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शिक्षायूरोप

मौसम ने प्रभावित की 24 करोड़ बच्चों की पढ़ाई

विवेक कुमार
२४ जनवरी २०२५

यूनिसेफ की ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि चरम मौसम के कारण 2024 में 24 करोड़ से ज्यादा बच्चों की पढ़ाई में रुकावट आई. विशेषज्ञ कहते हैं कि गरीब बच्चों पर इसका असर ज्यादा होता है.

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पाकिस्तान में बाढ़
पाकिस्तान में 2022 में आई भयानक बाढ़ के कारण करोड़ों बच्चों की पढ़ाई रुक गईतस्वीर: Shahid Saeed/Mirza/AFP/Getty Images

जलवायु परिवर्तन न केवल पर्यावरण को बदल रहा है, बल्कि शिक्षा पर भी गंभीर असर डाल रहा है. यूनिसेफ की ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि 2024 में, 85 देशों में 24.2 करोड़ बच्चों की पढ़ाई चरम मौसम के कारण बाधित हुई. यानी दुनियाभर के हर सात छात्रों में से एक की पढ़ाई पर मौसम का असर पड़ा.

रिपोर्ट में कहा गया कि पिछले साल शिक्षा में सबसे बड़ी बाधा गर्मी की लहरों ने डाली. इसका असर 17.1 करोड़ बच्चों की पढ़ाई पर पड़ा. यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसेल ने कहा, "बच्चे गर्मी से ज्यादा प्रभावित होते हैं. उनका शरीर जल्दी गर्म होता है, वे कम पसीना बहाते हैं और उनके शरीर को ठंडा होने में समय लगता है."

उन्होंने आगे कहा, "बच्चे ऐसे क्लासरूम में ध्यान नहीं लगा सकते जहां राहत के लिए ठंडी हवा ना हो. अगर रास्ते में बाढ़ आ जाए या स्कूल बर्बाद हो जाएं, तो वे स्कूल नहीं जा सकते."

अप्रैल के महीने में, भारत, बांग्लादेश और फिलीपींस जैसे देशों में 11.8 करोड़ बच्चों की पढ़ाई भीषण गर्मी के कारण प्रभावित हुई. फिलीपींस में, हजारों ऐसे स्कूल बंद करने पड़े, जहां एयरकंडीशनर नहीं थे.

बाढ़, तूफान और शिक्षा पर असर

दक्षिण एशिया में जलवायु के कारण सबसे ज्यादा शिक्षा बाधित हुई, जिसमें 12.8 करोड़ बच्चे प्रभावित हुए. भारत में गर्मी के कारण 5.4 करोड़ बच्चों की पढ़ाई पर असर पड़ा, जबकि बांग्लादेश में 3.5 करोड़ बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हुई. दक्षिण सूडान में, जहां औसतन बच्चे पांच साल से कम समय के लिए स्कूल जाते हैं, वहां 2024 में 45 डिग्री सेल्सियस तक की गर्मी और बाढ़ ने स्कूलों को बंद करने पर मजबूर कर दिया. पाकिस्तान में 2022 में आई बाढ़ के बाद करोड़ों बच्चों के सामने पढ़ाई का संकट खड़ा हो गया था.

बीते सितंबर में, यागी जैसे चक्रवातीय तूफानों ने पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्रों में भारी तबाही मचाई. 18 देशों में कक्षाएं स्थगित करनी पड़ीं. विशेषज्ञों के मुताबिक बाढ़ एक ऐसी आम जलवायु आपदा बन गई है, जो बच्चों के स्कूल जाने और स्कूलों के ढांचे को नुकसान पहुंचाकर पढ़ाई को रोक देती है. ओस्लो विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान की पोस्ट डॉक्टरल फेलो डॉ. केटलिन एम. प्रेंटिस और उनके सह-लेखकों ने इस बारे में विस्तृत शोध किया है. 'नेचर क्लाइमेट चेंज' पत्रिका में प्रकाशित इस शोध के मुताबिक, "बाढ़ बच्चों के स्कूल जाने में बाधा डालती है, स्कूल की इमारतों और सामग्री को नुकसान पहुंचाती है, जिससे पढ़ाई और परीक्षा के नतीजे खराब होते हैं."

