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50 सालों में बहुत बढ़ जाएगी गर्मी

५ मई २०२०

संभव है कि अगले 50 सालों में दुनिया की लगभग एक-तिहाई आबादी ऐसे इलाकों में रह रही होगी जहां औसत सालाना तापमान 29 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाएगा. इसे रोकने के लिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना बहुत जरूरी है.

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Symbolbild Globus
तस्वीर: picture-alliance/U. Baumgarten

नीदरलैंड्स में हुए एक महत्वपूर्ण अध्ययन में यह पाया गया है कि अगर ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम नहीं किया गया तो अगले 50 सालों में दुनिया की लगभग एक-तिहाई आबादी भीषण गर्मी में रहने पर मजबूर हो जाएगी. नीदरलैंड्स की वगेनिंगेन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के अनुसार साल 2070 तक लगभग 3.5 अरब लोग ऐसे इलाकों में रह रहे होंगे जहां अनुमान है कि औसत सालाना तापमान 29 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाएगा, अगर वो वहां से दूसरे इलाकों में रहने नहीं चले जाते.

इस अध्ययन के नतीजे सोमवार को पीएनएएस जर्नल में छपे. अध्ययन का नेतृत्व करने वाले मार्टेन शेफर ने बताया कि ऐसे हालातों में रहने का मतलब यह होगा कि इंसान पिछले 6,000 सालों से जिस विशिष्ट पर्यावरण स्थिति में रह रहा है, विश्व की आबादी का एक बड़ा हिस्सा उस से बाहर चला जाएगा. शेफर का कहना है, "कोरोना वायरस ने दुनिया को ऐसा बदल दिया है जैसा कुछ ही महीनों पहले तक कल्पना करना भी मुश्किल था और हमारे नतीजे ये दिखाते हैं कि जलवायु परिवर्तन भी ऐसा ही कुछ कर सकता है." 

शेफर ने यह भी कहा कि पर्यावरण संबंधी ये बदलाव उतनी जल्दी नहीं होंगे जितनी जल्दी कोरोना वायरस महामारी से होने वाले बदलाव सामने आ रहे हैं, लेकिन महामारी के बारे में जो उम्मीद है कि भविष्य में स्थिति बेहतर होगी वो उम्मीद जलवायु परिवर्तन से नहीं की जा सकती. शेफर और उनके सहयोगियों ने आंशिक रूप से अपनी निष्कर्षों को पुराने डाटा के विश्लेषण पर आधारित किया है.

Russland Klima | Luftverschmutzung in Moskau
तस्वीर: AFP/D. Dilkoff

इसके लिए उन्होंने उन इलाकों के पर्यावरण की स्थितियों की एक दूसरे से तुलना की जहां इंसान रहना सबसे ज्यादा पसंद करते हैं. उन्होंने पाया की इंसानी आबादी का घनत्व ऐसे स्थानों पर बढ़ जाता है जहां औसत सालाना तापमान 11 से 15 डिग्री सेल्सियस के बीच में रहता है. इसके बाद नंबर आता है उन स्थानों का जहां औसत सालाना तापमान 20 से 25 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है.

इस स्थिति में पिछले 6,000 सालों में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया है और इसी वजह से रिसर्चर तापमान की इस रेंज को "ह्यूमन इकोलॉजिकल नीश" कहते हैं. भविष्य में देखने के लिए वैज्ञानिकों ने संयुक्त राष्ट्र की इंटर-गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की 2014 में जारी हुई पांचवीं आकलन रिपोर्ट में से एक जलवायु पूर्वानुमान का इस्तेमाल किया. ये रिपोर्ट यह मान कर चलती है कि वातावरण में रहने वाली ग्रीनहाउस गैस कंसंट्रेशन मोटे तौर पर बिना किसी रोक टोक के बढ़ते रहेंगे, जैसे वो पिछले कई दशकों से बढ़ते आ रहे हैं.

इसकी वजह से इसी के अनुपात में दुनिया में तापमान बढ़ेगा. तीसरे तथाकथित शेयर्ड सोशियो इकनोमिक पाथवे (एसएसपी 3) के अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्शनों का इस्तेमाल करके, रिसर्चरों ने बढ़ते हुए तापमान के आगे अनुमानित विश्व आबादी का अंदाजा लगाया. वैज्ञानिकों ने पाया कि 2070 तक 29 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा सालाना औसत तापमान वाले इलाकों का प्रतिशत 0.8 से बढ़कर 19 प्रतिशत हो जाएगा.

BG Waldbrände in Australien | Inferno III
तस्वीर: Reuters/AAP Image/D.

प्रभावित इलाके दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, भारत, दक्षिण पूर्व एशिया और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में पाए गए. गर्म होता हुआ पर्यावरण अकेले भारत में एक अरब से ज्यादा लोगों को प्रभावित करेगा और नाइजीरिया, पाकिस्तान, इंडोनेशिया और सूडान में 10 करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित होंगे. शेफर कहते हैं, "इसका ना सिर्फ एक विध्वंसकारी सीधा असर होगा, बल्कि इससे दुनिया के देशों के लिए नई महामारी जैसे भविष्य के संकटों से निपटना और मुश्किल हो जाएगा".

शेफर बड़ी संख्या में इन इलाकों से माइग्रेशन की भविष्यवाणी करने से रुक गए. उन्होंने कहा की माइग्रेशन ट्रिगर करने वाले कारण कई तरह के और पेचीदा होते हैं. हां, उन्होंने यह जरूर कहा कि ये अध्ययन वैश्विक समुदाय से अपील करने के काम आएगा कि कार्बन उत्सर्जन को जल्द कम किया जाए.

सीके/एए (डीपीए)

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