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निजी क्षेत्रों पर ज्यादा पकड़ क्यों हासिल करना चाहता है चीन

विलियम यांग
३१ मार्च २०२३

करीब तीन दशक पहले चीन ने अपने संविधान में ‘समाजवादी बाजार अर्थव्यवस्था’ के लक्ष्य को शामिल किया था. विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा लगता है कि ‘सुधार और खुलापन’ का वह युग अब समाप्त होने वाला है.

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China | Volkskongress (NPC) in Peking
तस्वीर: GREG BAKER/POOL/AFP/Getty Images

करीब 30 साल पहले 29 मार्च, 1993 को चीन ने औपचारिक तौर पर अपने संविधान में संशोधन किया था और ‘समाजवादी बाजार अर्थव्यवस्था (सोशलिस्ट मार्केट इकॉनमी)' को देश की आर्थिक प्रणाली के तौर पर अपनाया था. यह देश की दशकों पुरानी आर्थिक ‘सुधार और खुलापन' प्रक्रिया की दिशा में उठाया गया महत्वपूर्ण कदम था. दरअसल, ग्रेट लीप फॉरवर्ड और सांस्कृतिक क्रांति के बाद के वर्षों में राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक उथल-पुथल शुरू हो गया था. इसी उथल-पुथल की वजह से 1978 में अर्थव्यवस्था में ‘सुधार और खुलापन' की प्रक्रिया शुरू की गई थी.

चीनी कम्युनिस्ट पार्टीकी केंद्रीय समिति के समाचार पत्र पीपुल्स डेली के मुताबिक, इस संशोधन ने ‘समाजवादी शासन के विकास' की नींव रखी और संविधान में इस अवधारणा को शामिल करके, चीन के आर्थिक विकास की दिशा को नया आकार दिया.

अटलांटिक काउंसिल के इंडो-पैसिफिक सिक्योरिटी इनिशिएटिव के सीनियर फेलो डेक्सटर रॉबर्ट्स कहते हैं, "बड़े स्तर पर चीन का पहला वास्तविक आर्थिक सुधार 1980 के दशक में ग्रामीण क्षेत्रों में शुरू हुआ. उस समय सरकार द्वारा संचालित कई कारखानों का निजीकरण कर दिया गया. वहीं, कुछ स्थानीय अधिकारियों ने भी अपने मालिकाना हक वाले छोटे कारखाने शुरू किए.”

आर्थिक सुधार में तेजी

ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी (एएनयू) की अर्थशास्त्री जेन गॉली के मुताबिक, आर्थिक सुधार की इस पहली लहर से चीन के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली बड़ी आबादी की जिंदगी आसान हुई और उनकी आय में वृद्धि हुई. कृषि क्षेत्र में सुधार और विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना करने में मदद मिली.

सुधार और खुलापन की प्रक्रिया उस समय तेज हुई जब चीन के तत्कालीन राष्ट्रपति डेंग शियाओपिंग ने 1992 में अपने प्रसिद्ध ‘दक्षिणी दौरे' की शुरुआत की और प्रमुख तटीय शहरों का दौरा किया. इस दौरे में उन्होंने कहा कि देश को सुधार के रास्ते पर ले जाने की जरूरत है. उन्होंने अपने भाषण में बताया कि सुधार की प्रक्रिया को तेज करने की जरूरत क्यों है. हालांकि, शियाओपिंग के दौरे के बाद आर्थिक सुधार की दिशा बदल गई और पूरा ध्यान गांव से हटकर शहरों पर केंद्रित हो गया.

अटलांटिक काउंसिल के रॉबर्ट्स ने डीडब्ल्यू को बताया कि चीन के शहरी आर्थिक सुधार की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि कम्युनिस्ट पार्टी ने उद्यमियों और उद्यमों को अपने कामकाज से जुड़े फैसले लेने की ज्यादा स्वतंत्रता दी. उन्होंने कहा, "उद्यमी यह फैसला लेने लगे कि उन्हें किस चीज का उत्पादन करना है या उन्हें क्या बेचना है.”

निजीकरण और विश्व व्यापार संगठन में शामिल होना

बाद के कई वर्षों में, चीन में एक के बाद एक कई औद्योगिक सुधार हुए. इसमें ‘ग्रेस्प द लार्ज एंड लेट गो ऑफ द स्मॉल' नीति प्रमुख है. इस नीति के तहत सरकार ने अपने मालिकाना हक वाले कुछ बड़े उद्यमों को अपने नियंत्रण में रखने की कोशिश की और छोटे उद्यमों पर से अपना नियंत्रण छोड़ दिया.

