8 मई यानी 'नो सॉक्स डे'
अपने पैरों को बदबूदार जुराबों से आजाद कर दीजिए. क्या आप जानते हैं कि दुनिया हर साल 8 मई को 'नो सॉक्स डे' मनाती है.
रिलैक्स...
इंस्टाग्राम और फेसबुक पर पोस्ट होने वाली बीच पर बिना जुराबों वाली पैरों की फोटो शहरों की किचकिच से दूर आनंद से छुट्टियां मनाने का प्रतीक बन गई हैं. 8 मई को 'नो सॉक्स डे' का मकसद यही है कि लोगों को हमेशा जुराबे ना पहने रहने के फायदे बताए जाएं. जरूरी नहीं कि ऐसा करने के लिए बीच ही जाना जरूरी है.
नंगे पैरों के लिए
खासकर ठंडे देशों में लोग सार्वजनिक रूप से विरले ही अपने पैर जूतों से बाहर निकालते हैं. लेकिन अब ऐसा करने की वजह है. खासकर जर्मनी में नंगे पैर चलने का ट्रेंड लोकप्रिय हो रहा है. इसके लिए खास तौर से रास्ते बनाए जा रहे हैं. कुछ जगहों पर तो कई कई किलोमीटर लंबे ऐसे रास्ते बनाए गए हैं.
दिलचस्प जूते
नंगे पैर वाले जूते. ये आपको विरोधाभास लगेगा. लेकिन ऐसे जूते बनाए जा रहे हैं जो आपको नंगे पैर होने का अहसास कराएंगे. एक तरफ ये पैरों को बचाते हैं तो दूसरी तरफ इनसे आपके पैर जमीन के संपर्क में रहते हैं. लेकिन क्या ये वाकई फायदेमंद हैं, इस बात पर बहस चल रही है.
स्टार वाली अदा
अमेरिकी अभिनेत्री क्रिस्टन स्टेवार्ट 2018 के कान फिल्म फेस्टविल में ज्यूरी की सदस्य थीं. जब वह रेड कार्पेट पर नंगे पैर चलीं तो विवाद खड़ा हो गया. एक टेबलॉइड ने लिखा, "उन्होंने गोल्डन रूल तोड़ा है." कई लोगों ने इसे फेस्टविल की ड्रेस कोड के प्रति उनका विरोध बताया. हालांकि ऐसा कोई नियम नहीं है कि रेड कार्पेट पर हाई हील वाली सैंडल में चलना जरूरी है.
धार्मिक अनुष्ठान
पोप फ्रांसिस ने 2016 में रोम के करीब एक शरणार्थी शिविर में अलग अलग देशों से आए लोगों के पैरों को धोकर और उन्हें चूमकर प्रवासियों की पीड़ाओं से हमदर्दी दिखाई. पैर धोना एक ईसाई धार्मिक रिवाज है. ईसा मसीह ने भी अंतिम भोज के दौरान अपने अनुयायियों के पैर धोए थे. प्राचीन सभ्यताओं में इसे मेहमाननवाजी का एक रिवाज माना जाता था.
नंगे कहां हैं पैर
मेहंदी लगाने की परंपरा भारत के साथ पर्शिया, उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व में सदियों से रही है. महिलाओं के साथ साथ पुरुष भी मेहंदी लगाते हैं. भारत के बहुत से इलाकों में मेहंदी के बिना शादी नहीं होती. दुल्हा और दुल्हन ही नहीं, बल्कि उनके परिवारों की महिलाएं भी मेहंदी लगाती हैं. कई लोग अपने बाल भी मेहंदी से रंगते हैं.
झांकता अंगूठा
ज्यादातर लोगों को कभी ना कभी ये अनुभव हुआ होगा. आप किसी व्यक्ति के घर में दाखिल होने के लिए जूते उतारते हैं और आपके जुराब से आपके पैर का अंगूठा झांक रहा होता है. इसीलिए अमेरिकी एक्टर थॉमस रॉय मानते हैं कि बिना जुराब ही ठीक है और उन्होंने 'नो सॉक्स डे' की शुरुआत की. वह कहते हैं कि कम जुराब रहेंगे तो धुलने के लिए कपड़े भी कम होंगे जो पर्यावरण के लिए अच्छा है.
पहला कदम
मां बाप से ज्यादा अपने बच्चे का भला और कौन चाहता है. लेकिन जब बच्चा पहला कदम रखे तो उसके लिए रबड़ के तले वाली चप्पल सही हैं या फिर चमड़े का जूता. यह तथ्य है कि स्वस्थ पैरों के साथ पैदा होने वाले लोगों को बाद में परेशानियां होने लगती हैं. इसकी वजह है सही जूता ना पहनना. इसलिए सबसे अच्छा यही है कि शुरू में नंगे पैर ही चला जाए.
सिर से लेकर नख तक
आपने कभी गौर किया है कि पैरों पर कितने मुहावरे बने हैं. मिसाल के तौर पर पेश हैं कुछ मुहावरे: अपने पैरों पर खड़ा होना, अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना, किसी के पैर की धूल होना, जिसके पैर ना फटी बिभाई वो क्या जाने पीर पराई, पांव तले जमीन निकल जाना या फिर लातों के भूत बातों से नहीं मानते.
उल्टी गंगा
और ये तस्वीर 'डे विदआउट सॉक्स' से बिल्कुल उलट. यहां शरीर पर जुराबों के अलावा कुछ और नहीं है. यह तस्वीर मशहूर फोटोग्राफर डेविड लाचैपल ने हैपी सॉक्स ब्रैंड के विज्ञापन के लिए खींची. यह तस्वीर दिखाती है कि कैसे जुराब जैसी चीज भी फैशन स्टेटमेंट बन सकती है.