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समाजविश्व

हर छठा बच्चा है साइबरबुलीइंग का शिकार, लगातार बढ़ रहे मामले

२८ मार्च २०२४

ऑनलाइन दुनिया बच्चों के लिए बेहद असुरक्षित होती जा रही है. दुनिया के 44 देशों में 11 से 15 की उम्र के 16 फीसदी बच्चे और किशोर साइबरबुलिंग का सामना कर रहे हैं. डब्ल्यूएचओ यूरोप की एक ताजा रिपोर्ट ने यह जानकारी दी है.

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फोन देखकर रोती एक किशोरवय लड़की. सांकेतिक तस्वीर.
बच्चों और किशोरों के आपसी व्यवहार और संवाद में डिजिटलाइजेशन बढ़ता जा रहा है. यह साइबरबुलीइंग में इजाफे की एक बड़ी वजह है. तस्वीर: Antonio Guillen Fernández/PantherMedia/IMAGO

यूरोप, मध्य एशिया और उत्तर अमेरिका के 44 देशों में साइबरबुलीइंग के मामले बढ़ रहे हैं. साल 2022 के दौरान इन देशों में 11 से 15 साल की उम्र के लगभग 16 प्रतिशत बच्चे साइबरबुलीइंग से प्रभावित हुए. चार साल पहले ये आंकड़े 13 प्रतिशत थे. डब्ल्यूएचओ यूरोप की एक ताजा रिपोर्ट ने यह चिंताजनक स्थिति बताई है. रिपोर्ट के मुताबिक, बच्चों और किशोरवय लड़के-लड़कियों के बीच साइबर अपराध के ऐसे अनुभव बढ़ रहे हैं.

स्कूल जाने की उम्र के बच्चों में सेहत से जुड़े पक्षों पर आधारित इस रिपोर्ट में डब्ल्यूएचओ ने बताया कि कोरोना महामारी ने किस तरह किशोरों के एक-दूसरे के साथ बर्ताव का तरीका बदला है. इस अध्ययन के दौरान 15 फीसदी लड़कों और 16 प्रतिशत लड़कियों ने बताया कि हालिया महीनों में कम-से-कम एक बार उन्हें साइबरबुलीइंग का सामना करना पड़ा.

लॉकडाउन के बाद स्थितियां ज्यादा बिगड़ी हैं

रिपोर्ट के मुताबिक, "लॉकडाउन के दौरान बच्चों और किशोरों की दुनिया तेजी से वर्चुअल होती गई. कोविड-19 महामारी के बाद हमउम्रों के साथ वर्चुअल हिंसा खासतौर पर प्रासंगिक हो गई है." अध्ययन में शामिल किए गए 11 फीसदी लड़के-लड़कियों ने बताया कि महीने में कम-से-कम दो या तीन बार उन्हें स्कूल में बुली किया गया.

चार साल पहले, यानी कोरोना महामारी और लॉकडाउन से पहले ऐसे अनुभव वाले स्कूली बच्चों की संख्या करीब 10 फीसदी थी. यह भी पाया गया कि ऑनलाइन बुलीइंग के अलावा दूसरे तरह के डराने-धमकाने की घटनाएं कमोबेश पहले जैसी हैं. उनमें मामूली बढ़त आई है.

डब्ल्यूएचओ ने विस्तृत डेटा दिए बिना बताया है कि लड़कों के साथ सबसे ज्यादा साइबरबुलीइंग बुल्गारिया, लिथुआनिया, मोल्डोवा और पोलैंड में हुई. जबकि स्पेन में यह संख्या सबसे कम पाई गई. डब्ल्यूएचओ के यूरोप में क्षेत्रीय निदेशक हंस क्लूगे ने अपने बयान में कहा, "यह रिपोर्ट हम सभी के लिए एक चेतावनी है कि हम बुलीइंग और हिंसा से निपटें, ये जब भी और जहां भी हो." क्लूगे ने रेखांकित किया, "बच्चे और किशोर हर दिन करीब छह घंटे ऑनलाइन बिताते हैं. ऐसे में बुलीइंग और हिंसा के स्तर में छोटा सा भी बदलाव हजारों किशोरों की सेहत पर गंभीर असर डाल सकता है."

स्कूल में बुलीइंग और हमउम्रों की हिंसा से प्रभावित किशोरों की संख्या बढ़ी है.
डब्ल्यूएचओ ने बताया कि कोरोना महामारी ने किस तरह किशोरों के एक-दूसरे के साथ बर्ताव का तरीका बदला है. तस्वीर: Yuri Arcurs/Zoonar/IMAGO

किस उम्र में सबसे ज्यादा बुलीइंग

रिपोर्ट में एक और चिंताजनक पक्ष यह है कि कि आठ में से एक किशोर ने दूसरों को ऑनलाइन बुली करने की बात स्वीकारी. 2018 के मुकाबले यह संख्या तीन प्रतिशत ज्यादा है. हालांकि, शारीरिक लड़ाई-झगड़े में शामिल किशोरों की संख्या चार साल में 10 प्रतिशत पर स्थिर रही. इनमें 14 फीसदी लड़के और छह प्रतिशत लड़कियां हैं.

यह स्टडी यूरोप और मध्य एशिया के 43 देशों और कनाडा के करीब 279,000 बच्चों और किशोरों के डेटा पर आधारित है. ज्यादातर जगहों पर लड़कों में 11 साल की उम्र और लड़कियों के लिए 13 साल की आयु में साइबरबुलीइंग सबसे ऊंचे स्तर पर पाया गया. अभिभावकों के सामाजिक-आर्थिक परिवेश से बच्चों के व्यवहार में मुश्किल ही कोई फर्क देखा गया. हालांकि, कनाडा इस मामले में अपवाद है. वहां वंचित परिवारों से आने वाले किशोरों के बुलीइंग का शिकार होने की आशंका ज्यादा पाई गई.

रिपोर्ट में बुलीइंग रोकने और इसपर जागरूकता बढ़ाने के लिए ज्यादा कोशिश करने की अपील की गई है. इस बात पर जोर दिया गया है कि हमउम्रों द्वारा की जाने वाली हिंसा के अलग-अलग तरीकों की निगरानी के लिए ज्यादा कदम उठाए जाएं. रिपोर्ट में बतौर निष्कर्ष रेखांकित किया गया है, "बच्चों, किशोरों, परिवारों और स्कूलों को साइबरबुलीइंग के तरीकों और इसके नतीजों के बारे में ज्यादा शिक्षित किए जाने की सख्त जरूरत है. साथ ही, सोशल मीडियो प्लेटफॉर्मों पर भी ध्यान दिए जाने की जरूरत है, ताकि साइबरबुलीइंग को कम किया जा सके."

पीपी/एसएम (एएफपी)