रॉबर्ट्स ने कहा कि 1993 से 2003 तक तत्कालीन राष्ट्रपति जियांग जेमिन के कार्यकाल में चीन का आर्थिक विकास तेजी से हुआ. अर्थव्यवस्था में निजी उद्यमी और उद्यमों की ज्यादा से ज्यादा भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए संविधान में भी बदलाव किया गया. उन्होंने कहा, "जियांग ने निजी उद्यमियों को पार्टी का सदस्य बनने की इजाजत दी, जो कि एक बड़ा कदम था.” दरअसल, चीन में आर्थिक सुधार की प्रक्रिया 1970 के दशक के आखिरी वर्षों में ही शुरू हो गई थी, लेकिन पूंजीपतियों को लेकर पार्टी में लोगों की त्यौरियां चढ़ी रहती थी. ऐसे में पूंजीपतियों को पार्टी में शामिल करने का निर्णय एक बड़ा फैसला था. 2002 में पार्टी की 16वीं कांग्रेस में औपचारिक रूप से यह फैसला लिया गया था.

चीन 2021 में विश्व व्यापार संगठन में शामिल हुआ. इस महत्वपूर्ण फैसले के बाद चीन का बाजार पूरी दुनिया के लिए खुल गया. एएनयू की गॉली ने कहा, "यह काफी लंबी प्रक्रिया थी, जिसमें वैश्विक आर्थिक व्यवस्था के मुताबिक कारोबार करने के लिए चीन को कई वादे करने पड़े.”

ओरिएंट कैपिटल रिसर्च के प्रबंध निदेशक एंड्रयू कोलियर ने कहा कि विश्व व्यापार संगठन में शामिल होने से चीन के विकास की गति तेज हो गई और यह देश ग्लोबल इंडस्ट्रियल पावरहाउस में बदल गया.

इस सदी के पहले दशक के दौरान, चीन आर्थिक विकास की दर को उच्च स्तर पर बनाए रखने के लिए निर्यात, बुनियादी ढांचे में निवेश और रियल एस्टेट पर निर्भर था. वर्ष 2010 में, चीन आधिकारिक तौर पर जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया था, लेकिन जापान और चीन की जीडीपी में काफी कम का अंतर था. हालांकि, तब तक अर्थव्यवस्था से जुड़ी कई समस्याएं भी सामने आने लगी थीं. विदेशों से मांग कम हो गई, कर्ज बढ़ने लगा और भ्रष्टाचार काफी ज्यादा बढ़ गया.

क्या जिनपिंग चीन के विकास मॉडल को नुकसान पहुंचा रहे हैं?

वर्ष 2012 से शी जिनपिंग देश की सत्ता पर काबिज हैं. अब वे अर्थव्यवस्था को सीसीपी (चीनी कम्युनिस्ट पार्टी) के नियंत्रण में लाना चाहते हैं. वे जिन निजी कारोबारियों और तकनीक के क्षेत्र से जुड़े उद्यमियों को काफी ज्यादा शक्तिशाली मानते हैं उन्हें कमजोर कर रहे हैं.

रॉबर्ट्स ने कहा कि जिनपिंग का कदम पिछले कुछ दशकों के चीनी विकास मॉडल को नुकसान पहुंचा रहा है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "वे ऐसी अर्थव्यवस्था बनाना चाहते हैं जिसमें निजी क्षेत्र की स्थिति मजबूत हो, लेकिन उस पर सरकार का काफी ज्यादा नियंत्रण हो. मुझे लगता है कि ऐसा होना काफी मुश्किल है, क्योंकि दोनों चीजें एक साथ नहीं हो सकती हैं.”

कोलियर ने कहा कि ऐसा लगता है कि जिनपिंग निवेश आधारित आर्थिक मॉडल को उपभोक्ता आधारित आर्थिक मॉडल में बदलना चाहते हैं. हालांकि, उन्होंने कई ऐसे राजनीतिक फैसले लिए हैं जिनकी वजह से अर्थव्यवस्था के मॉडल में फिर से बदलाव करने पर देश को काफी ज्यादा आर्थिक नुकसान होगा, जैसे कि सरकारी क्षेत्र को ज्यादा तवज्जो देना.

