चक्रवाती तूफान अम्फान के गुजरने के बाद अब यूनेस्को की धरोहरों की सूची में शामिल सुंदरबन में हुई बर्बादी की तस्वीर सामने आने लगी है. लॉकडाउन के दौरान इलाके के डेढ़ हजार परिवार पहले से ही भुखमरी के कगार पर थे. अब इस तूफान ने आजीविकि के एकमात्र प्रमुख साधन यानी खेती को भी छीन लिया है. खारा पानी घुस जाने की वजह से निकट भविष्य में खेती असंभव है. इलाके में बाढ़ से बचाने के लिए बने ज्यादातर बांध या तो टूट चुके हैं या फिर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुके हैं. इससे इलाके से बड़े पैमाने पर विस्थापन का अंदेशा पैदा हो गया है. विशेषज्ञों का कहना है कि इलाके में हुए नुकसान की भरपाई में बरसों लग जाएंगे.
2009 में आए आइला तूफान से हुए नुकसान की भरपाई भी नहीं हो पाई थी कि अम्फान ने इलाके के मैंग्रोव जंगल और आम लोगों के जीवन को तहत-नहस कर दिया है. आइला के बाद इलाके के तालाबों और खेतों में समुद्र का खारा पानी भर जाने की वजह से तीन साल तक खेती नहीं हो सकी थी. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अब इसमें कम से कम पांच साल का समय लग सकता है. और वह भी तब जबकि इलाके के लोगों के जीवन को पटरी में लाने के लिए बड़े पैमाने पर राहत और पुनर्वास का काम शुरू हो.
अम्फान ने इलाके को आइला से दोगुना ज्यादा नुकसान पहुंचाया है. इसका असर आम लोगों के अलावा इलाके की जैविक विविधता पर भी पड़ा है. इलाके के द्वीपों से लगभग दो लाख लोगों को पहले ही निकाल कर सुरक्षित ठिकानों पर ले जाया गया था. इससे जान का नुकसान तो कुछ कम हुआ है. लेकिन खेती और संपत्ति का जो नुकसान हुआ है उसका आकलन करना फिलहाल मुश्किल है. शुरुआती अनुमान के मुताबिक लगभग 13,000 पेड़ उखड़ गए हैं. ऐसा कोई गांव नहीं बचा है जहां लोगों के घरों की दीवारें और छतें नहीं ढह गई हों. इलाके में बने ज्यादातर बांध टूट गए हैं. फ्रेजरगंज के प्रदीप मंडल बताते हैं, "यहां इच्छामती और कालिंदी नदियों पर बने बांध टूट गए हैं. बार-बार कहने के बावजूद इनकी मरम्मत नहीं कराई गई थी. अब महीने भर बाद बाढ़ हमें मार देगी."
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जंगल से ज्यादा बाघ पिंजरे में
प्रशंसित, भयभीत और लुप्त होने की कगार पर
बाघ एकांतवासी और संकोची जीव हैं जिन्हें घूमने के लिए बड़ी जगह की जरूरत होती है. मलेशिया और इंडोनेशिया के हरे भरे जंगलों से लेकर भूटान के ऊंचे पहाड़ों और भारत के मैंग्रोव वनों में इनका बसेरा है. खाने की तलाश में दूर दूर तक घूमते बाघ जगंलों की कटाई और विकास में भटक जाते हैं. जंगलों का जो हिस्सा बचा है वह बिखरा बिखरा सा है साथ ही सड़कों, खेतों, गांवों और शहरों से घिरा है.
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जंगल से ज्यादा बाघ पिंजरे में
एशियाई जंगलों और सावन्ना से दूर पिंजरों और घरों के पिछवाड़ों में
चमकीली धारीदार फर वाली खाल, तीखी नजरें और प्यारे शावकों के कारण इन्हें पालतू बनाने वालों और चिड़ियाघरों में इनकी भारी मांग रहती है. यह बात खासतौर से अमेरिका के लिए एकदम सच है. अमेरिका के मत्स्य और वन विभाग के मुताबिक देश में बाघों की संख्या जंगल में पाए जाने वाले बाघों से बहुत जल्द आगे निकल जाएगी. माना जाता है कि केवल टेक्सस राज्य में ही 2000 से 5000 बाघ रह रहे हैं.
