इससे पहले उनकी तमाम बैठकें और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हिस्सेदारी वर्चुअल ही रही है. देश में कोरोना एक बार फिर पांव पसार रहा है. ऐसे में उनके दौरे पर सवाल उठना लाजिमी है. दरअसल, उनके इस दौरे को एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है. इस दो-दिवसीय दौरे को पश्चिम बंगाल के अहम विधानसभा चुनावों के साथ भी जोड़ कर देखा जा रहा है. अगर यह दौरा महज राजधानी ढाका में आयोजित सरकारी समारोह में शिरकत तक ही सीमित रहता, तो इस पर सवाल नहीं खड़े होते. लेकिन प्रधानमंत्री ने पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती इलाको में रहने वाले मतुआ समुदाय के लोगों के गुरु हरिचंद्र ठाकुर की जन्मस्थली ओरकांडी जाने का जो फैसला किया है. उसी वजह से उनके मकसद पर सवालिया निशान लग रहे हैं. राजनीतिक हलकों में कहा जा रहा है कि बंगाल के मतुआ समुदाय को साधने के लिए ही मोदी ने ओरकांडी दौरे की योजना बनाई है. मोदी अपने दौरे में कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर के अलावा क्रांतिकारी जतीन दास के पैतृक आवास का दौरा भी करेंगे.
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के न्योते पर शुक्रवार को राजधानी ढाका पहुंचने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के स्वर्ण जयंती समारोह के अलावा बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान के जन्मशती समारोह में भी शामिल होंगे. लेकिन पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में शनिवार को पहले चरण के मतदान के दिन मोदी बांग्लादेश की धरती पर मतुआ समुदाय के पवित्र स्थान ओरकांडी ठाकुरबाड़ी और सुरेश्वरी देवी के मंदिर के दर्शन करेंगे. ओरकांडी मतुआ गुरु हरिचंद ठाकुर और गुरुचंद ठाकुर का जन्म स्थान है और दलित मतुआ महासंघ की स्थापना भी वहीं हुई थी. वहां प्रधानमंत्री की अगवानी के लिए बंगाल के बीजेपी सांसद शांतनु ठाकुर समेत मतुआ समुदाय की कई प्रमुख हस्तियां मौजूद रहेंगी. शांतनु ठाकुर मतुआ संप्रदाय के संस्थापक हरिचंद ठाकुर के परिवार से ही हैं. वहां प्रधानमंत्री के भव्य स्वागत की तैयारियां की गई हैं.
मतुआ संप्रदाय और उसकी अहमियत
मतुआ संप्रदाय मूल रूप से पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से नाता रखता है. इस संप्रदाय की शुरुआत 1860 में अविभाजित बंगाल में हुई थी. मतुआ महासंघ की मूल भावना चतुर्वर्ण यानी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र की व्यवस्था को खत्म करना है. इसकी शुरुआत समाज सुधारक हरिचंद्र ठाकुर ने की थी. उनका जन्म एक गरीब और अछूत नमोशूद्र परिवार में हुआ था. ये लोग देश के विभाजन के बाद धार्मिक शोषण से तंग आकर 1950 की शुरुआत में यहां आए थे. 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के बाद भी मतुआ समुदाय के लोग सीमा पार कर यहां आए थे.
मोटे अनुमान के मुताबिक, पश्चिम बंगाल में उनकी आबादी दो करोड़ से भी ज्यादा है. नदिया, उत्तर और दक्षिण 24-परगना जिलों की कम से कम सात लोकसभा सीटों पर उनके वोट निर्णायक हैं. यही वजह है कि मोदी ने बीते लोकसभा चुनावों से पहले फरवरी की अपनी रैली के दौरान इस समुदाय की माता कही जाने वाली वीणापाणि देवी से मुलाकात कर उनका आशीर्वाद लिया था. यह समुदाय पहले लेफ्ट को समर्थन देता था और बाद में वह ममता बनर्जी के समर्थन में आ गया. सत्तर के दशक के आखिरी वर्षों में पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की ताकत घटी और लेफ्ट मजबूत हुआ. राजनीतिक पंडितों का कहना है कि लेफ्ट की ताकत बढ़ाने में मतुआ महासभा का भी बड़ा हाथ रहा.
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कितने राज्यों में है बीजेपी और एनडीए की सरकार
उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में फरवरी-मार्च 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर ऐतिहासिक प्रदर्शन किया और 403 सदस्यों वाली विधानसभा में 325 सीटें जीतीं. इसके बाद फायरब्रांड हिंदू नेता योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री की गद्दी मिली.
