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हमास और इस्राएल की लड़ाई का दंश झेलती महिलाएं

रितिका
१७ अप्रैल २०२४

संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि गाजा की लड़ाई का सबसे गंभीर प्रभाव फलीस्तीनी महिलाओं पर देखने को मिला है. किसी भी क्षेत्र में युद्ध और संघर्ष की स्थिति महिलाओं और लड़कियों के लिए अधिक चुनौतीपूर्ण क्यों हो जाती है?

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युद्ध के दौरान बमबारी से बचने के लिए आश्रय की तलाश में फलीस्तीनी महिलाएं और बच्चे
गाजा की औरतों के लिए युद्ध एक बड़ा संकट लेकर आया हैतस्वीर: Mohammed Talatene/dpa/picture alliance

हमास और इस्राएल के बीच पिछले छह महीनों से जारी लड़ाई में अब तक 10,000 फलीस्तीनी महिलाओं की मौत हो चुकी है. इन महिलाओं में 6,000 मांएं भी शामिल थीं. ये आंकड़े संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी की गई एक हालिया रिपोर्ट में सामने आए हैं. यह रिपोर्ट बताती है कि कैसे इन छह महीनों ने महिलाओं और लड़कियों को बेहद गंभीर तरीके से प्रभावित किया है.

रिपोर्ट के मुताबिक करीब 10 लाख से अधिक फलीस्तीनी महिलाएं और लड़कियां भुखमरी का सामना कर रही हैं. वे पीने का साफ पानी और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं से भी दूर हैं. पीरियड्स के दौरान इन महिलाओं और लड़कियों की चुनौती और अधिक बढ़ जाती है.

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2022 तक के आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में 60 करोड़ महिलाएं और लड़कियां ऐसे क्षेत्रों में रहती हैं जहां संघर्ष जारी हैं. युद्ध और संघर्ष हर किसी को अलग अलग तरीके से प्रभावित करते हैं, खासकर महिलाओं और बच्चियों को. युद्ध और संघर्ष महिलाओं के लिए पुरुषों के मुकाबले शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और सामाजिक तौर पर ज्यादा चुनौतियां लेकर आते हैं.

हिंसा की दोहरी मार

युद्ध हिंसा का ही एक रूप है लेकिन इस दौरान महिलाएं और लड़कियां दोहरी हिंसा का सामना करती हैं. युद्ध के दौरान यौन और लैंगिक हिंसा के मामले बढ़ जाते हैं. बलात्कार को हमेशा से ही युद्ध के दौरान एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है.

1994 में रवांडा में हुए जनसंहार के दौरान 250,000 से 500,000 महिलाओं और लड़कियों का बलात्कार किया गया था. यूक्रेन और रूस के बीच जारी युद्ध के दौरान भी यूक्रेन की महिलाओं के साथ यौन हिंसा की खबरें सामने आई थीं. एक स्वतंत्र जांच आयोग ने संयुक्त राष्ट्र को जानकारी दी थी कि यूक्रेन में 16 से 83 साल की महिलाओं के साथ यौन हिंसा हुई है.

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि ईरान में जारी प्रदर्शन के दौरान वहां की सेना ने महिलाओं, बच्चों और पुरुषों के खिलाफ बलात्कार और यौन हिंसा का इस्तेमाल एक हथियार के रूप में किया था. म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय की महिलाओं के साथ भी बड़े स्तर पर यौन हिंसा के मामले सामने आए थे.

कहा जाता है कि युद्ध के दौरान एक महिला होना एक सैनिक होने से ज्यादा खतरनाक स्थिति होती है. युद्ध के दौरान लैंगिक हिंसा उन अपराधों में शामिल है जिसके सबसे अधिक मामले सामने आते हैं. 2008 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इस संकल्प को अपनाया था कि युद्ध के दौरान होने वाली यौन हिंसा शांति और सुरक्षा के लिए एक खतरा है.