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जंगल से ज्यादा बाघ पिंजरे में
कुतिया के दूध पर जीते बाघ के बच्चे
जंगल में पैदा होने वाले शावकों में से आधे ही जिंदा बच पाते हैं. अकसर माएं अपने बच्चों को दूध पिलाने से मना कर देती हैं और अज्ञात वजहों से उन्हें त्याग देती हैं. पिंजरे में रखने वाले चिड़ियाघरों ने इसके समाधान के लिए कुतिया के दूध पर बाघ के बच्चों को पाला है. कुतिया अपने बच्चों और बाघ के बच्चों के बीच फर्क नहीं कर पाती. आमतौर पर दोनों का प्रजनन काल भी एक ही होता है.
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जंगल से ज्यादा बाघ पिंजरे में
बाघ की तीन उपजातियां लुप्त
बाघ की 9 उपजातियां हैं जिनमें से अब केवल छह उपजातियां बची हैं. इनमें जो फर्क दिखता है वह हजारों सालों में जलवायु परिवर्तन के कारण आया है. साइबेरियन या आमूर बाग उदाहरण के लिए दूसरी उपजातियों के बाघ से बड़े और ज्यादा बाल वाले होते हैं. इसका मतलब है कि यह साइबेरियाई जंगली इलाकों में खुद को ज्यादा गर्म रख सकते हैं.
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जंगल से ज्यादा बाघ पिंजरे में
बाघ शेर साथ साथ!
जीवित बचे बाघ की सभी उपजातियों के जीन में ज्यादा अंतर नहीं है, इनमें से सबने खुद को अपने आवास के हिसाब से ढाल लिया है. इनका आवास अफ्रीका की बजाय एशिया है. इनमें कुछ उष्णकटिबंधीय वनों में हैं तो कुछ सूखे वनों में कुछ दलदली इलाकों में और गीली जमीनों पर जबकि कुछ 3000 मीटर की ऊंचाई पर भी रहते हैं. यही वजह है कि उनकी संख्या बढ़ाने के लिए उन्हें एक जगह से दूसरी जगह ले जाना बेहद मुश्किल है.
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जंगल से ज्यादा बाघ पिंजरे में
शिकार, अतिक्रमण और बढ़ता तापमान
जलवायु परिवर्तन बाघ की चुनौतियों में अकेला नहीं है लेकिन यह उनके आवास के लिए एक बड़ा खतरा है. एक रिसर्च में कुछ चीजों की भविष्यवाणी की गई है. इनमें एक यह है कि सुंदर बन में पानी का स्तर बढ़ेगा. इस इलाके में मौजूद मैंग्रोव के जंगल भारत से लेकर बांग्लादेश तक फैले हैं. हालांकि बढ़ते समुद्री जलस्तर के कारण बंगाल टाइगर की आबादी पर बुरा असर पड़ेगा. इस इलाके में रहने वाली यह बाघ की अकेली उपजाति है.
परिवार का पेट कैसे पालें?
हिंगलगंज के बांकड़ा गांव के 55 साल के राशिद गाजी कहते हैं, "चक्रवाती तूफान हमारे जीवन का हिस्सा रहे हैं. लेकिन अबकी अम्फान ने तो बर्बाद ही कर दिया है. जहां तक निगाहें देख सकती हैं चारों ओर उजड़े और ढहे मकान ही नजर आते हैं. ऐसा कोई द्वीप नहीं बचा है जहा बंगाल की खाड़ी का खारा पानी नदियों के रास्ते गांवों और तालाबों में नहीं पहुंच गया हो. इलाके के लोगों का कहना है कि ढहे हुए मकान तो गैर-सरकारी संगठनों या सरकार की ओर से मिलने वाली सहायता से देर-सबेर दोबारा बन जाएंगे लेकिन फिलहाल उन लोगों की सबसे बड़ी समस्या खाने-पीने की है. प्रदीप कहते हैं, "हमारे खेतों में लगी फसलें तबाह हो गई हैं. फिलहाल हमारी सबसे बड़ी चिंता अपना और परिवार का पेट पालने की है."