असमानता को बढ़ाता जलवायु संकट

जलवायु परिवर्तन का असर पहले से ही हाशिए पर मौजूद समुदायों पर ज्यादा पड़ता है. यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट में भविष्यवाणी की है कि अगर ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन ऐसे ही जारी रहा, तो 2050 तक बच्चों के गर्मी की लहरों के संपर्क में आने की संभावना 8 गुना बढ़ जाएगी. बाढ़ और जंगल की आग का खतरा भी कई गुना बढ़ जाएगा.

डॉ. प्रेंटिस और उनके साथियों ने अपने शोध में पाया कि कमजोर समुदाय जलवायु संकट का सबसे ज्यादा खामियाजा भुगतते हैं. उन्होंने कहा, "अमेरिका में, गर्मी ने कम आय वाले जिलों और अल्पसंख्यक छात्रों के परीक्षा परिणामों पर ज्यादा बुरा असर डाला."

फिलीपींस में एक सुपर टाइफून के बाद, गरीब परिवारों के बच्चों ने अमीर बच्चों के मुकाबले स्कूल छोड़ने की अधिक संभावना दिखाई. इस संकट का लड़कियों की पढ़ाई पर भी गहरा असर पड़ा है. कई जगहों पर जहां लड़कियों की पढ़ाई को पहले ही कम प्राथमिकता दी जाती है, वहां जलवायु संकट ने उनकी शिक्षा को और बाधित किया है.

यूनिसेफ के आंकड़ों के अनुसार, पहले ही दुनिया के दो-तिहाई बच्चे 10 साल की उम्र तक साथ पढ़ाई नहीं कर पाते. जलवायु आपदाओं ने इस शिक्षा संकट को और बढ़ा दिया है.

समाधान की जरूरत

जलवायु आपदाओं का असर बच्चों की शिक्षा पर लंबे समय तक रहता है. गर्मी का प्रभाव सिर्फ स्कूल के दिनों तक सीमित नहीं रहता. शोध में पाया गया कि गर्म दिनों की अधिक संख्या ने परीक्षा के परिणामों को खराब किया.

हैरानी की बात यह है कि गर्भावस्था के दौरान भी जलवायु आपदा का बच्चों पर प्रभाव पड़ता है. उदाहरण के लिए, जिन बच्चों की मां गर्भावस्था के दौरान तूफान सैंडी की चपेट में आईं, उनमें एडीएचडी (ध्यान में कमी की समस्या) जैसी स्थिति की संभावना ज्यादा पाई गई.

एक स्कूल, एक छात्र से बनेगा द्वीप का भविष्य

यूनिसेफ और विशेषज्ञों ने शिक्षा प्रणाली को जलवायु परिवर्तन के असर से बचाने की अपील की है. कैथरीन रसेल ने चेतावनी दी, "शिक्षा सबसे ज्यादा प्रभावित सेवाओं में से एक है, लेकिन इसे नीतिगत चर्चाओं में अनदेखा कर दिया जाता है. बच्चों का भविष्य सभी जलवायु योजनाओं और कार्यों का केंद्र बिंदु होना चाहिए."

डॉ. प्रेंटिस और उनकी टीम ने समाधान सुझाते हुए कहा कि स्कूलों में ठंडी हवा की व्यवस्था, बाढ़-रोधी संरचनाएं और आपदा प्रबंधन योजनाएं लागू की जानी चाहिए. साथ ही, सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को भी दूर करना होगा.

सबसे महत्वपूर्ण है ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करके ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकना. शोधकर्ताओं ने कहा, "शिक्षा न केवल जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद करती है, बल्कि बच्चों को संकटों का सामना करने के लिए मजबूत भी बनाती है."

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