200 साल के हुए गेओर्ग बुइषनर
हाल ही में न्यूजीलैंड की 28 वर्षीय एलिनोर कैटन मैन बुकर पुरस्कार जीतने वाली सबसे कम उम्र की लेखिका बन गईं. अच्छी किताबें लिखने के लिए उम्र की नहीं, हुनर की जरूरत होती है. जर्मनी के गेओर्ग बुइषनर ने इसी बात को साबित किया.
छोटी से उम्र में
गेओर्ग बुइषनर जर्मनी के बेहतरीन लेखकों में गिने जाते हैं. लेकिन दुनिया को वह केवल तीन नाटक, एक कहानी और कुछ चिट्ठियां ही दे पाए. उनका जन्म 17 अक्टूबर 1813 को हुआ और बस 23 साल की ही उम्र में टाइफाइड होने से उनकी मौत हो गयी. उनके नाटक 'वॉयत्सेक' को प्रस्तुत करता बेल्जियम का थिएटर ग्रुप एनटीजेंट.
रहस्यपूर्ण चेहरा
माना जाता है कि अगर इतनी कम उम्र में बुइषनर का निधन नहीं हुआ होता तो साहित्य जगत को वह शिलर और गोएथे की ही तरह अपना योगदान दे पाते. उनकी बहुत कम ही तस्वीरें मौजूद हैं. इसी साल गीसेन में एक घर की परछत्ती से उनका यह स्केच मिला.
लेखक का घर
200वीं सालगिरह मनाने के लिए कुछ साल पहले ही बुइषनर के घर की मरम्मत शुरू की गयी. फ्रैंकफर्ट से कुछ ही दूर रीडश्टाट में उनका जन्म हुआ. दुनिया भर से लोग उनका घर देखने यहां पहुंचते हैं.
घर से भागे
बुइषनर को साहित्य जगत में उनकी क्रांतिकारी विचारधारा के लिए याद किया जाता है. वह बचपन से ही हर चीज पर सवाल उठाया करते थे. घर हो या स्कूल, उनके सवाल कहीं नहीं रुकते. एक बार तो उन्होंने सीढ़ी लगा कर घर से भागने की भी कोशिश की. यह बोर्ड उसी जगह पर लगा है.
विज्ञापनों में
बुइषनर के घर से कुछ ही दूरी पर डार्मश्टाट में यह ट्राम उनकी प्रदर्शनी का विज्ञापन ले कर चल रही है. चार महीने तक चलने वाली इस प्रदर्शनी को बुइषनर के कामों का बेहतरीन शो बताया जा रहा है.
तीन नाटक
बुइषनर के तीनों नाटक दुनिया भर में देखे जा सकते हैं. 1835 में उन्होंने पहला नाटक लिखा, 'दांतोंस डेथ'. गीसेन में हाल ही में ग्रीस के एक थिएटर ग्रुप ने इस नाटक को प्रस्तुत किया. इसमें बुइषनर ने फ्रेंच क्रांति के असर को दर्शाया है.
प्यार और जूनून
अगले ही साल उन्होंने दूसरा नाटक लिखा, 'लिओंसे एंड लेना'. गीसेन में हंगरी के एक थिएटर ग्रुप ने इस नाटक को प्रस्तुत किया. राजनीति से दूर यह नाटक प्यार और जूनून की कहानी सुनाता है.
अधूरा काम
1837 में बुइषनर ने 'वॉयत्सेक' लिखना शुरू किया पर इसे पूरा करने से पहले ही उनका देहांत हो गया. लेकिन यही उनका सबसे ज्यादा चर्चित काम है. इस नाटक को उनकी मौत के 100 साल बाद पहली बार मंच पर देखा गया. यह एक सैनिक की कहानी है जो हालात से तंग आ गया है. गीसेन में दक्षिण अफ्रीका का थिएटर ग्रुप.
बड़े पर्दे पर भी
कई निर्देशकों ने भी बुइषनर की किताबों को बड़े पर्दे पर उतारने की कोशिश की है. इनमें सबसे ज्यादा चर्चित 'वॉयत्सेक' ही रही.