1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

2009: महिला जगत के सशक्त नाम

प्रिया एसेलबॉर्न (संपादन- आभा मोंढे)२५ दिसम्बर २००९

2009 में किन महिलाओं ने बनाई ख़ास पहचान और कैसा रहा ये साल स्त्री जगत के लिए. कौन थीं वे महिलाएं जिनकी क़ामयाबी, जिनके हुनर और संघर्ष ने दुनिया को प्रेरित किया.

https://p.dw.com/p/LDPL
चार साल से दुनिया की सबसे शक्तिशाली महिला अंगेला मैर्केलतस्वीर: dpa

जर्मन चांसलर अंगेला मैर्कल ने 2009 में एक बार फिर साबित कर दिया कि वह दुनिया की सबसे शक्तिशाली महिला हैं. और 2009 में ही नहीं बल्कि लगातार चार साल से अमेरिकी पत्रिका फोर्ब्स के अनुसार दुनिया की सबसे शक्तिशाली महिलाओं की सूची में पहले नंबर पर हैं. 55 साल की मैर्केल ने सितंबर में हुए आम चुनावों में भी अपनी सीडीयू पार्टी के साथ भारी जीत हासिल की और वह दूसरी बार जर्मनी की चांसलर बनी. जर्मन संसद में भी महिलाओं की संख्या भी बढ़ी है. मौजूदा वक्त में दो दर्जन से ज़्यादा देशों की कमान महिलाओं के हाथों में है, जिनमें जर्मनी के अलावा अर्जेंटीना, बांग्लादेश और लाइबेरिया प्रमुख हैं.

Flash-Galerie Hillary Clinton
चतुर कूटनीतिज्ञ हिलेरी क्लिंटनतस्वीर: picture alliance / abaca

दमदार हिलेरी
दूसरी नेता जिन्होंने 2009 में दिखाया की हार में हमेशा एक नई शुरुआत भी छिपी होती है वह हैं हिलेरी क्लिंटन. पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की पत्नी हिलेरी राष्ट्रपति बनने की दौड में थीं. लेकिन डेमोक्रेटिक पार्टी में उनके प्रतिस्पर्धी राष्ट्रपति बराक ओबामा को आख़िरकार पार्टी का उम्मीदवार बनाया गया. लेकिन ओबामा हिलेरी और उनकी क़ाबिलियत को भूले नहीं और हिलेरी अमेरिकी विदेश मंत्री बनाई गईं. अब जब ओबामा अपनी अपेक्षाओं में उलझते जा रहे हैं, हिलेरी दुनियाभर में न सिर्फ ओबामा का समर्थन कर रहीं है बल्कि अपनी तेज़ चतुर और सुलझी हुई कूटनीति से अपना दबदबा बनाए रखने में सफल हैं.

सोनिया का संघर्ष

अमेरिका की सोनिया सोटोमायोर को नहीं भूला जा सकता. 55 साल की सोनिया सोटोमायोर ने इसलिए इतिहास रचा क्योंकि वह अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में पहली लातिन अमेरिकी मूल की जज हैं यानी एक अल्पसंख्यक समुदाय की महिला है. ख़ुद सोनिया को शुरू से ही सीखना पड़ा कि संघर्ष का मतलब क्या होता है. न्यूयॉर्क के सबसे बदनाम और खस्ताहाल इलाके ब्रॉंक्स में पली सोनिया ने नौ साल की उम्र में ही अपने पिता को खो दिया. उनकी मां मारसोनिया नर्स थीं और अपने दोनों बच्चों को पालने के लिए उन्हें हफ़्ते में छह दिन सुबह से शाम तक काम करना पड़ता था. संघर्ष करना और जीवन में आगे बढ़ने की इच्छा ने सोतोमायोर को बेहद अनुशासित और महत्वाकांक्षी बनाया.

Sonia Sotomayor
सोनिया सोटोमायोर- अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में पहली लातिन मूल की जजतस्वीर: AP

स्टाईपंड के साथ उन्होने देश के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में पढ़ाई की, मेहनत और लगन के बलबूते समय से पहले डिग्री पाई. वे कहतीं हैं "पिछले दिनों में मुझसे बहुत बार पूछा गया कि मेरे काम को लेकर मेरा सिद्धांत क्या है-क़ानून के प्रति वफ़ादारी. एक न्यायाधीश का काम क़ानून बनाना नहीं होता है, उसका काम क़ानून का पालन करवाना होता है."

