700 करोड़ रुपये की रेल लाइन बनाने में 25 साल लगे
जर्मनी की राजधानी बर्लिन से म्यूनिख के बीच हाइस्पीड रेल लाइन को बनाने में 25 साल का समय लगा.
विशाल परियोजना
25 साल पहले इंटरसिटी एक्सप्रेस ट्रेन यानी आईसीई की इस योजना पर जब काम शुरू हुआ. तभी से इसकी बड़ी आलोचना होती रही है. माना गया कि यह लोगों के पैसों की बर्बादी है. बहरहाल अब यह तैयार है और इस पर यात्रा भी शुरू गई है. दोनों शहरों के बीच अब सफर चार घंटे से कम का रह गया है.
कितने काम की रेललाइन
पूरा होने से पहले तक वीडीई 8 प्रोजेक्ट के बीच में ही बंद होने की आशंकाएं उठती रहीं. ट्रेन चलाने वाली कंपनी डॉयचे बान को उम्मीद है कि वह बजट एयरलाइन और लंबी दूरी की बस सेवाओं की तुलना में रेल को ज्यादा आकर्षक बना सकेगी. इस रूट पर फिलहाल रेल से 20 फीसदी यात्री सफर करते हैं जिसे डॉयचे बान बढ़ा कर 50 फीसदी करना चाहती है.
पुल और सुरंगें
इस रेल लाइन के लिए 300 से ज्यादा रेल और 170 से ज्यादा सड़क पुल बनाए गए. यात्रा मार्ग का आधा से ज्यादा हिस्सा जमीन के भीतर या फिर घाटियों से गुजरता है. 300 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली ट्रेन सुरंगों के भीतर हवा के दबाव से हलचल मचा सकती है. उन्हें संभालने के लिए खासतौर की संरचनाएं बनायी गयी हैं.
एक दिन में तीन बार
आईसीई की स्प्रिंटर हर रोज दोनों तरफ से तीन बार अपना सफर तय करेगी. एक तरफ की यात्रा में चार घंटे से कम वक्त लगेगा. आमतौर पर सामान्य आईसीई को इतनी दूरी तय करने में साढ़े चार घंटे लगते हैं. बर्लिन और म्यूनिख के बीच हर रोज 10 हजार से ज्यादा सीटें उपलब्ध होंगी. डॉयचे बान इसके लिए अपने टाइमटेबल में ऐतिहासिक बदलाव करने जा रही है. डीबी की एक तिहाई से ज्यादा ट्रेनों के समय बदलेंगे.
बजरी का गया जमाना
नयी रेल लाइनों पर रेलवे ने 1,60,000 से ज्यादा कंक्रीट के स्लैप लगाए हैं और इनके नीचे बजरी नहीं है. पांच टन के इस तरह के बोर्ड पर रेल ज्यादा सटीकता से चल सकेगी और साथ ही मरम्मत का खर्च भी कम होगा. रेलवे ट्रैक पासे की तरह लगाये गये हैं, यहां तक कि पुलों पर और सुरंगों में भी. इसके जरिए निर्माण में तेजी आयी.
जमीन के भीतर माल गाड़ी
न्यूरेम्बर्ग माल ढुलाई का एक बड़ा केंद्र है और न्यूरेम्बर्ग और फुर्थ के बीच रेल का मार्ग जर्मनी में सबसे व्यस्त रेलमार्ग है. अब 13 किलोमीटर लंबे एक नए रेल लाइन से इसके संकरापन को दूर करने की कोशिश हो रही है. इसमें सबसे प्रमुख है न्यूरेम्बर्ग और फुर्थ के बीच जमीन के भीतर बना सात किलोमीटर लंबा रास्ता. लोग इसे हाथोंहाथ लेंगे क्योंकि 2025 तक रेल के जरिए माल ढुलाई 60 फीसदी बढ़ने की उम्मीद है.
सुरंगों की सैर मुफ्त नहीं
रेल लाइन को बनाने में लगे भारी खर्च को किसी ना किसी रूप में वसूल भी करना होगा. इसमें ज्यादा से ज्यादा रेल यात्रियों को लुभाना एक रणनीति है तो दूसरी है टिकटों की कीमत बढ़ाना. बर्लिन और म्यूनिख की यात्रा के लिए लोगों को करीब 150 यूरो की रकम देनी होगी, ऐसा डॉयचे बान का अनुमान है. मौजूदा कीमत से यह करीब 13 फीसदी ज्यादा है.
पर्यावरण के लिए लाखों यूरो
जर्मन पर्यावरण संगठन बुंड ने रेलवे लाइन से पर्यावरण को होने वाले नुकसान की वजह से इसकी आलोचना की है. हालांकि डॉयचे बान का कहना है कि इसने 4000 हेक्टेयर से ज्यादा जमीन पर खेती को संभव बनाया है. इतना ही नहीं कंपनी के मुताबिक 6 लाख पेड़ भी लगाये गये हैं.
पुरातत्वविदों के लिए खजाना
निर्माण के दौरान पुरातत्वविदों के लिए भी बहुत कुछ था. यह रूट हजारों साल पुराने मार्गों से हो कर गुजरता है. इसके अलावा 7000 साल पुरानी एक बस्ती के अवशेषों का भी पता चला. इस बस्ती से जुड़े 20000 से ज्यादा अवशेषों के टुकड़े मिले. साथ ही 20 करोड़ साल पुराना एक जीवाश्म भी सुरंग बनाने के दौरान मिला.
सफलता की कोशिश
रेलवे के लिए अब चुनौती है लोगों को वायु या सड़क मार्ग की बजाय रेल मार्ग से सफर के लिए तैयार करना. अगर ट्रेन समय से चलें तो इसमें काफी मदद हो सकती है. शायद इस काम में नई आईसीई 4 ट्रेन मददगार हो.