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त्रिपुरा
2018 में त्रिपुरा में लेफ्ट का 25 साल पुराना किला ढहाते हुए बीजेपी गठबंधन को 43 सीटें मिली. वहीं कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्कसिस्ट) ने 16 सीटें जीतीं. 20 साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद मणिक सरकार की सत्ता से विदाई हुई और बिप्लव कुमार देब ने राज्य की कमान संभाली.
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मध्य प्रदेश
शिवराज सिंह चौहान को प्रशासन का लंबा अनुभव है. उन्हीं के हाथ में अभी मध्य प्रदेश की कमान है. इससे पहले वह 2005 से 2018 तक राज्य के मख्यमंत्री रहे. लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस सत्ता में आई. लेकिन दो साल के भीतर राजनीतिक दावपेंचों के दम पर शिवराज सिंह चौहान ने सत्ता में वापसी की.
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कितने राज्यों में है बीजेपी और एनडीए की सरकार
उत्तराखंड
उत्तर प्रदेश के पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में भी बीजेपी का झंडा लहर रहा है. 2017 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए राज्य की सत्ता में पांच साल बाद वापसी की. त्रिवेंद्र रावत को बतौर मुख्यमंत्री राज्य की कमान मिली. लेकिन आपसी खींचतान के बीच उन्हें 09 मार्च 2021 को इस्तीफा देना पड़ा.
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बिहार
बिहार में नीतीश कुमार एनडीए सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. हालिया चुनाव में उन्होंने बीजेपी के साथ मिल कर चुनाव लड़ा. इससे पिछले चुनाव में वह आरजेडी के साथ थे. 2020 के चुनाव में आरजेडी 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी. लेकिन 74 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही बीजेपी ने नीतीश कुमार की जेडीयू के साथ मिलकर सरकार बनाई, जिसे 43 सीटें मिलीं.
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कितने राज्यों में है बीजेपी और एनडीए की सरकार
गोवा
गोवा में प्रमोद सावंत बीजेपी सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. उन्होंने मनोहर पर्रिकर (फोटो में) के निधन के बाद 2019 में यह पद संभाला. 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद पर्रिकर ने केंद्र में रक्षा मंत्री का पद छोड़ मुख्यमंत्री पद संभाला था.
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कितने राज्यों में है बीजेपी और एनडीए की सरकार
मणिपुर
पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में 2017 में पहली बार बीजेपी की सरकार बनी है जिसका नेतृत्व पूर्व फुटबॉल खिलाड़ी एन बीरेन सिंह कर रहे हैं. वह राज्य के 12वें मुख्यमंत्री हैं. इस राज्य में भी कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सरकार नहीं बना पाई.
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कितने राज्यों में है बीजेपी और एनडीए की सरकार
हिमाचल प्रदेश
नवंबर 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज कर भारतीय जनता पार्टी सत्ता में वापसी की. हालांकि पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी घोषित किए गए प्रेम कुमार धूमल चुनाव हार गए. इसके बाद जयराम ठाकुर राज्य सरकार का नेतृत्व संभाला.
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कर्नाटक
2018 में हुए विधानसभा चुनावों में कर्नाटक में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी. 2018 में वो बहुमत साबित नहीं कर पाए. 2019 में कांग्रेस-जेडीएस के 15 विधायकों के इस्तीफे होने के कारण बीेजेपी बहुमत के आंकड़े तक पहुंच गई. येदियुरप्पा कर्नाटक के मुख्यमंत्री हैं.
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कितने राज्यों में है बीजेपी और एनडीए की सरकार
हरियाणा
बीजेपी के मनोहर लाल खट्टर हरियाणा में मुख्यमंत्री हैं. उन्होंने 2014 के चुनावों में पार्टी को मिले स्पष्ट बहुमत के बाद सरकार बनाई थी. 2019 में बीजेपी को हरियाणा में बहुमत नहीं मिला लेकिन जेजेपी के साथ गठबंधन कर उन्होंने सरकार बनाई. संघ से जुड़े रहे खट्टर प्रधानमंत्री मोदी के करीबी समझे जाते हैं.
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कितने राज्यों में है बीजेपी और एनडीए की सरकार
गुजरात
गुजरात में 1998 से लगातार भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. प्रधानमंत्री पद संभालने से पहले नरेंद्र मोदी 12 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे. फिलहाल राज्य सरकार की कमान बीजेपी के विजय रुपाणी के हाथों में है.
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कितने राज्यों में है बीजेपी और एनडीए की सरकार
असम
असम में बीजेपी के सर्बानंद सोनोवाल मुख्यमंत्री हैं. 2016 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 86 सीटें जीतकर राज्य में एक दशक से चले आ रहे कांग्रेस के शासन का अंत किया. अब राज्य में फिर विधानसभा चुनाव की तैयारी हो रही है.
