400 साल पुराना मदर्स डे
१३ मई २०१३प्राचीन ग्रीक और रोमन इतिहास में इस दिन के मनाए जाने के बहुत पुराने प्रमाण मिलते हैं. उनके इस दिन को मनाने के पीछे धार्मिक कारण जुड़े थे. इंग्लैंड में भी 17वीं शताब्दी में लेंट यानि 40 दिनों के उपवास के दौरान चौथे रविवार को मदर्स डे मनाया जाता था. चर्च में प्रार्थना के बाद बच्चे अपने अपने घर फूल या उपहार लेकर जाते थे. युगोस्लाविया और कई और देशों में भी इसी तरह के किसी ना किसी दिन के होने के प्रमाण मिलते हैं. धीरे धीरे यह चलन 19वीं शताब्दी तक बिल्कुल खत्म हो गया. हालांकि मदर्स डे मनाने की आधुनिक शुरुआत का श्रेय अमेरिकी महिलाओं जूलिया बार्ड होवे और ऐना जार्विस को जाता है.
दुनिया के अलग अलग हिस्सों में मदर्स डे अलग अलग तारीखों में मनाया जाता है. भारत में मदर्स डे मई माह के दूसरे रविवार को मनाते हैं.
आधुनिक मदर्स डे
अमेरिकी गृह युद्ध पर लिखे अपने गीत के जरिए खास पहचान बनाने वाली अमेरिकी लेखिका और कवयित्री जूनिया वार्ड होवे ने 1972 में सुझाव रखा कि 2 जून का दिन शांति और सद्भावना को समर्पित कर सभी माओं के लिए मनाया जाना चाहिए. कई सालों तक लगातार वह इस दिन बोस्टन में सम्मेलन और दूसरे कार्यक्रमों का आयोजन करती रहीं. लेकिन यह चलन ज्यादा दिन तक नहीं चल पाया और धीरे धीरे खत्म हो गया.
ऐना जार्विस को अमेरिका में मदर्स डे के आधुनिकीकरण की जननी माना जाता है. हालांकि ऐना ने खुद कभी शादी नहीं की और उनकी कोई संतान भी नहीं थीं लेकिन इस चलन की शुरुआत उन्होंने अपनी मां की याद में की थी. ऐना की मां एक समाज सेविका थीं और वह अक्सर ऐना से अपनी यह इच्छा जाहिर किया करती थीं कि एक दिन सारी दुनिया की माओं का सम्मान होना चाहिए और उन्हें समाज में उनके योगदान के लिए सराहा जाना चाहिए. 1905 में उनकी मृत्यु होने पर ऐना ने तय किया कि वह उनकी यह इच्छा जरूर पूरी करेंगी. प्रारंभ में उन्होंने अपनी मां के लिए चर्च में फूल भेजने शुरू किए फिर अपने सहयोगियों के साथ उन्होंने सरकार से इस दिन को सरकारी छुट्टी का दिन और आधिकारिक रूप से मदर्स डे के नाम से घोषित किए जाने की मांग की. 1914 में राष्ट्रपति वूडरो विल्सन ने मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे के रूप में घोषित कर दिया.
पुरुषों के लिए मां का महत्व
कहते हैं बेटियों के लिए मां उनकी सबसे बड़ी सहेली होती है तो पुरुष अपनी मां की छवि अपने भावी परिवार में किसी न किसी रूप में देखना चाहता है. भारत में पैदा हुए अरुण चौधरी 30 से ज्यादा सालों से अपनी मां से दूर जर्मनी में रह रहे हैं. उन्होंने बताया कि जब वह छोटे थे तो अपनी मां को हल्के हल्के गुनगुनाते सुनते थे. वह आवाज उनके कानों में हमेशा गूंजती रहती थी. जब उनकी बेटी का जन्म हुआ तो उन्होंने अपनी बेटी का नाम भी वही रखा जो उनकी अपनी मां का नाम था.
समाजशास्त्री योगेश अटल मानते हैं कि सबसे पहले संयोग का अनुभव कोख में कराने वाली और पैदा करते ही वियोग से भी परिचय कराने वाली भी मां ही होती है. बच्चे को जीवन के अनुभवों, सुरक्षा और दूसरी भावनाओं के साथ ही सामाजिक परिवेश से भी मां ही परिचित कराती है. इसलिए वह अपनी मां की झलक अपने आसपास सबसे नजदीक रहने वाली महिला में भी चाहता है.
समाज की रचनाकार
अटल मानते हैं कि अन्य पशुओं के मुकाबले मनुष्य जन्म से लेकर बड़े होने तक सबसे लंबे समय तक मां पर निर्भर रहता है. ऐसे में उसे मां से जो प्यार और देखरेख मिलती है वही उसमें भी दूसरों के लिए आती है. एक प्रयोग में पाया गया कि एक चिंपाजी के बच्चे को मां के साथ रख कर पाला गया और दूसरे को मां के स्तन जैसे फीडर पर पाला गया. बड़े होने पर पाया गया कि मां की देख रेख में पला चिंपाजी ज्यादा दोस्ताना और खुशमिजाज था जबकि दूसरे में ऐसे सामाजिक गुण नहीं थे. वह शांत और दूसरों से दूर रहने वाला था. स्पष्ट है कि समाज की इकाई यानि हम असल में मां के हाथों की रचना ही हैं.
प्यार की अगर कोई निस्वार्थ परिभाषा है तो वह मां ही है जो बच्चे से कुछ भी उम्मीद किए बगैर उस पर जान लुटाती रहती है. तभी तो सारी दुनिया की हर सभ्यता उसे सलाम करती है.
रिपोर्ट: समरा फातिमा
संपादन: आभा मोंढे