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कला

70 साल के सलमान रुश्दी, 28 साल डर के साये में

१८ जून २०१७

दशकों तक भारतीय मूल के लेखक सलमान रुशदी को अपनी किताब "शैतानी आयतें" की वजह से जिंदगी मौत के फतवे के साये में गुजारनी पड़ी. अब वे खुलकर अभिव्यक्ति की आजादी के लिए लड़ रहे हैं. 19 जून को वे 70 साल के हो रहे हैं.

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Salman Rushdie
तस्वीर: Picture alliance/AP/Invision

बहुत कम तस्वीरें हैं जिनमें सलमान रुश्दी सार्वजनिक जगहों पर दिखते हैं. 28 साल से वे मौत के फतवे के साये में जी रहे हैं. फतवा जो ईरान के धार्मिक नेता आयातोल्लाह खोमैनी ने उनकी किताब "शैतानी आयतें" के प्रकाशन के बाद 14 फरवरी 1989 को दिया था. उन पर और उपन्यास के प्रकाशन और वितरण में मदद देने वाले लोगों पर ईशनिंदा का आरोप लगाया गया. उनके जापानी अनुवादक हितोशी इगाराशी की तो हत्या ही कर दी गई. इटैलियन अनुवादक और नॉर्वे के प्रकाशक हमले में बाल बाल बचे.

मौत के साये में जिंदगी

अब भी "शैतानी आयतें" के लेखक पर 40 लाख डॉलर का इनाम है. ईरान और पश्चिम के बीच रिश्तों के सामान्य होने के बावजूद पिछले साल इनाम की रकम बढ़ा दी गयी है. सलमान रुश्दी 12 साल तक ब्रिटिश एजेंटों की सुरक्षा में रहे हैं. सदी के बदलने के साथ वे ब्रिटेन छोड़कर न्यूयॉर्क चले गये. 2002 से वे बिना किसी सुरक्षा के रहते हैं. हालांकि वे अल कायदा और इस्लामिक स्टेट की हिटलिस्ट पर भी हैं, सुरक्षाकर्मी सिर्फ उनके सार्वजनिक आयोजनों पर ही साथ होते हैं. रुश्दी ने 2012 में छपी अपनी आत्मकथा "जोसेफ एंटन" में अपनी भूमिगत जिंदगी के बारे में लिखा है. ये भूमिगत काल के दौरान उनका छद्म नाम था.

जिंदगी के अनुभवों ने आजादी को उनकी जीवन का मुद्दा बना दिया. रुश्दी ने 2015 में डॉयचे वेले से एक इंटरव्यू में कहा था, "हमें अपनी कीमती और कड़े संघर्ष से पायी गयी आजादी की रक्षा करनी चाहिए." उन्होंने बार बार अभिव्यक्ति की आजादी के पक्ष में आवाज उठायी है, शार्ली एब्दो पर खूनी हमले के बाद, फ्रैंकफर्ट किताब मेले में और बर्लिन के अंतरराष्ट्रीय साहित्य महोत्सव में. "बोलने की आजादी का उसी तरह इस्तेमाल होना चाहिए जैसे हवा का जिसे हम सांस में लेते हैं, स्वाभाविक रूप से."

जीने के लिए लेखन

1947 में जन्मे सलमान रुश्दी मुंबई में सहिष्णु और महानगरीय माहौल में पले बढ़े. उनका परिवार मूल रूप से कश्मीर का था. नई दिल्ली में उनके पिता सफल कारोबारी बन गये थे. परिवार इस हालत में था कि अपने 14 साल के बेटे को ब्रिटिश पब्लिक स्कूल में भेज सके. 1964 में रुश्दी ने ब्रिटिश नागरिकता ले ली और अपनी मातृभाषा पश्तो के बदले अंग्रेजी में लिखना शुरू किया. उन्होंने कैम्ब्रिज के किंग्स कॉलेज में पढ़ाई की और थियेटर का कोर्स किया. 1968 में पढ़ाई पूरी करने वाले रुश्दी ने बाद में कहा हैं, "मैं 1968 की पीढ़ी का टिपिकल प्रतिनिधि था."

अपने करियर की शुरुआत सलमान रुश्दी ने पत्रकार, अभिनेता और विज्ञापन टेक्स्ट लेखक के रूप में की. लेकिन जल्द ही विज्ञापन एजेंसी का काम महत्वपूर्ण नहीं रहा. उन्होंने अपना पहला उपन्यास "ग्रिमस" प्रकाशित किया. लेकिन दूसरे उपन्यास "मिडनाइट चिल्ड्रेन" के साथ उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिल गयी. भारत की आजादी और विभाजन की पृष्ठभूमि में लिखे गये इस उपन्यास के लिए रुश्दी को बुकर प्राइज मिला और किताब अमेरिका और ब्रिटेन में बेस्टरसेलर साबित हुई. इस बीच, सलमान रुश्दी ने 12 उपन्यास, बहुत सारे निबंध और आत्मकथा लिखी है. सभी किताबें एक जैसी क्वालिटी में नहीं हैं लेकिन कई किताबें विश्व साहित्य की  क्लासिक बन गयी हैं.

अस्मिता, सच-झूठ और आतंक

अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने से सलमान रुश्दी स्तब्ध और क्रुद्ध हैं, महीनों बाद भी. उनका मानना है कि जब सच फर्जी खबर और पूर्वाग्रहों से प्रभावित होता है तो दुनिया उल्टी हो गयी है. इंटरव्यू में वे बेबाक हो गये हैं और व्हाइट हाउस में नस्लवादियों और पाखंडियों की बात करने लगे हैं. इस समय वे आई वेवे और इजाबेल अलेंदे जैसे प्रमुख बुद्धुजीवियों के साथ विस्थापित लेखकों की मदद के लिए अभियान चला रहे हैं.

लोगों को उनके नये उपन्यास  "गोल्डन हाउस" का इंतजार है, जो सितंबर में प्रकाशित हो रहा है. यह बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने से लेकर ट्रंप के राष्ट्रपति बनने तक एक युवा अमेरिकी फिल्मकार की कहानी है. उन्होंने कहा है कि अस्मिता, सच, आतंक और झूठ पर यह उनका अंतिम उपन्यास होगा. 2007 में ब्रिटिश महारानी ने उन्हें सर की उपाधि से सम्मानित किया. उनके लिए अब एक ही सम्मान बच गया है. वह है नोबेल पुरस्कार.

सबीने पेशेल