सुंदरबन का घोड़ामारा द्वीप जलवायु परिवर्तन की वजह से धीरे-धीरे बंगाल की खाड़ी में समाने की वजह से अकसर सुर्खियां बटोरता रहा है. कभी 130 वर्ग किलोमीटर में फैला यह द्वीप अब सिकुड़ कर महज 25 वर्ग किलोमीटर रह गया है. यहां लगभग छह हजार लोग रहते हैं. लेकिन यहां एक भी मकान साबुत नहीं बचा है. इस द्वीप के तमाम लोगों को पहले ही सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया गया था. तूफान गुजरने के पांच दिनों बाद सोमवार को शेल्टर होम से यहां लौटे लोगों के आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. पूरा इलाका पानी में डूबा था. न कोई घर नजर आ रहा था और न ही खेत. सबीना बीबी सब्जियों की जिस खेती के बल पर अपने परिवार का पेट पालती थीं, वह कहीं नजर ही नहीं आ रहा था. इस द्वीप के मोहनलाल जाना कहते हैं, "पहले से ही नदी और समुद्र हमारे द्वीप को निगल रहे हैं. अब बची-खुची कसर इस तूफान ने पूरी कर दी है. जीवन में कभी ऐसा दिन देखने की कल्पना तक नहीं की थी."
इलाके के उत्तर गोपालनगर के रहने वाले 92 साल के रमेश मंडल कहते हैं, "मैंने अग्रेजों से लेकर आजादी की लड़ाई और दूसरा विश्वयुद्ध तक बहुत कुछ देखा है. लेकिन अपने जीवन में कभी ऐसा तूफान नहीं देखा था." दक्षिण 24-परगना के जिलाशासक पी उलंगनाथन बताते हैं, "अम्फान से इलाके में नदियों पर बने 140 किलोमीटर लंबे बांध को भारी नुकसान हुआ है. सरकार सौ दिनों के काम योजना के तहत शीघ्र इसे बनाने का काम शुरू करेगी ताकि ज्वार-भाटे के समय पानी गांवों में नहीं घुस सके."
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सागर के गर्म होने से आती आपदा
दक्षिणी ध्रुव पर कैलिफोर्निया
अंटार्कटिका पर तैनात वैज्ञानिकों ने वहां का तापमान मापा तो लॉस एंजेलेस के बराबर निकला. फरवरी में रिकॉर्ड 18.3 डिग्री तापमान और वह भी उत्तरी अंटार्कटिक में अर्जेंटीना के रिसर्च स्टेशन पर. नासा के अनुसार यह वहां अब तक का सबसे ज्यादा तापमान था.
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सागर के गर्म होने से आती आपदा
नियमित रूप से आता तूफान
समुद्रों के गर्म होने से ट्रॉपिकल तूफानों की तादाद बढ़ रही है. हरिकेन या टायफून का सीजन लंबा होने लगेगा और खासकर उत्तरी अटलांटिक और पूर्वोत्तर प्रशांत में उनकी संख्या भी बढ़ेगी. मौसम बदलने का असर भविष्य में भारी नुकसान पहुंचाने वाले तूफान के रूप में सामने आएगा.
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सागर के गर्म होने से आती आपदा
समुद्र का बढ़ता जलस्तर
धरती के वातावरण में तापमान बढ़ता है तो सागर भी गर्म होने लगते हैं. इसका नतीजा पानी के बढ़ने के रूप में दिखता है. पानी बढ़ेगा तो समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा और बाढ़ आएगी या समुद्र तट पर स्थित इलाके डूबने लगेंगे.
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सागर के गर्म होने से आती आपदा
गर्म मौसम का मतलब जंगल में आग
पानी की सतह के गर्म होने से उसका वाष्पीकरण होगा और बरसात के बाद बाढ़ आएगी. कुछ इलाके डूब जाएंगे तो दूसरे इलाकों में सूखा पड़ेगा. नतीजा होगा फसल का न होना या जगलों में आग लगने से उसका नष्ट होना. भविष्य में आग का मौसम लंबा खिंचेगा और जंगलों पर खतरा लंबे समय तक बना रहेगा.
