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टूट रहा है 10 मिनट में डिलीवरी करने वाली कंपनियों का दम

विवेक कुमार
१८ अप्रैल २०२३

10 मिनट में घर तक डिलीवरी के वादों के साथ शुरू हुईं कंपनियां एक के बाद एक करके बंद हो रही हैं. भारत में इनके हालात अच्छे नहीं हैं.

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भारत में फूड डिलीवरी बड़ा बाजार है
भारत में फूड डिलीवरी बड़ा बाजार हैतस्वीर: DW

ऑस्ट्रेलिया में 10 मिनट में डिलीवरी का दावा करने वाली एक और स्टार्टअप कंपनी धराशाई हो गई है. सिडनी से शुरू हुई स्टार्टअप कंपनी मिल्करन ने दुकान बंद कर दी है और वहां काम करने वाले लगभग 400 लोग बेरोजगार हो गए हैं.

मिल्करन से पहले 10 मिनट में ऑर्डर डिलीवर करने वाली कई कंपनियां दीवालिया हो चुकी हैं. इनमें तीन तो ऑस्ट्रेलिया की ही स्टार्टअप कंपनियां थीं. सेंड नाम की कंपनी पिछले साल मई में बंद हुई. उसके बाद नवंबर में वोली ने दरवाजे बंद किए और इसी महीने कोलैब ने अपने आपको दीवालिया घोषित करने के लिए कागजी कार्रवाई शुरू की. इसके अलावा जर्मनी कंपनी फूडोरा 2018 में बाजार छोड़ गई थी और ब्रिटिश कंपनी डिलीवरू ने पिछले साल ऑस्ट्रेलिया में काम बंद कर दिया.

अपने स्टाफ को भेजे एक ईमेल में मिल्करन के सह-संस्थापक और सीईओ डैनी मिलहैम ने लिखा, "बाजार की आर्थिक और पूंजी संबंधी परिस्थितियां लगातार खराब हो रही हैं. हालांकि कंपनी का बिजनेस अच्छा चल रहा है लेकिन हमें लगता है कि इस माहौल में यही सही फैसला है.”

कोविड के बाद के हालात

जाहिर है कि बढ़ती महंगाई का असर इन कंपनियों पर हो रहा है लेकिन जानकार मानते हैं कि कोविड के दौरान घर तक डिलीवरी करने के बाजार में जो उफान आया था अब वह उतर रहा है. न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय में फाइनैंस पढ़ाने वाले एसोसिएट प्रोफेसर मार्क हंफ्री-जेनेर लिखते हैं कि लॉकडाउन का दौर खत्म हो जाने के बाद इन कंपनियों के लिए काम जारी रखना मुश्किल हो गया था.

प्रोफेसर हंफ्री-जेनेर कहते हैं, "मिल्करन ने अपना कारोबार महामारी के दौरान शुरू किया था, जो दरवाजे तक डिलीवरी के लिए सटीक वक्त था. लेकिन पिछले साल के मध्य में, जबकि लॉकडाउन बीती बात हो चुका था, उसके लिए आंकड़े अच्छे नहीं दिख रहे थे. उसे हर डिलीवरी पर दस डॉलर का नुकसान हो रहा था, जो शुरुआत के वक्त होने वाले 40 डॉलर के नुकसान से तो बेहतर ही था लेकिन पिछले साल जून में उसने जब 10 मिनट में डिलीवरी करने का वादा ही खत्म कर दिया जो उसकी ब्रैंड के लिए बुरा था.”

दुनियाभर में दस मिनट में डिलीवरी करने का यह आइडिया चरमराता नजर आ रहा है. 2019-20 में जब कोविड के कारण दुनियाभर में लोग घरों में बंद थे, तो हर सामान की घर-घर डिलीवरी से शुरू हुआ या चलन धीरे-धीरे ठंडा पड़ गया. कई कंपनियां जो खाने की डिलीवरी कर रही थीं, उन्होंने भी दस मिनट में डिलीवरी के वादे किए.

