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समाज

40 महीने चरमपंथियों की कैद में, रिहाई पर मिल रहे हैं ताने

जूलियान रायल, टोक्यो से
२८ नवम्बर २०१८

जापानी पत्रकार जुंपेई यासुदा 40 महीनों तक सीरिया के चरमपंथियों की कैद में रहने के बाद रिहा हो गए हैं. लेकिन अब भी कई बार जब उनकी नींद खुलती है तो उन्हें लगता है जैसे कि वह कैद में ही हैं.

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Türkei Journalist Jumpei Yasuda auf dem Flug nach Istanbul
तस्वीर: Reuters/M. Ozkan

यासुदा ने इतना समय चरमपंथियों की कैद में गुजारा है कि उन्हें कई बार अपनी रिहाई पर विश्वास नहीं होता. 44 साल के यासुदा ने डीडब्ल्यू को बताया, "जब मैं कैद में था तो एक सपना अकसर देखा करता था कि मैं टोक्यो में अपने घर में हूं और अगर में दरवाजा खोलूं और बाहर जाऊं तो मैं आजाद हूं. और अब मुझे सपने आते हैं कि मैं सीरिया में हूं, कैद में ही हूं और मुझे कहीं आने जाने की आजादी नहीं है. यह बहुत ही अजीब बात है."

यासुदा कुल मिलाकर तीन साल और चार महीनों तक सीरिया में चरमपंथियों की कैद में रहे. उन्हें सीरियाई अल कायदा के नाम से मशहूर 'हयाता तहरीर अल शाम' गुट में हिरासत में रखा था. एक फ्रीलांस पत्रकार के तौर पर काम करने वाले यासुदा जून 2015 के मध्य में तुर्की से सीमा पार कर सीरिया में दाखिल हुए और लगभग तभी उन्हें बंधक बना लिया गया था.

यासुदा को सीरिया में कम से कम 10 जगहों पर रखा गया, जिनमें ब्रेड फैक्ट्री से लेकर निजी घर तक शामिल थे. इस दौरान युद्ध ग्रस्त सीरिया में सक्रिय चरमपंथी गुटों ने कई विदेशी पत्रकारों और सहायताकर्मियों को सार्वजनिक तौर पर मौत के घाट उतारा.

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यासुदा को 25 अक्टूबर को रिहा किया गया. लेकिन वतन वापसी पर उन्हें बहुत से जापानी लोगों का गुस्सा झेलना पड़ा. सोशल मीडिया पर कई लोग लिख रहे हैं कि यासुदा की वजह से जापान को राजनयिक मुश्किलें हुईं. कुछ लोगों का यह भी कहना है कि यासुदा की रिहाई के लिए जापान की सरकार ने मोटी फिरौती दी है. इस आरोप पर सरकार की तरफ से कुछ नहीं कहा गया है.

जापानी पर्यवेक्षकों का कहना है कि यासुदा को अपने किए की जिम्मेदारी लेना चाहिए क्योंकि उन्होंने सीरिया जाकर खुद ही अपने आपको मुसीबत में डाला. आलोचकों का कहना है कि यासुदा बिना किसी तैयारी के सीरिया चले गए. सोशल मीडिया पर उन्हें 'समाज को परेशान करने वाला' और 'जापान को बदनाम करने वाला' बताया जा रहा है.

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इस बीच, यासुदा ने कहा है कि उनकी वजह से उनके परिवार और देश के अधिकारियों को जो भी परेशानियां हुई हैं, वे उनके लिए माफी मांगते हैं. लेकिन उन्होंने पत्रकार होने और अपने काम के लिए माफी नहीं मांगी है. खास कर मध्य पूर्व की जापानी मीडिया में ज्यादा कवरेज नहीं होती और इसीलिए जापानी लोगों को इस बारे में ज्यादा नहीं पता कि इस इलाके के एक बड़े हिस्से में लोग किस कदर मुसीबतें झेल रहे हैं.

यासुदा कहते हैं, "जापानी लोग सिर्फ अपने आसपास के इलाके में होने वाले घटनाक्रम पर ही नजर रखते हैं जैसे उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया या फिर चीन. मिसाल के तौर पर उन्हें नहीं पता कि मध्य पूर्व में क्या हो रहा है. लेकिन वहां जो हो रहा है, वह महत्वपूर्ण है, क्योंकि हम वहां से तेल खरीदते हैं और हमें यह जानने का हक है कि दुनिया में क्या हो रहा है."

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उत्तरी जापान में एक स्थानीय अखबार की नौकरी छोड़ने के बाद सबसे पहले यासुदा अफगानिस्तान गए जहां उनका अपहरण कर लिया गया और तीन दिन बाद उन्हें रिहा किया गया. लेकिन इस अनुभव से घबराए बिना उन्होंने मध्य पूर्व और सीरिया में जाने का फैसला किया.