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सागर के गर्म होने से आती आपदा
इकोसिस्टम में बदलाव
गर्म सागर का मतलब होगा समुद्री जीव अपने पुराने घरों से भागने लगेंगे और आखिर में सारा समुद्रूी जलजीवन ठंडे इलाकों में चला जाएगा. मछलियां और समुद्री जानवर समतल से ध्रुवीय इलाकों की ओर चले जाएंगे. उत्तरी सागर में तो मछली का भंडार पहले से ही सिकुड़ने लगा है.
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सागर के गर्म होने से आती आपदा
समुद्रों का अम्लीकरण
गर्मी की वजह से कार्बन डाय ऑक्साइड पानी में घुल जाता है, समुद्री पानी का पीएच वैल्यू बढ़ जाता है और पानी का अम्लीकरण हो जाता है. पानी में अम्ल की मात्रा बढ़ने से स्टारफिश, शीप, कोरल और झींगों का बढ़ना रुक जाता है. नतीजा ये होगा कि उनका अस्तित्व मिट जाएगा.
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सागर के गर्म होने से आती आपदा
चारे की कमी
कार्बन डाय ऑक्साइड के समुद्री पानी में घुलने से पीएच वेल्यू घटेगी तो छोटे अल्गी आयरन को सोख नहीं पाते. अल्गी यदि आइरन को नहीं सोखेंगे तो उनका विकास नहीं होगा और समुद्री जीवों को चारा नहीं मिलेगा. इस तरह वे भी पानी के अम्लीकरण से प्रभावित होंगे.
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सागर के गर्म होने से आती आपदा
ऑक्सीजन की कमी
गर्म पानी कम ऑक्सीजन का संग्रह करते हैं. इस तरह गर्म होते समुद्र का मतलब ये भी है कि ऑक्सीजन की प्रचुर मात्रा वाले इलाके कम होते जाएंगे. बहुत सी नदियों, झीलों और तालाबों में अभी ही कम ऑक्सीजन वाले मौत के कुएं मौजूद हैं. यहां कम ऑक्सीजन के कारण जीवों का रहना मुश्किल है.
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सागर के गर्म होने से आती आपदा
अल्गी का बढ़ना
गर्म और कम ऑक्सीजन वाले पानी में जहरीले अल्गी तेजी से बढ़ते हैं. उनका जहर मछलियों और दूसरे समुद्री जीवों को मार डालता है. पानी पर अल्गी या शैवाल के कालीन बहुत सारी जगहों पर मछली उद्योग को नुकसान पहुंचा रहे हैं. यहीं चिली के तट की एक तस्वीर.
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सागर के गर्म होने से आती आपदा
सफेद कोरल का कंकाल
पानी के गर्म होने से समुद्री कोरल का सिर्फ रंग ही खत्म नहीं होता बल्कि ब्लीचिंग की वजह से बढ़ने की उसकी क्षमता भी खत्म हो जाती है. कोरल रीफ मरने लगते हैं और समुद्री जीवों को न तो सुरक्षा दे पाते हैं और न ही खाना. समुद्री जीवों के शिकार करने की जगह भी खत्म हो जाती है.
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सागर के गर्म होने से आती आपदा
बदलती समुद्री लहरें
यदि समुद्र के गर्म होने से उत्तरी अटलांटिक लहर की धारा बाधित होती है तो इसका मतलब पश्चिमी और उत्तरी यूरोप में शीतलहर होगा. यही लहर समुद्री पानी के प्रवाह को निर्धारित करती है और इसी से सतह का घना पानी घूमकर गहरे ठंडे इलाके की ओर जाता है.