युद्ध के दौरान यौन हिंसा एक हथियार

युद्ध के दौरान हुई यौन हिंसा और बलात्कार को अब मानवता के खिलाफ किए गए अपराध के रूप में देखा जाता है. इनके साथ सबसे बड़ी चुनौती यह होती कि इनमें से अधिकतर मामलों में आरोपियों को कोई सजा नहीं होती. यहां तक कि बड़ी संख्या में पीड़ित इसके बारे में रिपोर्ट भी दर्ज नहीं करा पाते हैं. ऐसे में जो आंकड़े सामने आते हैं असलियत में संख्या उससे कहीं अधिक होने की संभावना होती है.रवांडा नरसंहार के आरोपी पर 29 साल बाद फ्रांस में मुकदमा

संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रतिनिधि प्रमिला पैट्टन ने 2023 में कहा था कि युद्ध के दौरान होने वाली यौन हिंसा की स्थिति बेहद बुरी होती जा रही है. इथियोपिया में दो सालों (2020-2022) तक चले सिविल वॉर के दौरान 100,000 से भी अधिक महिलाओं का बलात्कार किया गया था. इस दौरान करीब तिगारे समुदाय की 40 फीसदी महिलाओं ने किसी ना किसी तरीके की लैंगिक हिंसा झेली थी.

मयादा उन महिलाओं में से एक हैं जिनका जून 2019 में सूडान की फोर्स बलात्कार किया था. समाचार एजेंसी एपी से बातचीत में उन्होंने बताया कि बलात्कार के बाद वह गर्भवती हो गईं. वह गर्भपात करवाना चाहती थीं लेकिन उन्हें दवा बेचने वाले ने गोलियां देने से इनकार कर दिया.

वह जानबूझकर भारी सामान उठातीं रहीं ताकि उनका गर्भपात हो जाए लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उन्होंने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया जिनमें से एक की मौत हो गई. वह नहीं जानतीं कि उनका बलात्कार किसने किया इसलिए वह अपने बच्चे का जन्म प्रमाणपत्र भी नहीं बनवा सकतीं.

यौन हिंसा का इस्तेमाल ताकतवर सेना या पक्ष द्वारा पीड़ित जनता, खासकर महिलाओं और लड़कियों के बीच डर कायम करने के लिए किया जाता रहा है. कई युद्धों के दौरान ऐसे भी मामले सामने आए हैं जहां सेना ने महिलाओं का बलात्कार उन्हें जबरन गर्भवती करने के इरादे से किया.

विस्थापन और अनिश्चितता

युद्ध और संघर्ष का एक गंभीर परिणाम होता है विस्थापन. ऐसी स्थितियों के दौरान विस्थापित होने वालों में भी सबसे अधिक संख्या महिलाओं की होती है. सूडान में जारी संघर्ष के कारण विस्थापित होने वालों में सबसे बड़ी संख्या महिलाओं की ही है. संघर्ष के कारण यहां 53 फीसदी महिलाएं और बच्चियां आंतरिक रूप से विस्थापित हो चुकी है. फलीस्तीन और इस्राएल की लड़ाई ने अब तक 10 लाख से भी अधिक महिलाओं और बच्चियों को विस्थापित कर दिया है.

सीरिया के अल होल कैंप में मौजूद औरतें और बच्चे
सीरिया की जंग में बड़ी संख्या में बच्चे अनाथ और औरतें विधवा हुईं और अब कैंपों में जीवन बिता रही हैंतस्वीर: Delil SOULEIMAN/AFP

संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े बताते हैं कि युद्ध और संघर्ष के कारण एक जगह से दूसरी जगह विस्थापित होने वालों में महिलाओं की हिस्सेदारी करीब 75 फीसदी होती है. कभी कभी इनकी संख्या 90 फीसदी तक भी हो जाती है. सीरिया उन देशों में शामिल हैं जहां युद्ध के कारण अब तक सबसे अधिक, 1 करोड़ 20 लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हो चुके हैं. इनमें भी आधी संख्या महिलाओं और बच्चियों की ही है. ये विस्थापित महिलाएं शरणार्थी के रूप में भी संघर्ष करती हैं. अधितकर शरणार्थी महिलाएं बिना किसी आधिकारिक पहचान के अपनी बाकी जिंदगी गुजार देती हैं.

स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौतियां महिलाओं के लिए अधिक

अलमा और सलमा की दादी बस इतना चाहती थीं कि उनकी पोतियों का जन्म एक सुरक्षित और साफ कमरे में हो लेकिन ऐसा हुआ नहीं. इन जुड़वा बहनों का जन्म राफा के एक कैंप में हुआ. रॉयटर्स के मुताबिक इन बच्चियों की मां उन्हें स्तनपान नहीं करवा पाई क्योंकि उन्हें खुद भी जरूरी पोषण नहीं मिल पाया.गाजा पट्टी में रहने वाले लोग कौन हैं?

