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समाज

मां-बाप की "संपत्ति" नहीं हैं बच्चे

१० जनवरी २०१९

यूरोपीय मानवाधिकार कोर्ट ने कहा है कि जर्मन प्रशासन का अपने बच्चों की होमस्कूलिंग करने वाले माता-पिता पर कार्रवाई करना सही था. जर्मनी में सन 1919 से ही होमस्कूलिंग गैरकानूनी है.

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Straßburg Deutsche Schulverweigerer setzen auf Menschenrechtsgerichtshof
तस्वीर: picture-alliance/dpa/adfinternational.org

यूरोपियन कोर्ट ऑफ ह्यूमन राइट्स ने उस जर्मन परिवार के विरुद्ध फैसला सुनाया जो कि कई सालों से अपने बच्चों को घर पर स्कूलिंग करने के अधिकार के लिए लड़ रहा है. देश में होम स्कूलिंग पर सन 1919 से ही रोक है. 

जर्मन राज्य हेसे के वुंडरलिश परिवार का कहना था कि जर्मन सरकार ने मानवाधिकारों के यूरोपीय कन्वेंशन के अनुच्छेद 8 के तहत दिए जाने वाली 'घर और परिवार की निजता की सुरक्षा' के अधिकार का उल्लंघन किया है. जर्मन प्रशासन ने परिवार पर दबाव डाल कर उनके बच्चों को स्कूल में दाखिल करवाया था.

कोर्ट ने पाया कि परिवार के पास इस बात के पर्याप्त सबूत नहीं थे कि घर पर बच्चों को सही शिक्षा और सामाजिक ज्ञान मिल रहा है. कोर्ट ने कहा कि बच्चों को माता पिता से दूर करके शिक्षा लेने के लिए स्कूल भेजने को अनुच्छेद 8 का उल्लंघन नहीं माना जा सकता.

अपने आदेश में यूरोपीय कोर्ट ने यह भी कहा कि उन्हें पिता डिर्क वुंडरलिश का वह बयान चिंतित करने वाला है जिसका आशय था कि बच्चे माता-पिता की "संपत्ति" होते हैं.

कोर्ट ने साफ कहा कि "बच्चों की रक्षा करना प्रशासन की जिम्मेदारी है" और ऐसा करने के लिए उनके पास "वाजिब कारण थे."

डिर्क वुंडरलिश ने डॉयचे वेले से बताया, "29 अगस्त 2013 के दिन, अचानक 40 अधिकारी हमारे दरवाजे पर आ खड़े हुए. वह हमारे लिए सबसे डरावना दिन था." उन्हें पता चला कि पड़ोसियों ने जर्मन प्रशासन से उनकी शिकायत की थी. पड़ोसियों ने दावा किया कि डिर्क ने कहा है कि वे अपने बच्चों को स्कूल भेजने के बजाए उन्हें जान से मार देंगे. अधिकारी उनके बच्चों को घर से ले गए और फिर तीन हफ्ते बाद ही वापस मिल पाए.

डिर्क और उनकी पत्नी पेट्रा दोनों बागवानी करते हैं और वे दोनों खुद एक सामान्य हाई स्कूल से पढ़े थे. मगर अब उन्हें लगता है कि स्कूल काफी बदल चुके हैं. उन्हें लगता है कि टीचर क्लास में बहुत कम मेहनत करते हैं और बच्चों से सारा काम करवाते हैं. और चूंकि बच्चे घर पर पढ़ कर ही सीखते हैं, इसलिए उन्होंने अपने बच्चों को घर पर ही पढ़ाने का निर्णय लिया. वे इसमें एक ईसाई पत्राचार स्कूल की भी मदद लेते थे और इस बात के लिए खुले थे कि संबंधित अधिकारी कभी भी आकर इसकी पड़ताल करें.

पिता वुंडरलिश ने इन दावों को भी नकारा कि उनके बच्चे पर्याप्त रूप से सामाजिक नहीं हैं. और कहा कि उनके हिसाब से परिवार के भीतर बच्चों के लिए सबसे अच्छा माहौल होता है.

डिर्क यूरोप में ही फ्रांस जैसे किसी दूसरे देश में जाकर रहने के बारे में भी विचार कर चुके हैं, जहां होम स्कूलिंग वैध हो. लेकिन तब उन्हें इसकी अनुमति नहीं मिली क्योंकि तब उनके पास बच्चों की पूरी कस्टडी नहीं थी.

सन 1919 में स्कली शिक्षा को कानूनी तौर पर अनिवार्य कर दिया गया. केवल गंभीर बीमारी, डिप्लोमैटिक अधिकारियों के बच्चों या फिर कामकाजी बच्चों जैसे किसी बाल अभिनेता जैसे गिने चुने मामलों में ही इसमें छूट दी जाती है.

कुल मिलाकर पूरे जर्मनी में ऐसी छूट करीब 500 से 1,000 बच्चों को ही मिली है, जो होमस्कूलिंग कर सकते हैं.

जर्मनी में निजी स्कूलों का चलन दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले बहुत कम है. जर्मन प्राइवेट स्कूल भी अपने राज्य के लिए तय पाठ्यक्रम ही पढ़ाते हैं.

(आंद्रिया ग्रूनाऊ, एलिजाबेथ शूमाखर/ आरपी)

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