प्रोफेसर हंफ्री-जेनेर कहते हैं कि यह आइडिया दरअसल इस ख्याल से प्रेरित रहा होगा कि बाजार का विस्तार होगा और आकार बढ़ने से मुनाफा आएगा. वह लिखते हैं, "बहुत सारी स्टार्टअप कंपनियों को मुनाफा कमाने में वक्त लग जाता है. जैसे कि एमेजॉन 1994 में स्थापित हुई थी और उसे मुनाफे में आने के लिए 2003 तक का इंतजार करना पड़ा था. कुछ स्टार्टअप कंपनियों को लाभ कमाने के लिए आकार को बहुत बड़े पैमाने पर बढ़ाना होता है. लेकिन उसकी गुंजाइश भी तो होनी चाहिए.”

भारत में भी विफलता

भारत में पिछले साल कई बड़ी कंपनियों ने दस-दस मिनट में घर के सामान और खाने की डिलीवरी वाली सेवाएं शुरू की थीं. इनमें जोमैटोजैसी स्थापित कंपनी से लेकर जेप्टो और ब्लिंकिट जैसे स्टार्टअप तक शामिल थे. लेकिन किसी भी कंपनी को वैसी सफलता नहीं मिली, जिसकी उम्मीद की जा रही थी.

इसी साल जनवरी में जोमैटो ने अपनी 10 मिनट की डिलीवरी सर्विस जोमैटो इंस्टैंट को बंद कर दिया. इसका कारण रहा कि कंपनी को इस बाजार में ना तो विस्तार नजर आ रहा था, ना मुनाफा. हालांकि कंपनी ने कहा कि वह अपनी रिब्रैंडिंग कर रही है लेकिन इकोनॉमिक टाइम्स अखबार ने कंपनी के एक अधिकारी के हवाले से लिखा, "ऐसा लगा नहीं कि यह सेवा लाभकारी साबित होगी. कंपनी को इतना काम भी नहीं मिल पा रहा था कि रोज का खर्च निकल सके.”

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कई जानकारों ने बताया कि जोमैटो ही नहीं, अन्य कंपनियां भी दस मिनट में डिलीवरी के वादे पूरे नहीं कर पा रही थीं. पिछले साल इकोनॉमिक टाइम्स अखबार ने एक रिपोर्ट छापी थी जिसमें बताया गया कि उसने इन सेवाओं को अलग-अलग शहरों में आजमाया और बहुत ही खराब नतीजे मिले. रिपोर्ट के मुताबिक कई बार तो डिलीवरी अगले दिन पहुंची.

आशंकाओं के बादल

जोमैटो ने पिछले साल मार्च में यह सेवा गुरुग्राम से शुरू की थी और फिर इसे बेंगलुरू में भी शुरू किया गया. इस बाजार के अन्य बड़े खिलाड़ियों में डुंजो कंपनी भी है जो हाइपर-लोकल डिलीवरी मॉडल पर काम करती है और छोटी छोटी जगहों से ही डिलीवरी करती है. उसकी सेवाएं बेंगुलुरू के अलावा मुंबई और दिल्ली में भी हैं और उसे गूगल व अन्य निवेशकों ने 4 करोड़ डॉलर की फंडिंग दी है. स्विगी गो और फ्लिपकार्ट क्विक जैसी सेवाएं भी उपलब्ध हैं.

हाल के सालों में भारत में ऑनलाइन डिलीवरी का बाजार बहुत तेजी से बढ़ा है और आने वाले सालों में इसके और विशाल होने का अनुमान लगाया जा रहा है. रेडसीअर कंपनी की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2025 तक भारत का हाइपर-लोकल डिलीवरी बाजार 50-60 फीसदी बढ़कर 15 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है. रिपोर्ट में कहा गया कि 10 मिनट में डिलीवरी की सेवा ऑनलाइन डिलीवरी के बाजार का मुख्य इंजन भी हो सकती है.

एक कम्यूनिटी सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म लोकलसर्कल्स की रिपोर्ट थी कि कोविड लॉकडाउन के दौरान भारत में होम डिलीवरी का बाजार 200 फीसदी बढ़ा था. लेकिन कोविड के बाद बदले हालात और दुनियाभर में छाए वित्तीय संकट ने इन अनुमानों को आशंकाओं के बादलों से ढक दिया है.

 

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