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COP26 से पहले ध्यान जलवायु वित्त पर

२९ अक्टूबर २०२१

सम्मेलन में शामिल होने वाले प्रतिनिधि कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए कड़े और बाध्यकारी कदम उठाने की भूमिका तैयार करने में लगे हैं. लेकिन सदस्य देशों को वित्तीय सहायता के बिना ऐसे प्रतिबंध बहुत प्रभावकारी नहीं हो सकते.

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USA Demo Geld Klima 2018
तस्वीर: Erik McGregor/Pacific Press/picture alliance

जलवायु विशेषज्ञों ने जोर देकर कहा है कि आगामी संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन COP26, दुनिया के लिए ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस यानी 2.7 फारेनहाइट तक सीमित करने और देशों को नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करने में मदद करने की योजना के साथ आने का ‘अंतिम और सबसे अच्छा मौका' है.

हरित संक्रमण का प्रबंधन करना और जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों को दूर करना आसान काम नहीं होगा. यह बात न तो नीति के संदर्भ में ही आसान है और न ही इन वायदों को सफल बनाने के लिए जरूरी धन मुहैया कराने के संदर्भ में.

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के COP26 मामलों के वित्तीय सलाहकार मार्क कार्ने कहते हैं, "उत्सर्जन दर को शून्य स्तर तक पहुंचाने और पेरिस समझौते की महत्वाकांक्षाओं को पूरी तरह से हासिल करने के लिए वित्त यानी धन जरूरी है.”

COP26 वेबसाइट इसे स्पष्ट शब्दों में बताती है, "हमें अपने जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए, प्रत्येक कंपनी, प्रत्येक वित्तीय फर्म, प्रत्येक बैंक, बीमाकर्ता और निवेशक को खुद में बदलाव करना होगा.”

कितने पैसों की जरूरत है

विकासशील देश अपनी कार्बन-आधारित अर्थव्यवस्थाओं को बदलने की कोशिश कर रहे हैं और अनुकूलन के तरीके ढूंढ़ने के लिए दुनिया के सबसे अमीर देशों की तलाश कर रहे हैं, जो कि वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं. इन देशों पर हर साल विकासशील देशों को जलवायु वित्त निधि में के तौर पर दिए जाने वाले करीब 100 बिलियन डॉलर का बकाया है.

एनडीसी पार्टनरशिप के वैश्विक निदेशक पाब्लो विएरा के मुताबिक, COP26 पर बातचीत साल 2025 के बाद और भी अधिक धन जुटाने पर ध्यान केंद्रित करेगी क्योंकि 100 बिलियन डॉलर देशों को उनकी राष्ट्रीय जलवायु प्रतिबद्धताओं को प्राप्त करने में मदद करने को पर्याप्त नहीं है.

वो कहते हैं, "इसे और ज्यादा बढ़ाने की जरूरत है. यदि हम लंबे समय से चले आ रहे आसान वादे पूरा नहीं कर सकते हैं तो हम लक्ष्य तक कैसे पहुंचेंगे?”

लेकिन साल 2019 तक, जब तक के आंकड़े उपलब्ध हैं, अमीर देशों ने अभी तक अपने मूल लक्ष्य को पूरा नहीं किया था. आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) के अनुसार केवल 80 बिलियन डॉलर से कम का योगदान दिया गया है. संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक और ओईसीडी के अनुमानों से पता चला है कि दुनिया के जलवायु और विकास उद्देश्यों को पूरा करने के लिए साल 2030 तक हर साल 6.9 ट्रिलियन डॉलर खर्च होंगे. ये तथ्य COVID-19 महामारी से पहले 2018 में प्रकाशित हुए थे.

विएरा कहते हैं कि भले ही 100 बिलियन डॉलर पर्याप्त न हो, फिर भी यह महत्वपूर्ण है कि इसे पूरा किया जाए क्योंकि यह विकासशील देशों को अंतरराष्ट्रीय जलवायु कोष, विकास बैंकों और निजी क्षेत्र जैसे अन्य स्रोतों से अतिरिक्त धन प्राप्त करने में मदद करेगा.

संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता से संबद्ध एक वैश्विक समूह ACT2025 का हिस्सा और बोगोटा स्थित गैर-लाभकारी पर्यावरण संस्था के कार्यकारी निदेशक मारिया लॉरा रोजास कहती हैं, "100 बिलियन डॉलर तो बिल्कुल प्रतीकात्मक राशि जैसा है और यहां तक कि प्रतीकात्मक होते हुए भी, इसे पूरा नहीं किया जा रहा है. तो, आप यह देखना शुरू करते हैं कि विकासशील देशों के लिए यह वास्तव में निराशाजनक कैसे हो जाता है.”