वह बताते हैं, "मैं 2012 में होम्स शहर के मीडिया सेंटर में था जहां केंजी गोटो, जेम्स फोली, रिकार्ड विलानोवा और ऑस्टिन टाइस जैसे पत्रकारों के साथ था. हम सब दोस्त थे और मिल कर काम कर रहे थे. हालात खराब थे लेकिन हम खबरों को कवर करने की कोशिश कर रहे थे."

बंधक बनाए जाने के तीन महीने बाद जनवरी 2015 में जापानी पत्रकार केंजी गोटो का सिर कलम कर दिया गया. तथाकथित आईएस चरमपंथियों ने उनकी हत्या की. अमेरिका में जन्मे फोली के साथ भी अगस्त 2014 में ऐसा ही किया गया. विलानोवा को आईएस चरमपंथियों ने आठ महीने अपनी कैद में रखने के बाद रिहा कर दिया. ऑस्टिन टाइस अगस्त 2012 में एक रिपोर्टिंग असाइनमेंट पर काम करते हुए गायब हो गए और आज तक उनका कोई अता पता नहीं है.

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यासुदा कहते हैं, "मुझे लगा कि मुझे वापस जाना चाहिए, भले ही मेरे दोस्त गोटो की हत्या की जा चुकी थी. मुझे शर्मिंदगी महसूस हुई कि मैं एक पत्रकार के तौर पर अपना काम नहीं कर सका, जैसा उन्होंने किया. भले ही यह खतरनाक था, लेकिन मुझे जाना ही पड़ा."

यासुदा सीरिया में आईएस के नियंत्रण वाले इलाकों की बजाय कुर्द गुटों के नियंत्रण वाले इलाके में गए. लेकिन तुर्की की सीमा पार करने के बाद ही उन्हें बंधक बना लिया गया और फिर उनकी जिंदगी के 40 महीने कैद में ही बीते.

वह कहते हैं, "मेरा जिंदा बचना एक चमत्कार ही है क्योंकि और लोग तो नहीं बच सके. मैं भाग्यशाली था कि मुझे आईएस ने बंधक नहीं बनाया था और मुझे कभी किसी दूसरे समूह को नहीं दिया गया था. मैं जिन लोगों की हिरासत में था, उनमें से कुछ आईएस के चरमपंथियों जैसे ही थे, लेकिन ज्यादातर काफी उदारवादी थे. कुछ लोग मुझे गालियां देते थे, लेकिन दूसरे लोग हमदर्दी भी दिखाते थे."

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कैद में अपने हालात बयान करते हुए यासुदा कहते हैं, "कुछ समय के लिए मुझे टॉयलेट वाले एक छोटे से कमरे में रखा गया. पता नहीं, क्यों उन्हें लगा कि मैं उनकी जासूसी कर रहा हूं. जब भी मैं कुछ आवाज करता तो वे मेरे कमरे के पास आ जाते थे और मेरी बातें सुनते थे. इसलिए मैंने चुप रहना शुरू कर दिया. वे मेरे कमरे के दोनों तरफ थे और मैं उन्हें दूसरे कैदियों का उत्पीड़न करते हुए सुनता था. इसलिए मैं शांत रहने लगा."

यासुदा से कई बार कहा गया कि उन्हें रिहा कर दिया जाएगा. और उन्हें 40 महीनों बाद आखिरकार तुर्की के अधिकारियों को सौंप दिया गया. यासुदा कहते हैं, "मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि यह सब हो रहा है. जब मैं कैद में था तो मुझे कहीं आने जाने या फिर आवाज करने तक की इजाजत नहीं थी, इसलिए मुझे तुरंत समझ में नहीं आया कि मैं क्या करूं. तीन साल तक सिर्फ खाने, सोने और किताबें पढ़ने के अलावा मैंने कुछ नहीं किया. किसी से बात नहीं की. तो समझ से बाहर था कि क्या करूं."

यासुदा अब अपने अनुभव पर एक किताब लिखने की योजना बना रहे हैं. लेकिन वह इस बारे में कुछ कहने की स्थिति में नहीं है कि वह काम के सिलसिले में फिर मध्य पूर्व जाएंगे या नहीं. उनका कहना है, "यह बहुत मुश्किल चीज है और मैं यह भी पक्के तौर पर नहीं कह सकता हूं कि वापस नहीं जाऊंगा. मेरी पत्नी तो चाहती है कि मैं तुर्की तक भी ना जाऊं. और वह बहुत जिद्दी है."

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