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आखिर ताइवान से तकरार का चीन को होगा कितना फायदा

राहुल मिश्र
१५ अक्टूबर २०२१

चीन में साम्यवादी सरकार के गठन की वर्षगांठ अक्टूबर में होती है और इसी के साथ ताइवान के साथ उसका विवाद भी भड़क जाता है. इस साल चीन ने तो ऐसे तेवर दिखाए कि युद्ध जैसी नौबत दिखने लगी पर युद्ध चीन के फायदे में नहीं है.

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तस्वीर: Daniel Ceng Shou-Yi/picture alliance

पूर्व और दक्षिणपूर्व एशिया के देशों में वायांग या कटपुतली का खेल बड़ा मशहूर है. लोककथाओं पर आधारित इन नाटकों का मंचन कुछ इस तरह होता है कि देखने वाला परदे पर घूमती परछाईयों की गतिविधियों में इस कदर डूबने लगता है मानो पल भर के लिए वह सब सच ही हो. और अगर बैकग्राउंड संगीत भी नाटकीय हो तो फिर क्या कहने? बीते दो हफ्तों में चीन और ताइवान के बीच सामरिक जोर-आजमाइश भी कुछ हद तक वायांग के खेल जैसी ही लगी. दुनिया भर के लोगों को यही लगा कि चीन और ताइवान के बीच युद्ध अब शुरू हुआ कि तब. दोनों तरफ के नेताओं के वक्तव्य और वायु सेनाओं की गतिविधियां ही ऐसी थीं कि इस तरह की अटकलों का बाजार गर्म होना लाजमी था.

दरअसल, 1 अक्टूबर को चीन का राष्ट्रीय दिवस था. इसी दिन सन् 1949 में चीन में साम्यवादी पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना हुई थी. और जैसा कि अमूमन हर आधुनिक देश के साथ होता है, चीन में भी सालगिरह के आस-पास के दिनों में राष्ट्रवाद कुलांचे मारने लगता है. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी पर यह जिम्मेदारी कुछ ज्यादा ही है क्योंकि एक छोर से वह सरकार की तरह बैटिंग करती है और दूसरे छोर से जनता के बदले खुद ही बॉलिंग भी कर लेती है. जनता चाहे तो बैठे दर्शक दीर्घा में क्योंकि वेनगार्ड के आगे उसे खुद तो सही गलत की परख है नहीं.

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पूर्वी एशिया में एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन

राष्ट्रवाद के रंग में रंगी चीनी वायु सेना ने देश की जनता को एक मजबूत संदेश देने के लिए एक के बाद एक दर्जनों युद्धक जहाज ताइवान के दक्षिण पश्चिमी एडीआईजेड (एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन) के अंदर दाखिल होने के लिए भेज दिए. 1 से 4 अक्टूबर के बीच ही तकरीबन चीनी वायु सेना के 150 लड़ाकू जहाजों ने ताइवान की एडीआईजेड सीमा का उल्लंघन किया.

शी जिनपिंग के आक्रामक तेवर

राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने आक्रामक तेवर दिखाए और ताइवान को चीन में मिला लेने का संकल्प भी दुहराया. चीनी क्रांति की एक सौ दसवीं सालगिरह के अवसर पर 9 अक्टूबर को हुई बैठक में भी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस बात पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि चीन के राष्ट्रीय पुनरोत्थान के लिए चीन का पूरी तरह भौगोलिक एकीकरण होना जरूरी है. यह चीनी लोगों के लिए साझा सम्मान की ही बात नहीं, उनके साझा मिशन का भी हिस्सा है.

राष्ट्रपति शी जिनपिंग की इस बात को हलके में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि वह सिर्फ चीन के सर्वोच्च नेता ही नहीं, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सेंट्रल कमेटी के जनरल सेक्रेटरी और मिलिटरी कमीशन के प्रधान भी हैं. मार्च 2018 में नेशनल पीपल्स कांग्रेस की एक बैठक में जिनपिंग को 5 साल के असीमित कार्यकालों तक सत्ता पर बने रहने का निर्णय दिया गया.