रिपोर्ट: अलेक्जांडर फ्रॉएंड
विस्थापन तेज होने का अंदेशा
सुंदरबन इलाके के लोग अकसर रोजी-रोटी की तलाश में देश के दूसरे शहरों और राज्यों में जाते रहे हैं. लेकिन कोरोना की वजह से ऐसे दसियों हजार लोग हाल के दो महीनों में अपने गांव लौटे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद इलाके में दोबारा बड़े पैमाने पर विस्थापन शुरू होगा. इसकी वजह यह है कि जिस खेती के बूते प्रवासी मजदूर यहां लौटे थे अब वह भी नही बची हैं. इलाके के कई ब्लॉकों में स्थानीय लोगों के हित में काम करने वाले एक गैर-सरकारी संगठन के प्रमुख शंकर हालदार कहते हैं, "यहां के लोग पहले से ही काफी हद तक गैर-सरकारी संगठनों और सरकार की सहायता पर निर्भर थे. यह तूफान लोगों के लिए ताबूत की आखिरी कील की तरह है."
सुंदरबन मामलों के मंत्री मंटूराम पाखिरा कहते हैं, "अम्फान से सुंदरबन इलाके में हजारों करोड़ का नुकसान पहुंचा है. अब सब कुछ नए सिरे से दोबारा बनाना होगा." कोलकाता के जादवपुर विश्वविद्यालय के समुद्र विज्ञान संस्थान के निदेशक और सुंदरबन पर लंबे अरसे से शोध करने वाले डॉक्टर सुगत हाजरा कहते हैं, "तूफान से आधारभूत ढांचे को पहुंचे भारी नुकसान का असर लोगों की आजीविका पर पड़ना तय है. आने वाले दिनों में सुंदरबन इलाके से बड़े पैमाने पर लोगों का विस्थापन देखने को मिलेगा." वह बताते हैं कि आइला तूफान से हुए नुकसान के बाद जो कुछ दोबारा बना था वह सब नष्ट हो चुका है. प्रवासी मजदूरों के बीच काम करने वाले संगठन दिशा फाउंडेशन की निदेशक अंजलि बोरहाडे भी यही बात कहती हैं, "पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रतिकूल असर से आजीविका में बाधा पहुंचेगी और विस्थापन की परिस्थिति पैदा होगी."
11 साल पहले आने वाले आइला तूफान से हुए नुकसान के बाद भी इलाके में बड़े पैमाने पर विसथापन हुआ था. उत्तर और दक्षिण 24 परगना जिलों में फैले सुंदरबन के लगभग चालीस लाख लोगों के लिए खेती, मछली पालन, वन्यजीव पर्यटन और प्रवासी मजदूरी ही आजीविका के प्रमुख साधन रहे हैं. अब पहले तीनों के अम्फान तूफान की भेंट चढ़ जाने की वजह से विस्थापन ही रोजी-रोटी का एकमात्र जरिया बचा है.
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इन आठ जीवों के बगैर नहीं चलेगा धरती पर जीवन
1. मधुमक्खी
यह कोई छिपी बात नहीं है कि मधुमक्खियां बेहद जरूरी हैं. रॉयल जियोग्राफिकल सोसायटी ने तो उन्हें पृथ्वी का सबसे अहम प्राणि घोषित किया है. दुनिया में परागण कराने वाला यह सबसे पुराना जीव कई पौधों की प्रजातियों के जीवन चक्र में अहम भूमिका निभाता है और स्वस्थ इकोसिस्टम को बनाए रखता है. हम जिन फसलों को खाते हैं, उनमें से 70 फीसदी उन पर निर्भर हैं.
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इन आठ जीवों के बगैर नहीं चलेगा धरती पर जीवन
2. चींटी
हम उन्हें कीट भी कहते हैं लेकिन वास्तव में इस प्राणि को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए. अंटार्कटिका को छोड़ पृथ्वी के हर महाद्वीप में चीटियां मौजूद हैं और ये कई भूमिकाएं निभाती हैं. इनमें मिट्टी में पोषक तत्वों को वितरण से ले कर बीजों को फैलाना और दूसरे कीटों को खाना भी शामिल है. वैज्ञानिक दुनिया भर में चीटियों की बांबी पर जलवायु परिवर्तन के असर को जानने में जुटे हैं.