युद्ध के कारण पैदा हुई भुखमरी की स्थिति भी सबसे अधिक महिलाओं के लिए ही चुनौती लेकर आती है. फलीस्तीन में खाने की कमी के बीच महिलाएं अपने बच्चों को देने के लिए भी खाने का प्रबंध नहीं कर पा रही हैं. अगर वे ऐसा करने में सक्षम भी हैं तो वे खुद की जगह अपने बच्चों की भूख को प्राथमिकता दे रही हैं. संघर्ष से घिरे सूडान की समस्या का मानवीय हल जल्द से जल्द नहीं निकाला गया तो यहां स्वास्थ्य और पोषण की जरूरतें नहीं पूरी होने के कारण 7,000 नई मांओं की मौत हो सकती है.

मैटर्निटी अस्पताल पर हमले के बाद गर्भवती महिला को ले जाते आपातकालीन सेवा के कर्मचारी
यूक्रेन के मारियोपोल में रूसी हमले का निशाना मैटर्निटी अस्पताल भी बना थातस्वीर: Evgeniy Maloletka/AP/picture alliance

युद्ध की स्थिति महिलाओं के लिए स्वास्थ्य से जुड़ी ऐसी ही कई चुनौतियां लेकर आती है. युद्ध के दौरान स्वास्थ्य सेवाएं और ढांचे भी प्रभावित होती हैं जिसका सीधा असर वहां की आम जनता पर पड़ता है. फलीस्तीन की 6,90,000 लड़कियों और महिलाओं के लिए हर महीने एक करोड़ डिस्पोजबल सैनिटरी पैड्स और चालीस लाख दोबारा इस्तेमाल होने वाले पैड की जरूरत है. इनकी कमी के बीच वहां महिलाएं पीरियड्स के दौरान टेंट से कपड़े के टुकड़े काटकर इस्तेमाल करने को मजबूर हैं.

"मैं डरी हुई थी और मैंने अपनी बच्ची को जोर से पकड़ रखा था. मुझे डर था कि कभी भी बमबारी हो सकती है.” यह कहना है 29 साल की समा किश्ता का जिन्होंने नवंबर 2023 में दक्षिण गजा में जारी युद्ध के बीच अपनी बच्ची को जन्म दिया. रॉयटर्स से बातचीत में समा ने बताया कि उन्हें दुख है कि उन्होंने अपने बच्चे को ऐसे वक्त में जन्म दिया है जब वह उसे कुछ नहीं दे सकतीं.

फलीस्तीन में कई गर्भवती महिलाओं को बिना किसी एनेस्थीसिया के बच्चों को जन्म देना पड़ा. बमबारी के कारण क्षतिग्रस्त हुए अस्पताल, दवाओं और स्वास्थ्यकर्मियों की गैरमौजूदगी के कारण अधिकतर गर्भवती महिलाओं को बिना किसी मेडिकल सहायता के बच्चों को जन्म देना पड़ता है. गजा के स्वास्थ्य मंत्रालय के बयान के मुताबिक हर महीने पांच हजार गर्भवती महिलाएं कठोर परिस्थितियों, असुरक्षा और गंदगी में बच्चों को जन्म देने के लिए मजबूर हैं. नतीजतन ऐसे हालात में अधिक मांओं और नवजात बच्चों की मौत होती है.

दक्षिणी गाजा के राफा में हाथ से सिल कर डायपर तैयार करती महिलाएं
युद्ध की विभिषिका महिलाओं के लिए सेहत और स्वास्थ्य से जुड़ी कई तरह की चुनौतियां लाती हैंतस्वीर: MOHAMMED ABED/AFP

शांति की प्रक्रिया में महिलाओं की भूमिका अहम

चूंकि युद्ध और संघर्ष क्षेत्रों में महिलाएं सबसे अधिक प्रभावित आबादी का हिस्सा हैं, ऐसे में शांति की प्रक्रिया में उनकी भूमिका और भी अहम हो जाती है.

दुनिया के संकट सुलझाने के लिए बढ़ानी होगी महिलाओं की भागीदारी

अध्ययन बताते हैं कि शांति की जिन प्रक्रियाओं का हिस्सा महिलाएं और सिविल सोसाइटी होती हैं उनके असफल होने की संभावना 64 फीसदी कम होती है. ऐसी स्थिति में महिलाएं पीड़ित समुदाय के बीच भरोसा कायम करने और उन तक राहत पहुंचाने का एक संवेदनशील जरिया बन सकती हैं.

रिपोर्टः रितिका (एपी, रॉयटर्स)