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शिक्षा

80 साल की उम्र में की पीएचडी

२३ फ़रवरी २०२१

उज्जैन की शशिकला रावल ने 80 साल की उम्र में संस्कृत में पीएचडी की उपाधि हासिल की है. 2009 से 2011 के बीच उन्होंने ज्योतिष विज्ञान से एमए किया और फिर वहां रुकीं नहीं.

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Indien Shashikala Rawal, PhD in Sanskrit mit 80 Jahren
तस्वीर: IANS

कहा जाता है कि पढ़ने और सीखने की कोई उम्र नहीं होती, इंसान जीवन भर सीखता और बढ़ता है. इसे सच साबित कर दिखाया है उज्जैन की शशिकला रावल ने, जिन्होंने 80 वर्ष की आयु में संस्कृत में पीएचडी की उपाधि हासिल की है. शशिकला ने यह उपाधि सेवा शिक्षा विभाग से व्याख्याता पद से सेवानिवृत्त होने के बाद हासिल की. सेवा निवृत्त होने के बाद उन्होंने 2009 से 2011 के बीच ज्योतिष विज्ञान से एमए किया. वे यहीं पर नहीं रुकीं. लगातार उन्होंने अध्ययन कर संस्कृत विषय में वराहमिहिर के ज्योतिष ग्रंथ 'वृहत संहिता' पर पीएचडी करने का विचार किया. उन्होंने सफलतापूर्वक इस काम को करते हुए 2019 में पीएचडी की डिग्री हासिल की.

शशिकला ने महर्षि पाणिनी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. मिथिला प्रसाद त्रिपाठी के मार्गदर्शन में 'वृहत संहिता के दर्पण में सामाजिक जीवन के बिंब' विषय पर डॉक्टर ऑफ फिलासॉफी की डिग्री हासिल की. 80 वर्षीय महिला को डिग्री प्रदान करते वक्त राज्यपाल आनन्दीबेन पटेल को सुखद आश्चर्य हुआ और उन्होंने महिला के हौसले की प्रशंसा की.

शशिकला से जब सवाल किया गया कि आमतौर पर लोग इस उम्र में आराम करते हैं लेकिन आपने पढ़ाई का रास्ता क्यों चुना, तो उन्होंने कहा कि उनकी हमेशा ज्योतिष विज्ञान में रुचि रही है और इस कारण विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा शुरु किए गए ज्योतिर्विज्ञान विषय में एमए में प्रवेश लिया, "इसके बाद और पढ़ने की इच्छा हुई तो वराहमिहिर की वृहत संहिता पढ़ी और इसी पर पीएचडी करने का विचार किया."

उन्होंने कहा कि ज्योतिष पढ़ने से उनके चिंतन को अलग दिशा मिली है, "ज्योतिष का जीवन में कुछ इस तरह का महत्व है जैसे नक्शे की सहायता से हम कहीं मंजिल पर पहुंचते हैं. ज्योतिष के माध्यम से जीवन के आने वाले संकेतों को पढ़कर हम चुनौतियों का सामना कर सकते हैं. जीवन में किस-किस तरह के संकट आ सकते हैं और कहां तूफानों से गुजरना होगा, इसका पहले से आकलन कर लिया जाए, तो जीवन बिताने में आसानी होती है."

उनका मानना है कि अंधविश्वास करने की बजाय ज्योतिषीय गणना के माध्यम से मिलने वाले संकेतों को समझना चाहिए.  डॉ. शशिकला रावल कहती हैं कि वे फलादेश और लोकप्रिय कार्यों के स्थान पर जीवन में मूलभूत बदलावों की तरफ अधिक ध्यान देती हैं और अपने ज्ञान का उपयोग आलेख या संभाषण के माध्यम से जनहित में करना चाहेंगी.

संदीप पौराणिक (आईएएनएस)

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