साहित्य की बुलंद आवाज़
कला की दुनिया में तानाशाही के बीच रहते हुए इसके ख़िलाफ़ नारा बुलंद करने वाली हैर्टा म्यूलर को नोबेल साहित्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 56 साल की हैर्टा ने अपनी किताबों में उस दर्द को बयान किया है, जिसकी टीस पूर्वी यूरोप के हर दिल में बरसों तक बसी रही. हैर्टा म्यूलर की किताबों में न सिर्फ़ एक चरित्र की बेबसी झलकी है, बल्कि शासन का क्रूर रूप भी दिखा है.
एक तरफ़ मौत का फ़रमान जारी करते तानाशाह दिखे हैं तो दूसरी तरफ़ उनके आदेशों से पिसते और पिटते आम इंसान दिखे हैं. हैर्टा ने रोमानिया के तानाशाह निकोलानए चाउशेसकू के बारे में बहुत कुछ कहा है. कभी सीधे, कभी इशारों में. वह अपनी किताब में लिखती हैं-

Jahresrückblick 2009 Flash-Galerie Literaturnobelpreis Herta Müller
साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित हैर्टा म्युलरतस्वीर: AP

"अमेली ने रुमेनिया का नक्शा दीवार पर टांग दिया और बताने लगी कि यह हमारी मातृभूमि है. बताने लगी कि छोटे छोटे कमरों को मिला कर घर बनता है. छोटे छोटे घरों को मिला कर बड़ा घर बनता है. हर घर में हमारे माता पिता रहते हैं. वे हमारे अभिभावक होते हैं. अगर रुमेनिया एक बड़ा घर है तो कॉमरेड निकालाउ चाउशेसकू इसके अभिभावक हैं. वह हमारे पिता हैं. हम सब बच्चे उनसे प्यार करते हैं क्योंकि हमारे परिवार के वह पिता हैं."

हैर्टा म्युलर कहतीं हैं" मुझे ऐसा लगता है कि लेखन का मुख्य विषय हमेशा वह दर्द होता है जिससे लेखक गुज़रा है. वह नुकसान जो उसे झेलना पड़ा है. ऐसा आपको सहित्य में बहुत मिलेगा और बहुत से लेखक हैं जो इस तरह के विषय चुनते हैं. यानी वे अपने विषय चुनते नहीं, उनका अनुभव कर चुके होते हैं. "

Caster Semenya Siegerin 800 Meter WM Berlin 2009 Flash-Format
दक्षिण अफ्रीका की तूफ़ान धावक कास्टर सेमेन्यातस्वीर: AP

म्यूलर की किताबें 20 भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं और उन्हें दुनिया भर के 20 बड़े पुरस्कार मिल चुके हैं. लेकिन नोबेल मिलने पर हैरान म्यूलर कहती हैं कि उन्हें इतनी जल्दी इस बात की उम्मीद नहीं थी.

सेमेन्या का दुख
खेल के मैदान पर सबसे ज़्यादा दुख 2009 में दक्षिण अफ्रीका की 18 साल की धावक कास्टर सेमेन्या को सहना पढा. बर्लिन में अगस्त में हुए वर्ल्ड एथलेटिक्स मुक़ाबले में कास्टर सेमन्या 800 मीटर की रेस में तूफ़ान की तरह दौड़ी और सोने का पदक ले उड़ीं. रेस में हारी लड़कियों ने आरोप लगा दिया कि सेमेन्या महिला है ही नहीं और मर्द होकर औरतों की रेस कर रही है. इसके बाद आरोप और विवाद का तूफ़ान शुरू हुआ जिसके भंवर में 18 साल की कास्टर सेमेन्या फंस गई . खुलेआम उनकी बेईज़्ज़ती हुई, उनकी अपनी पहचान ही उन्हें समझ में नहीं आई. बडे टेस्ट किए गए जिनसे पता चला की उनके हॉर्मोन्स में गड़बड़ी है. ये बात कई लोगों को पता थी. लेकिन सफलता के लिए देश के अधिकारियों ने सेमेन्या को नहीं बताया कि इससे कितना बडा विवाद हो सकता है और उसे अकेला छोड़ दिया.

