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हैलो ज़िंदगी का कमाल

६ मई २०१०

हमें यह जान कर खुशी होती है कि हमारे श्रोता नियमित रूप से हमारी वेबसाइट पर आकर, लेखों को पढ़कर अपने विचार लिखते हैं और बताते हैं कि उन्हें क्या पसंद है. हाल में प्रसारित हैलो ज़िंदगी और खोज कार्यक्रम पर श्रोताओं की राय.

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तस्वीर: picture alliance / dpa

हैलो जिंदगी में जर्मनी में रहने वाले भारतीय एवं पाकिस्तानी नौजवानों के विचार सुनने को मिले,जो प्रेरणादायक लगे. सचमुच में यदि इनके जैसे सोच रखने वाले सभी नौजवानों की हो जाये तो दक्षिण एशिया जन्नत बन जाये. बहरहाल सार्थक फीचर के लिए हार्दिक धन्यवाद. सभी फ्रीक्वेंसियों पर रिसेप्शन उत्तम है.

चुन्नीलाल कैवर्त, ग्रीन पीस डी एक्स क्लब सोनपुरी,पोष्ट टेँगनमाड़ा,जिला बिलासपुर(छत्तीसगढ़)

1 मई को प्रस्तुत हैलो जिंदगी बेहद पसंद आया, जिसमें जर्मनी में रहने वाले भारत और पाकिस्तान के लोगों के आपसी प्रेम के बारे में जानकारी दी गई.

भैयालाल प्रजापति, प्रजापति रेडियो लिस्नर्स क्लब, चंदौली, उत्तर प्रदेश.

हैलो ज़िंदगी कार्यक्रम में बॉन में रहने वाले भारतीय और पाकिस्तानी लोगों के आपसी सम्बन्धों और उनकी आपसी सोच पर कार्यक्रम में विस्तार से की गई चर्चा काफी बढ़िया थी. भारतीय और पाकिस्तानी लोगों का खेल में रुझान, उनके द्वारा बनाए गये फोर्म यही बताते है कि विदेशों में उनके बीच कोई बार्डर नहीं है.

संदीप जावले, मारकोनी डीएक्स क्लब, पर्ली वैजनाथ, (महाराष्ट्र)

डॉयचे वेले की हिंदी वेब साईट पर निरुपमा हत्याकांड की खबर पढ़ा.आज भी हम कितने पढ़ लिख लें, लेकिन हमारा स्वभाव नहीं बदला है. निरुपमा की हत्या पहले से ही रसातल में जा रही रिश्तों की मर्यादा के ताबूत पर आख़िरी कील है. सामाजिक विकृतियां ममता जैसे पवित्र रिश्ते पर भी इस तरह भारी पड़ सकती है. यह सच झंझोड़ देने वाला है. इससे पूरे प्रकरण में अब चाहे जो भी कार्रवाई हो सच तो ये है कि इस संकुचित समाज में निरुपमा जैसी कई मासूम जानें जाती रही हैं. और अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है कि शायद जाती भी रहेगी. हम आज भी इज़्ज़त की दुहाई देकर अपना नुक़सान कर रहे हैं. यह मेरी समझ से बाहर है कि क्यों हम ऐसा कर रहे हैं. इस घटना से साबित होता है कि हमने पढ़ लिख लिया है लेकिन दिमाग़ आज भी नहीं बदला है और अपनी झूठी शान पर गर्व कर रहे हैं. हम आज भी पाषाण युग में रह रहे हैं. और हम सब सिर्फ़ हाथ पर हाथ धरे इस पतन के गवाह बनते रहेंगे. महिलाएं किस तरह तमाम बंधनों में जकड़ी हुई हैं ये जानने के लिए हमें खाप पंचायतों में जाने की ज़रूरत नहीं. तथाकथित शिक्षित और बुद्धिजीवी वर्ग भी ऐसे मामलों में उनसे कंधे से कंधा मिलाकर चलता है निरूपमा एक पत्रकार थी उसके पत्रकार साथियों ने उसकी हत्या के बाद मामले को पूरी ताक़त के साथ समाज के सामने पेश किया है. इसमें कोई शक नहीं है कि न जाने कितनी निरूपमा(एं) आए दिन विजातीय विवाह करने के कारण मौत का शिकार हो रही हैं. अपनी नाक समाज के सामने ऊंची रखने की ज़िद ने अपने ही वंश को मिटाने तक का जघन्य अपराध करने के लिए कैसे तैयार होते हैं लोग आश्चर्य होता है. इसकी सज़ा तो अवश्य मिलनी चाहिए.

रवि शंकर तिवारी, गुन्सेज , दिनारा सासाराम बिहार

रेडियो डॉयचे वेले को, सादर नमस्कार. बहुत अर्से बाद फिर से आपसे नेट के माध्यम से जुडने की कोशिश कर रहा हूं. अब नियमित रह पाऊंगा ऐसी उम्मीद करता हूं. आपने कार्यक्रमों में कई परिवर्तन किए हैं जिन पर अपनी बेबाक राय धीरे धीरे प्रेषित करूंगा. फिलहाल तो इतना ही कि आपका नेट पन्ना बहुत ही आकर्षक है . अभी नेट पर सुनना शुरू किया है , दिक्कत या सुविधा की बाबत धीरे धीरे बताऊंगा .फिलहाल इतना ही , नमस्कार .

अजय कुमार झा , गीता कालोनी, दिल्ली