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कितने राज्यों में है बीजेपी और एनडीए की सरकार
अरुणाचल प्रदेश
अरुणाचल प्रदेश में पेमा खांडू मुख्यमंत्री हैं जो दिसंबर 2016 में भाजपा में शामिल हुए. सियासी उठापटक के बीच पहले पेमा खांडू कांग्रेस छोड़ पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल प्रदेश में शामिल हुए और फिर बीजेपी में चले गए.
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कितने राज्यों में है बीजेपी और एनडीए की सरकार
नागालैंड
नागालैंड में फरवरी 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में एनडीए की कामयाबी के बाद नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के नेता नेफियू रियो ने मुख्यमंत्री पद संभाला. इससे पहले भी वह 2008 से 2014 तक और 2003 से 2008 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं.
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कितने राज्यों में है बीजेपी और एनडीए की सरकार
मेघालय
2018 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनने के बावजूद सरकार बनाने से चूक गई. एनपीपी नेता कॉनराड संगमा ने बीजेपी और अन्य दलों के साथ मिल कर सरकार का गठन किया. कॉनराड संगमा पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा के बेटे हैं.
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कितने राज्यों में है बीजेपी और एनडीए की सरकार
सिक्किम
सिक्किम की विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी का एक भी विधायक नहीं है. लेकिन राज्य में सत्ताधारी सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा है. इस तरह सिक्किम भी उन राज्यों की सूची में आ जाता है जहां बीजेपी और उसके सहयोगियों की सरकारें हैं.
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कितने राज्यों में है बीजेपी और एनडीए की सरकार
मिजोरम
मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट की सरकार है. वहां जोरामथंगा मुख्यमंत्री हैं. बीजेपी की वहां एक सीट है लेकिन वो जोरामथंगा की सरकार का समर्थन करती है.
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कितने राज्यों में है बीजेपी और एनडीए की सरकार
2019 की टक्कर
इस तरह भारत के कुल 28 राज्यों में से 16 राज्यों में भारतीय जनता पार्टी या उसके सहयोगियों की सरकारें हैं. हाल के सालों में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्य उसके हाथ से फिसले हैं. फिर भी राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता के आगे कोई नहीं टिकता.
लेकिन वीणापाणि देवी की मौत के बाद अब यह समुदाय दो गुटों में बंट गया है. इसलिए बीजेपी की निगाहें अब इस वोट बैंक पर हैं. 2014 में बीणापाणि देवी के बड़े बेटे कपिल कृष्ण ठाकुर ने तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर बनगांव लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और संसद पहुंचे. 2015 में कपिल कृष्ण ठाकुर के निधन के बाद उनकी पत्नी ममता बाला ठाकुर ने उपचुनाव में तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर यह सीट जीती थी. लेकिन "बड़ो मां" यानी मतुआ माता के निधन के बाद परिवार में राजनीतिक मतभेद खुल कर सतह पर आ गया. उनके छोटे बेटे मंजुल कृष्ण ठाकुर ने बाद में बीजेपी का दामन थाम लिया. 2019 में बीजेपी ने मंजुल कृष्ण ठाकुर के बेटे शांतनु ठाकुर को बनगांव से टिकट दिया और वे जीत कर सांसद बन गए.
इस समुदाय के कई लोगों को अब तक भारतीय नागरिकता नहीं मिली है. यही वजह है कि बीजेपी सीएए के तहत नागरिकता देने का दाना फेंक कर उनको अपने पाले में करने का प्रयास कर रही है. राज्य के नदिया और उत्तर और दक्षिण 24 परगना जिले की 70 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर मतुआ समुदाय की मजबूत पकड़ है.
मतुआ इलाके में मतदान अगले महीने
मतुआ समुदाय की आबादी और इलाके में असर को ध्यान में रखते हुए ही हरिचंद गुरुचंद ठाकुर के परिवार से जुड़े पीआर ठाकुर को कांग्रेस पार्टी ने 1962 में मंत्री बनाया था. हालांकि बाद में उनकी पत्नी बीणापाणि देवी ने टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी का साथ दिया. 2019 के लोकसभा चुनाव में उनकी नागरिकता संबंधी मांग पूरी करने का वादा किए जाने के बाद मतुआ समाज का झुकाव बीजेपी की तरफ हुआ. इससे पार्टी को अपनी सीटें दो से बढ़ा कर 18 तक पहुंचाने में कामयाबी मिली. हालांकि बीजेपी ने उस समय भी मतुआ समुदाय के लोगों को नागरिकता देने का वादा किया था. लेकिन उस पर अमल नहीं होने की वजह से इस समुदाय के एक तबके में नाराजगी है. उनकी नाराजगी को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मतुआ का गढ़ कहे जाने वाले उत्तर 24-परगना जिले के ठाकुरनगर की एक रैली में कहा था कि कोरोना का टीकाकरण अभियान खत्म होने के बाद सीएए के तहत उन सबको नागरिकता देने का काम शुरू हो जाएगा.