उन्होंने कहा, "अर्थव्यवस्था में उपभोक्ताओं की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए जिनपिंग सरकारी क्षेत्र की कंपनियों को दी जा रही सहायता जारी रखना चाहते हैं. प्लैटफॉर्म इकॉनमी (डिजिटल प्लैटफॉर्म की मदद से होने वाले कारोबार) पर की गई कार्रवाई इसका एक संकेत है. यह काफी सफल क्षेत्र है. हालांकि, ऐसा हो सकता है कि इस क्षेत्र में प्रभुत्व से जुड़े कुछ मुद्दे हों, लेकिन इन मुद्दों को कानूनी रूप से हल करने की जगह, चीन ने इस पूरे उद्योग को लेकर ही बड़े पैमाने पर प्रतिबंध लागू कर दिया, क्योंकि इसे पार्टी के लिए खतरे के तौर पर देखा गया.

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कर्ज से प्रभावित हुआ विकास

पिछले तीन वर्षों में, चीन ने कोरोना महामारी और स्वास्थ्य आपातकाल  से निपटने के लिए शून्य कोविड नीति को सख्ती से लागू किया. इसका नतीजा ये हुआ कि अर्थव्यवस्था पस्त हो गई है. सरकार ने इस वर्ष के लिए लगभग 5 फीसदी के आर्थिक विकास का लक्ष्य निर्धारित किया है, जो कि पिछले साल महज 3 फीसदी तक सिमट कर रह गया था. अर्थव्यवस्था के लिहाज से यह पिछले 50 वर्षों में सबसे खराब वर्षों में एक था.

कोलियर ने कहा, "चीन का विकास प्रभावित होने की एक वजह यह भी है कि सरकार बेतरतीब तरीके से ज्यादा जोखिम वाला निवेश कर रही है और उसके ऊपर कर्ज भी काफी ज्यादा बढ़ गया है. कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है. इसलिए, मुझे संदेह है कि चीन मध्यम अवधि में अपनी विकास दर या संभावित विकास दर को बनाए रख सकता है.”

हालांकि, मौजूदा वर्ष के शुरुआती दो महीनों में आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि हुई है. ऐसा खपत और बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ने की वजह से हुआ है. हालांकि, वैश्विक मंदी के बीच निर्यात कमजोर बने रहने की उम्मीद है और संकटग्रस्त रियल एस्टेट सेक्टर की स्थिति में काफी धीमी गति से सुधार हो सकता है.

इस बीच, जिनपिंग केंद्रीय वित्तीय आयोग बनाकर वित्तीय मामलों को सीधे तौर पर नियंत्रित करने और उन पर निगरानी रखने के लिए बड़े पैमाने पर सरकारी ढांचे में फेरबदल कर रहे हैं, ताकि वित्तीय मामलों पर सत्ताधारी पार्टी की पकड़ मजबूत हो.

चीन की वित्तीय प्रणाली में पार्टी की वैचारिक और राजनीतिक भूमिका को मजबूत करने के लिए एक अलग केंद्रीय वित्तीय कार्य आयोग भी स्थापित किया जाएगा. कोलियर ने कहा कि इन उपायों से सिर्फ यही फायदा हुआ है कि अर्थव्यवस्था पर पार्टी की पकड़ मजबूत हुई है, लेकिन इससे आने वाले समय में विकास पर कोई सकारात्मक असर नहीं होगा.

शी जिनपिंग को दोस्ती और शांति के बीच चुनाव करना होगा

पिछले साल कम्युनिस्ट पार्टी की 20वीं कांग्रेस में जिनपिंग ने अपने वफादारों को सीपीसी में शीर्ष पदों पर बैठाया था. उन्होंने अपने काफी करीबी ली केकियांग को इसी महीने नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया है. रॉबर्ट्स ने कहा कि उन्हें उम्मीद नहीं है कि शीर्ष नेतृत्व में से कोई भी जिनपिंग के सामने खड़ा होगा और स्वतंत्र रूप से काम करेगा.

उन्होंने डॉयचे वेले से कहा, "पूरा नेतृत्व ही जिनपिंग के सामने नतमस्तक है, जो एक बड़ी समस्या है. मुझे इस बात की बिल्कुल उम्मीद नहीं है कि ली केकियांग खुद से कोई फैसला लेने में सक्षम होंगे या वे जिनपिंग के किसी कार्य का विरोध करेंगे.”