China - Xi Jinping in Beijing
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपेंगतस्वीर: picture alliance / ASSOCIATED PRESS

इस बात के मद्देनजर भी अब यह साफ है कि जिनपिंग के लिए हर निर्णय के दूरगामी परिणाम होंगे. माओ जेडोंग के चीन की तरह अब शी जिनपिंग के फैसलों को भी अब बरसों तक चलाया जा सकता है. शी जिनपिंग की बातों से यह साफ है कि चीन ताइवान पर अपना दवा फिलहाल तो छोड़ने से रहा. तो क्या चीन ताइवान पर हमला करने जा रहा है? नहीं. चीन आने वाले कुछ समय में ऐसा कुछ नहीं करेगा जिससे उसके अपने हितों को सीधा नुक्सान पहुंचे. फिलहाल चीन ताइवान पर हमला नहीं करने जा रहा है, लेकिन हां, चीन की ये सरगर्मियां ताइवान के लिए कब सरदर्दियों में बदल जाएंगी, यह कहना मुश्किल है.

सालों से जारी चीन ताइवान विवाद

जहां तक पिछले दो हफ्तों की घटनाओं का सवाल है तो चीन और ताइवान के बीच बातों और धमकियों की रस्साकशी नई नहीं है. पिछले कई सालों में देखा गया है कि चीन और ताइवान के बीच खींचतान अक्टूबर के महीने में बढ़ जाती है. इन दोनों ही देशों के लिए यह सबसे प्रमुख मुद्दा है जिस पर सुलह करना मुश्किल ही नहीं, लगभग नामुमकिन है. खास तौर पर तब तक, जब तक ताइवान में साई इंग-वेन की सरकार है. और ऐसा इसलिए क्यों कि ताइवानी राष्ट्रपति साई इंग-वेन कट्टर राष्ट्रवादी हैं. और इस मुद्दे पर उनके विचार चीन की शी जिनपिंग की सरकार से बिलकुल मेल नहीं खाते.

Taiwanesischer Nationalfeiertag Präsident Tsai Ing-wen
ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेनतस्वीर: Chiang Ying-ying/AP Photo/picture alliance

जहां चीन ने ताइवान को अपना हिस्सा बना लेने की कसमें दोहराईं तो ताइवान भी चुप नहीं है. अपनी सालगिरह के दिन 10 अक्टूबर को, जिसे ताइवान के सन्दर्भ में 'डबल टेन' की संज्ञा भी दी जाती है, ताइवान ने भी अपने तेवर दिखाए और सैन्य शक्ति का मुजाहिरा किया. राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में राष्ट्रपति साई इंग-वेन ने चीन की अतिक्रमणवादी नीतियों की जमकर आलोचना की और कहा कि ताइवान यथास्थिति बनाये रखने के लिए कटिबद्ध है और चीन का आह्वान करता है कि वह यथास्थिति का सम्मान करे. उन्होंने यह भी कहा कि अगर ऐसा नहीं होता है तब भी ताइवान अपनी सुरक्षा और यथास्थिति बनाये रखने के लिए हर संभव कोशिश करेगा.

ताइवान के सख्त तेवरों को अमेरिका, जापान, और आस्ट्रेलिया से समर्थन मिला. यूरोपीय संघ ने भी ताइवान की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई. चीन की अचानक बढ़ी सैन्य गतिविधियों से हलकान हुए ताइवान पर संकट के बादल फिर से मंडराए तो सही, लेकिन जल्द ही छंट भी गए. 5 अक्टूबर के बाद से ही चीनी सेना की गतिविधियों में काफी कमी आई है.

ऑस्ट्रेलिया के पूर्व पीएम की बैटिंग

लेकिन चीन और ताइवान के बीच तकरार को और ज्यादा मीडिया कवरेज मिला भूतपूर्व ऑस्ट्रेलियन प्रधानमंत्री टोनी अबॉट के वक्तव्य से और ताइवान को भारतीयों के समर्थन से. टोनी अबॉट ताइपे में हो रही युषान फोरम कांफ्रेंस में मुख्य अतिथि के तौर पर शिरकत करने पहुंचे थे. अपने वक्तव्य में उन्होंने चीन को आड़े हाथों लिया और उस पर व्यापार को दूसरे देशों को दंडित करने का हथियार बनाने या यूं कहें कि कारोबार के शस्त्रीकरण करने का आरोप लगाया.