Infografik Klimafinanzierung EN

वादा पूरा नहीं करना विश्वास को कम करेगा'

ग्रीन क्लाइमेट फंड के मुख्य प्रवक्ता विल्सन कहते हैं, "जलवायु वित्त COP26 में कई बड़े मुद्दों में से एक होने जा रहा है क्योंकि इसका संबंध विश्वास बहाली से है. वित्त पोषण के वायदों की विफलता अन्य वार्ताओं में विश्वास को कमजोर करेगी.”

साइमन कहते हैं, "पेरिस समझौते का पूरा विचार यह था कि यह आपसी समझौता हो कि हर कोई इन प्रतिबद्धताओं को पूरा करेगा और समय के साथ अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करेगा. लेकिन विकासशील देशों को ऐसा करने के लिए उन्हें यह विश्वास दिलाना चाहिए कि उनका पूरा सहयोग किया जाएगा.”

उदाहरण के लिए, फिलीपींस साल 2030 तक उत्सर्जन में 75 फीसद तक कमी लाने का लक्ष्य रख रहा है लेकिन वहां के राष्ट्रीय जलवायु योजना के मुताबिक, फिलीपींस अपने दम पर इस लक्ष्य का महज तीन फीसद ही प्राप्त कर सकता है. इसी साल सितंबर के अंत में जोहान्सबर्ग में अंतरराष्ट्रीय जलवायु दूतों के साथ एक बैठक में, दक्षिण अफ्रीका ने कहा था कि उसे अपने प्रदूषणकारी कोयला बिजली संयंत्रों को बदलने के लिए अरबों डॉलर की आवश्यकता होगी, जो स्वच्छ ऊर्जा के साथ देश की 80 फीसद बिजली का उत्पादन करते हैं.

दक्षिण अफ्रीका के पर्यावरण विभाग के मुताबिक, "जबकि दक्षिण अफ्रीका एक न्यायसंगत परिवर्तन के लिए प्रतिबद्ध है, हमें इस संक्रमण में तेजी लाने के लिए वित्तपोषण की सुनिश्चितता की जरूरत होगी. हमें एक अपरिवर्तनीय समझौते की जरूरत है जिस पर हम COP26 पर हस्ताक्षर कर सकते हैं जहां सभी पक्षों के रूप में हमारी प्रतिबद्धताएं स्पष्ट हैं.”

दक्षिण अफ्रीका के खनन और ऊर्जा मंत्री ग्वेदे मंताशे ने पिछले दिनों एक सम्मेलन मे कहा था, "हम विकसित अर्थव्यवस्था नहीं हैं. हमारे पास सभी वैकल्पिक स्रोत भी नहीं हैं.”

विल्सन कहते हैं, "उन दीर्घकालिक योजनाओं को बनाना मुश्किल है, जब तक कि आपको इस बात का अंदाजा न हो कि वित्त के संदर्भ में आपके लिए क्या उपलब्ध होने वाला है.” वो कहते हैं कि जीसीएफ ने अफ्रीका में सबसे कम विकसित क्षेत्रों, जैसे प्रशांत और कैरिबियन क्षेत्र में द्वीप राष्ट्रों में ऐसे प्रयासों को सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया है कि उन्हें नकदी का उचित हिस्सा मिल रहा है या नहीं.

जीसीएफ ने अनुकूलन परियोजनाओं के लिए अपने हिस्से का आधे से अधिक धन आवंटित किया है जिनमें थाईलैंड में टिकाऊ कृषि और केन्या में गरीब समुदायों के लिए जल सुरक्षा शामिल है.

अनुकूलन बनाम शमन

पिछले महीने सितंबर में इटली के मिलान शहर में आयोजित एक आपात सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने विकासशील देशों के लिए अनुमानित वित्त पोषण की आवश्यकता पर बल दिया जिसका 50 फीसद हिस्सा जलवायु संकट के लिए ‘अनुकूलन और लचीलेपन' के लिए निर्धारित किया जाएगा.

उनका कहना था, "अनुकूलन की जरूरतें साल दर साल बढ़ रही हैं. विकासशील देशों को अनुकूलन के लिए पहले से ही 70 बिलियन डॉलर की आवश्यकता है और इस दशक के अंत तक यह आंकड़ा चार गुने से ज्यादा यानी करीब 300 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष हो सकता है.” उनका कहना था कि इस राशि का ज्यादातर हिस्सा अनुदान से आना चाहिए जिसे लौटाना न पड़े.

