यहां बदसूरत दिखना परंपरा का हिस्सा है
अरुणाचल प्रदेश की जिरो घाटी में बसे अपातानी जनजाति की महिलाएं बाकी सबसे अलग दिखती आई हैं. कभी किसी और जनजाति के लोगों से अपनी महिलाओं को अपहरण से बचाने के लिए शुरु हुआ यह रिवाज आज आदत का हिस्सा बन चुका है.
एक विशेष सभ्यता
आकाश से जिरो घाटी का नजारा कुछ ऐसा दिखता है. यहां अपातानी जनजाति के 37,000 से भी अधिक सदस्य बसते हैं. ये लोग प्रक्रियाबद्ध तरीके से खेती की जमीन का इस्तेमाल करते हैं और अपने आसपास की पारिस्थितिकी के प्रबंधन और संरक्षण के बारे में गहरी समझ रखते हैं.
नाक की ठेपियां
तस्वीर में दिख रही ताडू रेलुंग इस घाटी की सबसे बुजुर्ग महिला हैं. यहां की महिलाएं अपनी नाक में दोनों ओर ठेपियों जैसा स्थानीय लकड़ी से बना एक प्लग सा पहनने के कारण अलग से पहचान में आती हैं, जिसे यापिंग हुलो कहते हैं. इस पर 1970 के दशक के शुरुआत में सरकार ने रोक लगा दी.
कैसे आया यापिंग हुलो का चलन
कुछ का कहना है कि यह सुंदरता से जुड़ा मामला है. वहीं कुछ मानते हैं कि पहले के समय में किसी और जनजाति के लोगों से अपनी महिलाओं को अपहरण से बचाने के लिए अपनी एक अलग पहचान के तौर पर ऐसे करना शुरु किया गया. यह सब बंद होने के बाद आजकल इस इलाके को यहां किवी के फल से बनी वाइन के लिए जाना जाता है.
किवी वाइन का कारोबार
हाल के सालों तक अरुणाचल में किवी की खेती करने वाले बहुत किसान नहीं होते थे. लेकिन 2016 में कृषि इंजीनियरिंग पढ़ने वाली इसी जनजाति की एक महिला ताखे रीता ने अपने गांव में वाइनरी का काम शुरु किया. 2017 में उन्होंने नारा-आबा नाम से शुद्ध ऑर्गेनिक किवी वाइन बनाना शुरु किया.
लंबी है प्रक्रिया
किवी से वाइन बनाने की प्रक्रिया में फरमेंटेशन की प्रक्रिया काफी समय लेती है. इसमें 7 से 8 महीने लगते हैं. अरुणाचल के ऑर्गेनिक फलों से बनी यह वाइन पूर्वोत्तर भारत के दूसरे राज्यों जैसे असम और मेघालय में भी मिलती है. अब इन्हें भारत से बाहर निर्यात किए जाने की योजना पर काम चल रहा है.
किसानों के लिए आय का जरिया
रीता के इस नए बिजनेस से इलाके के किवी किसानों को काफी बढ़ावा मिला है. वे उन्हें फलों को खरीदने का भरोसा देती हैं और उन्हें इसकी अच्छी खेती के लिए ट्रेनिंग भी देती हैं. किसान कहते हैं कि किवी से वाइन बनाने के कारोबार ने उन्हें अपनी आमदनी बढ़ाने और जीवनस्तर सुधारने की नई संभावना दी है.
ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा
इस वाइन के कारण जिरो घाटी के कई किसान अब खेती किसानी के अपने मूल पेशे में लौटने लगे हैं. इस घाटी में मिलने वाली अच्छी धूप से यहां फल अच्छे उगते हैं. ऑर्गेनिक तरीक से किवी उगा कर उन्हें अपनी आय का एक स्थाई स्रोत मिल गया है.