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इन आठ जीवों के बगैर नहीं चलेगा धरती पर जीवन
3. कवक या कुकुरमुत्ता
ना तो ये पौधे हैं ना जानवर, सूक्ष्मजीव या फिर प्रोटोजोआ. कवक को कभी कभी "पृथ्वी पर मौजूद जीवन का पांचवा वर्ग" कहा जाता है. उनके बगैर हमारा शायद अस्तित्व ही नहीं रहेगा. ये जल, थल और वायु हर जगह मौजूद हैं. ये पृथ्वी के प्राकृतिक पोषण को रिसाइकिल करते हैं. इनकी कुछ प्रजातियां तो ऐसी हैं जो पारा जैसे हानिकारक धातुओं और पोलियूरेथेन प्लास्टिक को भी पचा सकती हैं.
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4. फाइटोप्लैंकटन
फाइटोप्लैंकटन यानि सूक्ष्म जलीय वनस्पति पृथ्वी पर जीवन के लिए कितने जरूरी हैं यह समझना थोड़ा कठिन है. इनका एक योगदान तो यह है कि पृथ्वी के वायुमंडल में मौजूद ऑक्सीजन का दो तिहाई हिस्सा यही पैदा करते हैं. इनके बगैर वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम हो जाएगी और पर्यावरण के लिए असुविधा होगी. इसके साथ ही ये मरीन इकोसिस्टम के फूड चेन का आधार हैं.
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इन आठ जीवों के बगैर नहीं चलेगा धरती पर जीवन
5. चमगादड़
केला, बाओबाब और टकिला में क्या समानता है? ये सभी परागण और कीटों के नियंत्रण के लिए चमगादड़ पर निर्भर हैं. दुनिया भर में चमगादड़ों की अलग अलग प्रजातियां एक जरूरी पारिस्थतिकीय भूमिका निभाती हैं जिनकी वजह से कई फसलों का जीवन संभव होता है. चमगादड़ों की स्वस्थ आबादी कीटनाशकों पर होने वाले करोड़ों डॉलर के खर्च को बचा सकती हैं और वो एक मजबूत इकोसिस्टम की निशानी हैं.
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इन आठ जीवों के बगैर नहीं चलेगा धरती पर जीवन
6. केंचुआ
मामूली सा दिखना वाला केंचुआ पृथ्वी के जीवमंडल के लिए इतना जरूरी है कि इसे "इकोसिस्टम इंजीनियर" भी कहा जाता है. ये जीव मिट्टी में हवा भर कर उसे पोषक बनाते हैं और कार्बनिक पदार्थों को रिसाइकिल करते हैं. इसके साथ ही भोजन चक्र में भी इनकी जगह बेहद अहम है. कई पारिस्थितिकियों में अहम स्थान रखने के बावजूद कई प्रजातियां मिट्टी के अम्लीकरण की वजह से खतरे में हैं.
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इन आठ जीवों के बगैर नहीं चलेगा धरती पर जीवन
7. प्राइमेट
हमासे सबसे करीबी जैविक रिश्तेदार प्राइमेट, मानव जीव विज्ञान के बारे में कई तरह की अंतरदृष्टी देते हैं. ये बायोडाइवर्सिटी के लिए भी बेहद जरूरी है् और उष्णकटिबंधीय जंगलों के लिए अहम प्रजातियां हैं. ये इन जंगलों के लिए एक तरह से "माली" हैं जो बीजों को बिखेरते हैं और नए पौधों के उगने की जगह बनाते हैं. अगर हम इन जंगलों को बचाए रखना चाहते हैं तो हमें इन प्राइमेटों के अस्तित्व को वहां बनाए रखना होगा.
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इन आठ जीवों के बगैर नहीं चलेगा धरती पर जीवन
8. कोरल
कोरल को अकसर समुद्र का वर्षावन कहा जाता है. कोरल रीफ कई तरह की भूमिकाएं निभाते हैं. इनमें तटों की रक्षा से लेकर भोजन तंत्र का आधार होना भी शामिल है. रिसर्चरों का अनुमान है कि कोरल रीफ एक चौथाई समुद्री जीवों के लिए घर भी हैं. इस तरह से ये पृथ्वी के सबसे जटिल इकोसिस्टम का निर्माण करते हैं. अगर हम कोरल रीफ को खो बैठे, तो हम असंख्य समुद्री जीवों को भी खो देंगे.
रिपोर्ट: इनेके म्यूल्स