10 साल में यहां दोगुने हो गए गैंडे
२४ नवम्बर २०१८सींग के लिए गैंडों का इतना शिकार किया गया कि अब इनके विलुप्त होने का खतरा पैदा हो गया है. यूगांडा में इन्हें बचाने के लिए एक रायनो पार्क चलाया जा रहा है. यहां पर गैंडे सुरक्षित हैं. यूगांडा के दूसरे हिस्सों में गैंडों की ये प्रजाति लुप्त हो चुकी है, लेकिन 70 वर्ग किलोमीटर में फैले इस अभयारण्य में चौबीस गैंडे रहते हैं.
पार्क के रेंजर हर वक्त इन गैंडों पर निगाह रखते हैं ताकि उन्हें किसी भी संभावित परेशानी से बचाया जा सके. इन गैंडों में एक है उहुरू. हाल ही उसने एक बच्चे को जन्म दिया है. गैंडे अठारह महीनों तक बच्चे को कोख में रखते हैं. रेंजर रेमंड ओपीओ बताते हैं, "उहुरू और उसकी बेटी बिलकुल एक जैसे हैं. दोनों का स्वभाव एक जैसा है. मां बस एक टहनी की आवाज़ सुनते ही सतर्क हो जाती है, वो सीधे उसी दिशा में देखने लगती है. उसके साथ आप छेड़छाड़ नहीं कर सकते, वो एकदम ही हमला कर देगी."
पार्क में घूमते फिरते सैलानियों को गैंडे बड़े आराम से दिख जाते हैं. हालांकि इनके पास जाना सुरक्षित नहीं. अगर कभी ऐसा हो जाए तो चुपचाप शांत हो कर उन्हें दूर से ही देखें कोई हरकत ना करें. जंगल सफारी कराने वाले ड्राइवरों को भी ऐसा ही सिखाया जाता है. गाड़ियों के रास्ते में जब गैंडे आ जाते हैं तो वो गाड़ी रोक कर चुपचाप बिना कोई हरकत किए उनके जाने का इंतजार करते हैं. ऐसा करने से गैंडे समझ जाते हैं कि इन लोगों से उन्हें कोई खतरा नहीं.
पार्क में करीब 90 रेंजर काम करते हैं. इनकी इंचार्ज हैं ऐंजी जनेड, वे 2008 से ही यह रायनो पार्क संभाल रही हैं. इन सालों में गैंडों की संख्या दोगुनी हो गई है. ऐंजी बताती हैं, "गैंडों की स्थिति लंबे समय से खराब थी. सिर्फ सत्तर और अस्सी के दशक में ही कुछ वक्त ऐसा था जब वे सुरक्षित थे. फिर इनका अवैध शिकार होने लगा. दिक्कत यह है कि ऐसा किसी एक देश में नहीं बल्कि हर जगह होने लगा."
हालांकि इस अभयारण्य में किसी गैंडे का शिकार नहीं हुआ है. पिछले 18 सालों से इनकी ब्रीडिंग भी की जा रही है. सबसे पहला गैंडा केन्या से लाया गया था. इसके बाद आसपास के चिड़ियाघरों से गैंडे लाए गए.
इस पार्क में घूमते वक्त ज्यादा आवाज नहीं की जा सकती. गैंडों को वॉकी टॉकी का शोर भी परेशान करता है. रेंजर आपस में भी फुसफुसा कर ही बात करते हैं. वो दिन रात इन पर नजर रखते हैं और उनके बारे में जानकारी जमा करते हैं. वो देखते हैं कि गैंडे दिन भर कहां कहां घूमते हैं, क्या खाते हैं और कहां सोते हैं. इस आंकड़े को दुनिया भर के रिसर्चरों और चिड़ियाघर के अधिकारियों को भेजा जाता है. यहां काम करने वाले रेंजरों के लिए तो ये गैंडे अब जैसे उनका परिवार बन गए हैं. इन्हीं में से एक हैं मार्टिन लोकीरु. लोकीरु कहते हैं, "ये गैंडे मेरा दूसरा परिवार हैं. ये ही मेरे बच्चों के स्कूल की फीस भर रहे हैं, ये ही मेरा घर चला रहे हैं, उन्हें सुरक्षित और आजाद रहने में मदद दे रहे हैं." लोकीरु अपने बच्चों और परिवार के दूसरे सदस्यों से मिलने दो साल में एक बार जाते हैं.
यह अभयारण्य सैलानियों के पैसों से चलता है. दुनिया भर से लोग यहां आते हैं क्योंकि यहां पर गैंडों को उनके प्राकृतिक आवास में देखा जा सकता है. यह अहसास चिड़ियाघर से एकदम अलग है. इन्हें देखने आईं सैलानी कारेन लेवी बताती हैं, "हमने पूरा अफ्रीका देख लिया. पश्चिमी अफ्रीका भी और दक्षिणी भी. लेकिन गैंडे हमने कहीं भी नहीं देखे थे. हम जहां भी गए, बाकी सब देखा लेकिन गैंडे कभी दिखाई नहीं दिए. जाहिर है कि ये हमारे लिए एक अच्छा मौका था, इन्हें देखने का."
गैंडों को यहां सुरक्षित रखने में रेंजरों की बड़ी भूमिका है. उनकी संख्या भी अच्छी खासी है. रेमंड ओपीओ इन्हें सुरक्षित रखने का तरीका बताते हैं, "हम सफल इसलिए हैं क्योंकि हम आस पास के लोगों के साथ मिल कर काम करते हैं. इस तरह के प्रोजेक्ट की सफलता के लिए सबसे ज्यादा अगर कोई जरूरी है, तो वो हैं स्थानीय लोग. शिकारी चीन से तो यहां नहीं आ जाएंगे. उन्हें तो आसपास के लोगों का ही इस्तेमाल करना होगा. अगर स्थानीय लोग आपके दोस्त हैं, तो ये आपके लिए अच्छा है. ये लोग हमारे मुखबिर हैं."
आसपास के किसान अपनी गायों को चराने के लिए पार्क में ला सकते हैं. हर किसान को चालीस गायों को लाने की छूट है. सुबह से शाम तक. इस तरह से यह अभयारण्य स्थानीय किसानों की भी मदद करता है यहां बहुत घास है. इससे गायों के दूध की मात्रा बढ़ाने में मदद मिलती है. इतना ही नहीं, किसानों के बच्चों के लिए यहां स्कूल भी चलाया जाता है. कुल मिला कर यह पार्क एक साथ कई जिम्मेदारियां निभा रहा है.
रिपोर्ट: यूलिया हाइनरिषमान/एनआर