ओईसीडी के हालिया आंकड़ों से पता चला है कि साल 2019 में करीब 80 बिलियन डॉलर जो देने का वादा किया गया था उसका सिर्फ एक चौथाई अनुकूलन के लिए था और इस राशि के दो-तिहाई से भी ज्यादा हिस्से से एशिया और अफ्रीका लाभान्वित हुए. शेष राशि का अधिकांश हिस्सा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती के शमन प्रयासों की ओर चला गया.

जीसीएफ के प्रवक्ता विल्सन कहते हैं, "अनुकूलन गतिविधियों के लिए अनुदान राशि की आवश्यकता होगी क्योंकि वे राजस्व उत्पन्न नहीं करेंगे. वे लोगों को चरम मौसम के विनाशकारी प्रभावों या जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र के स्तर में वृद्धि या बाढ़ और सूखे से बचाने के बारे में हैं. और ऐसा करना हमेशा मुश्किल होगा.”

COP26 से पहले, एनडीसी पार्टनरशिप ने जर्मन सरकार के समर्थन से 67 देशों को राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान के रूप में ज्ञात उत्सर्जन को कम करने के लिए अपने दीर्घकालिक लक्ष्यों को अपडेट करने में मदद की है. वैश्विक निदेशक विएरा कहते हैं कि उन्होंने अनुकूलन पर ध्यान केंद्रित करने में काफी बदलाव देखा है. हालांकि, उनके मुताबिक, अनुकूलन परियोजनाओं का वित्तपोषण अधिक चुनौतीपूर्ण था क्योंकि संभावित निवेशकों के लिए उत्सर्जन को कम करने की तुलना में अंतिम लक्ष्य देखना इतना आसान नहीं था.

विल्सन के मुताबिक, "यह स्पष्ट है कि अधिकांश वैश्विक धन अनुकूलन के बजाय नवीकरणीय परियोजनाओं में जा रहा है. उदाहरण के लिए, सौर संयंत्रों जैसी बड़े पैमाने की परियोजनाओं से निवेशकों को आकर्षित करना आसान है जो जलवायु परिवर्तन के व्यापक स्वास्थ्य प्रभावों की योजना बनाने के प्रयासों के बजाय लाभ की गारंटी दे सकते हैं.”

इस बीच, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने एक लचीलापन और स्थिरता ट्रस्ट का प्रस्ताव दिया है जो कम आय वाले देशों को जलवायु परिवर्तन और महामारी दोनों के सामने ‘आर्थिक लचीलापन और स्थिरता का निर्माण' करने में मदद करने के लिए 50 बिलियन डॉलर तक की पेशकश करेगा.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रबंध निदेशक क्रिस्टेलिना जॉर्जिवा कहती हैं, "लक्ष्य यह है कि कम कार्बन, जलवायु-लचीला, स्मार्ट, समावेशी अर्थव्यवस्थाओं में संक्रमण में देशों की सहायता करना. जलवायु को आईएमएफ ऋण कार्यक्रमों में पूरी तरह से एकीकृत किया जाएगा.”

आगे अभी बहुत कुछ करना है

विल्सन, विएरा और रोजास, बाइडेन प्रशासन और अन्य विश्व नेताओं द्वारा अपने फंडिंग वादों को बढ़ाने के लिए हाल के कदमों के बारे में सतर्क रूप से आशावादी थे. लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि बहुत कुछ करने की जरूरत है, जिसमें निजी क्षेत्र को लाना और क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर पर छोटे देशों के लिए धन की पहुंच को आसान बनाना शामिल है.

रोजास के मुताबिक, न केवल जलवायु वित्त प्रदान करने के मामले में, बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए कि सरकारें और निवेशक जीवाश्म ईंधन का समर्थन करने से दूर हैं, इस पर अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है.

उनके मुताबिक, "जब आप देखते हैं कि जलवायु के संबंध में इतना पैसा बह रहा है, तो आपको थोड़ी उम्मीद हो सकती है. लेकिन, जब आप देखते हैं कि जीवाश्म ईंधन और अन्वेषण और निष्कर्षण के लिए अभी भी ज्यादा कुछ नहीं हो रहा है, जिसे वास्तव में बदलने की जरूरत है. तब हमें पता चलता है कि हम वह नहीं कर रहे हैं जो करने की आवश्यकता है.”

रिपोर्टः मार्टिन कुएबलेर

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