्यादा नौकरियां सृजित करने और बेहतर रोजगार की स्थितियां बनाने के लिए दो दरफा रणनीति बनानी होगी.

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साल 2018 में विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि यदि आधी महिलाएं भी कामकाजी हो जाएं तो देश की विकास दर नौ फीसदी तक पहुंच सकती है. सरकार फिलहाल प्रस्तावों का आकलन कर रही है.

नई दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्री अविनाश कुमार के मुताबिक, कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी में गिरावट चिंता का कारण है और यह अर्थव्यवस्था के संकट से जुड़ा है. डीडब्ल्यू से बातचीत में वह इस प्रवृत्ति को ‘जबरन बाहर निकालना' कहते हैं. उनके मुताबिक, "सबसे पहले महिलाओं को बाहर किया जाता है.”

वह कहते हैं कि महिला श्रमिकों की जगह उन पुरुष श्रमिकों को सस्ती दर पर रख लिया जाता है जिन्हें बाहर कर दिया गया था. वह कहते हैं, "चूंकि महिलाओं को लैंगिक असमानता और पितृसत्तात्मक समाज के दोहरे भेदभाव का सामना करना पड़ता है, इसलिए सरकार की जिम्मेदारी है कि वह महिलाओं के हित में नौकरियों के सृजन में निवेश करे. यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि काम के लिए बाहर जाने वाली महिलाएं सुरक्षित रहें.”

महिला केंद्रित माहौल'

नई दिल्ली स्थित एक निजी कंपनी शीरोज (Sheroes) ऑनलाइन नौकरियां ढूंढ़ने में महिलाओं की मदद करती है. नौ साल पहले सैरी चहल ने इस कंपनी को ‘महिला केंद्रित माहौल' बनाने के मकसद से स्थापित किया था.

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कंपनी महिलाओं को कंपनियों से जोड़ती है, जो इन महिलाओं को घर से काम करने के मौके उपलब्ध कराती हैं. यह उन महिलाओं के लिए उचित विकल्पों की भी तलाश करती है जो दोबारा काम पर लौटना चाहती हैं.

डीडब्ल्यू से बातचीत में चहल कहती हैं, "अर्थव्यवस्था के विकास में इंटरनेट महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है और हमारे इसी विचार ने हमें महिलाओं के लिए सुरक्षित और विश्वसनीय ऑनलाइन कार्यक्षेत्र तैयार करने के लिए प्रोत्साहित किया. पितृसत्ता ने भले ही विवाहित महिलाओं को नौकरी करने के लिए हतोत्साहित किया हो लेकिन बदलाव अभी भी हो सकता है.”

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