मतुआ समुदाय के असर वाली विधानसभा सीटों पर पांचवें चरण में 17 अप्रैल और सातवें चरण में 26 अप्रैल को मतदान होना है. उससे पहले उन इलाकों में प्रधानमंत्री की रैलियों की भी योजना है. जाहिर है मोदी उन रैलियों में इस समुदाय का मन जीतने के लिए अपने ओरकांडी दौरे का बढ़ा-चढ़ा कर बखान करेंगे. प्रदेश बीजेपी के एक नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, "सीएए लागू वहीं होने की वजह से मतुआ समुदाय के एक तबके में काफी नाराजगी है. प्रधानमंत्री के ओरकांडी दौरे से इस तबके में एक सकारात्मक संदेश जाएगा, जिसका फायदा हमें चुनावों में मिलना तय है.”
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ओरकांडी में मोदी का दौरा स्पष्ट रूप से मतुआ वोटरों को लुभाने की कोशिश है. एक राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर समीरन पाल कहते हैं, "पश्चिम बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी से मिलने वाली कड़ी चुनौती के बीच प्रधानमंत्री मोदी मतुआ समाज के लोगों को यह संदेश देने का मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहते हैं कि बीजेपी उनकी सबसे बड़ी हितैषी है. इसके अलावा भारतीय सीमा से सटे सातखीरा में यशोरेश्वरी मंदिर के दौरे की भी राजनीतिक अहमियत है." उनका कहना है कि ओरकांडी से मतुआ समाज का बेहद भावनात्मक लगाव है. ऐसे में इस दौरे का फायदा बीजेपी को बंगाल चुनावों में मिल सकता है.
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किसान आंदोलन
कई हफ्तों से दिल्ली की सीमाओं पर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान प्रदर्शन कर रहे हैं और सरकार से नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं है. इस बीच, 26 जनवरी को हुई हिंसा के बाद स्थिति काफी तनावपूर्ण हो गई है.
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नागरिकता संशोधन अधिनियम
नरेंद्र मोदी सरकार ने जब 2019 में नागरिकता संशोधन विधेयक पारित किया तो इसके खिलाफ देश में कई हिस्सों में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए. धर्म के आधार पर पड़ोसी देशों के शरणार्थियों को नागरिकता देने वाले इस कानून को आलोचकों ने संविधान विरोधी बताया.
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धारा 370
5 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाली धारा 370 को खत्म कर दिया. कई विपक्षी पार्टियों ने इसका तीखा विरोध किया. हिंसक विरोध प्रदर्शनों की आशंका को देखते हुए केंद्र सरकार ने कई महीनों तक जम्मू कश्मीर में कर्फ्यू लगाए रखा.
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नोटबंदी
8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अचानक 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने का एलान कर दिया. सरकार का कहना था कि काले धन को बाहर लाने के लिए उसने यह कदम उठाया. लेकिन असंगठित क्षेत्र के कई उद्योग चौपट हो गए और लोग बेरोजगार हो गए.
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जेएनयू की नारेबाजी
दिल्ली की जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी अकसर सुर्खियों में रहती है. लेकिन 2016 में यूनिवर्सिटी परिसर में कन्हैया कुमार और अन्य छात्र नेताओं पर लगे देशद्रोह के आरोपों ने इसे अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में ला दिया. आंदोलन को दबाने के लिए पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा.
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लिंचिंग
2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के कुछ महीनों बाद गौरक्षा के नाम देश के अलग अलग हिस्सों में लिंचिंग घटनाएं हुईं. गोमांस रखने या खाने के आरोप में कुछ समुदायों को निशाना बनाया गया. इसके बाद सरकार के खिलाफ प्रदर्शन हुए, कई लोगों ने अपने पुरस्कार लौटाए.
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रोहित वेमुला
हैदराबाद यूनिवर्सिटी में पीएचडी कर रहे एक दलित छात्र रोहित वेमुला की जुलाई 2015 में आत्महत्या ने भारत के बड़े शैक्षणिक संस्थानों में जाति आधारित भेदभाव को उजागर किया. इसके बाद सड़कों पर उतरे लोगों ने उन तत्वों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की जिनकी वजह से "रोहित वेमुला को आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा."