1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

20 हजार करोड़ में भी गंदी गंगा

२५ मई २०१४

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रौद्योगिकी संस्थान के प्रोफेसर विशम्भर नाथ मिश्र का कहना है कि गंगा की सफाई के नाम पर अब तक बीस हजार करोड रुपये खर्च हो चुके हैं लेकिन वह साफ होने के बजाय मैली हो गयी.

https://p.dw.com/p/1C6Ga
तस्वीर: UNI/Reuters

प्रो. मिश्र ने कहा कि संकटमोचन फाउन्डेशन द्वारा माने गये प्रदूषण के अनुसार 1992 में बनारस के गंगा जल में बीओडी यानि बायोलाजिकल ऑक्सीजन डिमान्ड 5 मिलीग्राम प्रति लीटर थी जो 2014 में बढकर 7.2 हो गई जबकि जिन्स फिकल कोलीफार्म की संख्या 10000 प्रति मिली लीटर थी वह बढकर 41000 हो गयी. उन्होंने कहा कि मोक्षदायिनी कही जाने वाली गंगा का पानी लाख सरकारी प्रयासों के बाद बनारस सहित अनेक स्थानों पर नहाने लायक भी नहीं रह गया है और आचमन करने लायक तो बिलकुल ही नहीं.

प्रधानमंत्री की अध्क्षता वाले राष्ट्रीय गंगा बेसिन प्राधिकरण के सदस्य प्रो. बीडी.त्रिपाठी के हवाले से यूनीवार्ता ने लिखा है कि गंगा एक्शन प्लान जेएनएनयूआरएम और विश्व बैंक द्वारा करीब 20 हजार करोड की लागत से विभिन्न योजनाएं अमल में लाई गयी लेकिन इनका आपस में तालमेल न होने के कारण ये बेकार हो गयी.

अपने ही अध्ययन का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि बनारस में 33 नालों के जरिये तकरीबन 350 एमएलडी सीवेज तथा कचरा गंगा नदी में प्रवाहित हो रहा है. इसके अलावा मणिर्कणिका व हरिश्चन्द्र घाट पर साल भर में 33 हजार शव जलाए जाते हैं जिनमें 800 टन राख निकलती है और यह राख गंगा में जाती है । इसके अलावा शवों का 300 टन अधजला मांस. 3056 बच्चों व आदमियों के शव के साथ 6000 जानवरों की लाशें गंगा में जाती हैं.

एएम/आईबी (वार्ता)