शानदार वापसी
सबको हैरान करने वाली थी बेल्जियम की टेनिस खिलाडी किम क्लाइजस्टर्स की कहानी. मां बनने के बाद दुनिया की लंबे समय तक नंबर वन टेनिस खिलाडी रहने वाली किम ने अपना कमबैक घोषित किया और सीधे यूएस ओपन जीतीं. यह पहली बार था कि खेल की दुनिया से इतने लंबे समय दूर रहने के बाद कोई ऐसी शानदार वापसी करे.

खो गई हस्तियां

Pina Bausch Flash-Galerie
कोरियोग्राफ़र पीना बाउषतस्वीर: picture-alliance/ dpa

2009 में कई बडी हस्तियां इस दुनिया से विदा हुईं. जर्मनी की पीना बाउष- दुनिया के सबसे मशहूर डांसर और कोरियोग्राफरों में से एक थी. उन्होने डांस थिएटर की एक बिल्कुल अलग शैली तैयार की. उनके निधन पर उन्हें जर्मनी में हीं नहीं बल्कि भारत तक याद किया गया क्योंकि कार्यक्रमों के सिलसिले में वह भारत भी गईं थीं.
पीना बाउष के लिए नृत्य की दुनिया में अपनी जगह बनाना उनके लिए बहुत मुश्किल काम था. वह1940 - यानी दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जन्मी- और फिर एक ध्वस्त हुए देश में पली बढ़ीं, नृत्य में करियर बनाने के लिए उन्हें कई सामाजिक बाधाओं को पार करना था, यानी पीना ने शुरू से संघर्ष करना सीखा. 60 के दशक में जर्मनी में भी नर्तक के तौर पर महिलाओं के करियर को उचित काम नहीं माना जाता था. कहते हैं पीना का प्रदर्शन ऐसा था, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता था. या तो लोग उन्हें पसंद करते थे, या उन्हें नापंसद.
सबसे ख़ूबसूरत महिला
अपने समय में दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत महिलाओं में गिने जाने वाली गायत्री देवी का भी 2009 में 90 साल की उम्र में निधन हुआ.जयपुर की महारानी ही नहीं, बहुत पढ़ी लिखी गायत्री देवी लोकसभा की सदस्य भी रही हैं. लेखक के तौर पर भी और महिला अधिकारों के लिए संघर्ष करने के रूप में भी वह जानी जातीं थीं.

Gayatri Devi Maharani of Jaipur
जयपुर महारानी गायत्री देवीतस्वीर: AP

अक्विनो से सू ची तक
कोराज़ों अक्विनो 1986 से 1992 तक फिलिपीन्स की राष्ट्रपति रहीं है. अपने पति के साथ उन्होने तानाशाह फर्डिनांड मार्कोस के ख़िलाफ़ संघर्ष किया और फिर वह अपने पति की हत्या के बाद राष्ट्रपति बनीं, उन्हे लोकतंत्र की मां के नाम से भी पुकारा गया क्योंकि उन्होंने देश को एक नई दिशा दी. 76 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई.

अक्विनो अगर लोकतंत्र की मां कही जाती थीं तो उधर म्यामांर में लोकतंत्र की बेटी आंग सान सू ची की नज़रबंदी जारी है. सू ची का लोकतंत्र के लिए संघर्ष भी जारी है. दुनिया भर के नेता उनकी रिहाई की मांग कर चुके हैं.

Flash-Galerie Myanmar Burma Aung San Suu Kyi
दरवाज़ों में बंद लोकतंत्र की आवाज़- आंग सान सू चीतस्वीर: picture alliance/dpa

सशक्त संघर्ष

एक कहानी मुंबई की अरुणा रामचंद्रन शानबाग की भी है जो 36 साल पहले हुई बलात्कार की एक वारदात के बाद से कोमा में हैं. और अब उनके लिए इच्छा मृत्यु की अपील की गई है. अगर ये कहानी एक यातना और बर्बरता झेलने वाली महिला की है तो इन्हीं चीज़ों के ख़िलाफ़ अभूतपूर्व संघर्ष करने वाली आवाज़ बन गई हैं मणिपुर की इरोम शर्मिला. वह दस साल से भूख हड़ताल पर हैं. अस्मिता और सम्मान की लडा़ई का एक बड़ा प्रतीक बन गई मशहूर एक्टिविस्ट और कवि शर्मिला सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम को हटाए जाने का विरोध कर रही हैं.

महिलाओं का अपने मानवाधिकारों के लिए संघर्ष और विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्धियों का दौर जारी रहेगा और उनके काम और उनके अनुभव को याद करने का सिलसिला भी.