Taiwan | Besuch Tony Abbott
ऑस्ट्रेलिया के पूर्व राष्ट्रपति टोनी अबॉटतस्वीर: CNA

अबॉट ने चीन के हाथों हो रही अपने देश आस्ट्रेलिया की दुर्दशा का मुद्दा उठाया और कहा कि पड़ोसियों के साथ चीन का व्यवहार अनैतिक और निंदनीय है. उन्होंने कहा कि चीन ने खुद अपने ही नागरिकों पर साइबर जासूसी बढ़ा रखी है, और लाल तानाशाही के चलते लोकप्रिय शांतिदूतों को परे कर दिया है. हिमालय पर चीन ने भारतीय सैनिकों के साथ अमानवीय लड़ाई छेड़ रखी है. और पूर्वी सागर में और ताइवान के साथ उसने अनाधिकार अतिक्रमण करने की कोशिशें जारी रखी हैं. चीन की यह आक्रामककता उसकी कमजोर पड़ती अर्थव्यवस्था और तेजी से घटते राजकोष से भी जुड़ी हैं.

अपने देश में अब उतने लोकप्रिय नहीं रहे अबॉट ने इस भाषण से मानो कमाल ही कर दिया, जहां एक ओर चीन ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी तो वहीं ताइवान और दुनिया के तमाम देशों ने इस वक्तव्य को काफी सराहा. भारत, दक्षिणपूर्व एशिया, जापान, और आस्ट्रेलिया को एक कड़ी में पिरो कर अबॉट ने चीन की छवि को कुछ इस कदर पेश किया कि चीन सरकार सैन्य कार्रवाईयों के बजाय कूटनीतिक तू तू मैं मैं में लग गई. इसी कड़ी में चीन ने भारत की आलोचना भी की जिसके साथ सीमा विवाद संबंधी तेरहवें दौर की वार्ता भी अब विफल हो चुकी है.

भारत में ताइवान के लिए बढ़ता समर्थन

इन घटनाओं की खबर जैसे ही सोशल मीडिया पर आई तो भारतीयों ने ताइवान की एडीआईजेड सीमा में चीनी अतिक्रमण पर चीन को आड़े हाथों लिया. ट्विटर और फेसबुक पर ताइवान की बहार रही. पिछले साल की तरह इस साल भी 10 अक्टूबर को भारत में चीनी दूतावास के सामने ताइवान के समर्थन में झंडे और बैनर लगाए गए और दोनों देशों की अटूट दोस्ती की बातें की गयीं. हालांकि भारत सरकार का इससे कुछ लेना देना नहीं लेकिन ताइवान को लेकर जनता का बढ़ता समर्थन तो साफ दिखता है.

कुल मिलाकर बात यह कि चीन के सैन्य जहाजों का मुकाबला ताइवान ने कूटनीतिक तौर पर करने की कोशिश की और इसमें सफल भी रहा. गौरतलब है कि पिछले तीन-चार दिनों में चीन के सैन्य और कूटनीतिक दोनों ही तेवरों में खासी नरमी आई है. इन तमाम बातों पर गौर किया जाय तो लगता यही है कि फिलहाल चीन और ताइवान युद्ध की ओर नहीं बढ़ रहे हैं.

महाशक्ति चीन के आगे छोटे से ताइवान का लम्बे समय तक टिकना मुश्किल है, और यही वजह है कि ताइवान सामान विचारधारा वाले तमाम लोकतांत्रिक देशों को साथ लाने की कवायद में लगा है. ताइवान को शायद पता है, संघे शक्ति कलयुगे. लेकिन यह शक्ति हासिल करना हिमालय चढ़ने जैसा ही मुश्किल है. कूटनीतिक वायांग का यह खेल इन दोनों के बीच फिलहाल जारी रहेगा. लेकिन शी जिनपिंग की सत्ता से निपटने के लिए ताइवान को एक सुदृढ़ और सूझबूझ भरी दूरगामी नीति जल्द ही बनानी होगी.

(राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं.)

 

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