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समाज

सांप्रदायिक आपदा की चपेट में “केदारनाथ"

शिवप्रसाद जोशी
११ दिसम्बर २०१८

भावनाओं को चोट पहुंचने का मामला भारत में सेंसरशिप की वजह बनता जा रहा है. फिल्म केदारनाथ एक प्रेमकथा के कारण रोक का शिकार हुई है जिसके केंद्र में हिंदू लड़की और मुस्लिम लड़का है.

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Indien Film Kedarnath, mit Sushant Singh Rajput & Sara Ali Khan
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Jaiswal

उत्तराखंड में "केदारनाथ” फिल्म पर रोक लगाए जाने पर लोग हैरान हैं. फिल्म की अंतरधार्मिक रिश्ते की कहानी पर हिंदुवादी गुटों ने आपत्ति जताई थी. उनका आरोप है कि इससे उस कथित प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलेगा जिसे वे "लव जेहाद” कहते हैं. कानून व्यवस्था का हवाला देते हुए सभी जिलाधिकारियों ने अपने अपने जिलों में फिल्म पर बैन लगा दिया.

फिल्म में जानेमाने अभिनेता सैफ अली खान और अपने दौर की मशहूर अभिनेत्री अमृता सिंह की बेटी सारा अली खान मुख्य भूमिका में हैं जो फिल्म में पुरोहित परिवार की बेटी के तौर पर दिखाई गई हैं. उनके साथ सुशांत सिंह राजपूत हैं जो एक मुस्लिम कुली का किरदार निभा रहे हैं. फिल्म में 2013 की केदारनाथ की विकराल बाढ़ और अतिवृष्टि से मची तबाही की पृष्ठभूमि में एक दुखभरी प्रेम कहानी दिखाई गई है. फिल्म का विरोध इसी कहानी को लेकर है. विरोध करने वालों की दलील है कि केदारनाथ हिंदू आस्थाओं का केंद्र है और फिल्म में इस आस्था पर इस लिहाज से चोट पहुंचती है क्योंकि इसमें मुस्लिम किरदार को हिंदू लड़की से प्रेम करते दिखाया गया है.

Indien Film Kedarnath, mit Sushant Singh Rajput & Sara Ali Khan
तस्वीर: picture-alliance/Zuma Press/SOPA Images/A. Khan

कुछ हिंदुवादी गुटों की आपत्ति पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज की अगुवाई में एक कमेटी बना दी थी. कमेटी ने रोक न लगाने का फैसला किया, हवाला यही दिया कि ये अभिव्यक्ति की आजादी का मामला है, लेकिन ऐसा कहते हुए भी कमेटी ने एक हैरानी भरी सिफारिश भी कर दी कि वैसे तो फिल्म दिखाने पर आपत्ति नहीं लेकिन अगर जिलाधिकारी चाहें तो अपने यहां कानून व्यवस्था के हालात का जायजा लेने के बाद दिखाने या न दिखाने का फैसला कर सकते हैं.

अब ‘लॉ ऐंड ऑर्डर' का तर्क अप्रत्यक्ष रूप से विरोध करने वालों के पक्ष में चला गया. पहले नैनीताल और उधमसिंहनगर और फिर एक एक कर सभी 13 जिलों के जिलाधिकारियों ने फिल्म पर रोक लगा दी. अधिकारियों का कहना है कि अगर फिल्म दिखाने की अनुमति दे देते तो, उपद्रवी शांति भंग कर सकते थे. इस तरह पूरे उत्तराखंड में फिल्म प्रदर्शित ही नहीं हुई. ये बात अलग है कि देश में तमाम जगहों पर और पड़ोसी राज्यों में खबरों के मुताबिक फिल्म को देखा और सराहा जा रहा है.

गौर करने वाली बात ये भी है कि उत्तराखंड और गुजरात के हाई कोर्टों में भी फिल्म को बैन करने की याचिकाएं डाली गई थीं जिन्हें खारिज कर दिया गया था. मजेदार बात है कि विरोध करने वालों ने फिल्म का टीजर देखकर ही इस पर बैन लगाने की मांग कर डाली. कुछ लोगों को फिल्म के नाम पर भी एतराज था. प्रतिबंध लगाने के फैसले के बाद सारा अली खान का भी बयान मीडिया में आया. उन्होंने कहा कि वो इस बैन से आहत हैं जबकि फिल्म का मकसद बांटना नहीं बल्कि लोगों का जोड़ना है.

ये एक अलग बहस है कि केदारनाथ फिल्म, त्रासदी का कितना जीवंत चित्रण कर पाई, कितना न्याय वो स्थानीय पीड़ितों की वेदना को दिखाने में कर पाई या पर्यावरणीय दुर्दशा या अतिवृष्टि जैसी आपदाओं के पीछे तीव्र व्यवसायीकरण जैसी समस्याओं पर कितना ध्यान केंद्रित कर पाई. वह मुख्यधारा के कमर्शियल सिनेमा की एक प्रतिनिधि फिल्म ही तो है.

संभव है फिल्म में आपदा को लेकर बुनियादी शोध का अभाव भी हो सकता है- ये सारी बातें इस विवाद से अलग हैं. दूसरी ओर कहानी, किरदार और अभिनय के लिहाज से फिल्म अच्छी या खराब हो सकती है, ये निजी पसंद के दायरे में आता है. लेकिन एक कट्टरवादी, धार्मिक जुनून और नफरत के चश्मे से एक साधारण फिल्म पर रोक लगाने की मांग करना- अभिव्यक्ति की आजादी को कुचलना ही कहा जाएगा. ये नागरिक चेतना और मानवीय नैतिकता के विरुद्ध भी है. ऐसी मांगों के आगे सरकारों को भी झुकना नहीं चाहिए.

सरकार को लॉ ऐंड ऑर्डर जैसा पेंच फंसाने की जरूरत नहीं थी. कमेटी के आधेअधूरे ग्रीन सिग्नल के बावजूद जिलाधिकारियों और पुलिस अधिकारियों को साहसपूर्वक स्टैंड लेना चाहिए था कि वे फिल्म को दिखाएंगे और कड़ी सुरक्षा दी जाएगी. उपद्रव करने वाले संभावितों को पहले ही सख्त कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी जाती या उन्हें हिरासत में ले लिया जाता. राजनीतिक दलों खासकर सत्ताधारी दल और मुख्यमंत्री और उनके मंत्रियों को शांति और सौहार्द की अपील करनी चाहिए थी और लव-जेहाद जैसी विभाजनकारी धारणाओं के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए था.

उत्तराखंड के नैनीताल में ही पिछले दिनों एक सिख पुलिस अधिकारी ने हिंदू-मुस्लिम प्रेमी जोड़े को मारपीट पर उतारू हिंदूवादी कट्टरपंथियों की भीड़ से बचाया था. इसी तरह राज्य के अन्य हिस्सों में हाल के दिनों में पुलिस सूझबूझ और नागरिक जागरूकता की वजह से उपद्रव की साजिशें और हरकतें विफल हुई हैं. तो इस लिहाज से उत्तराखंड पुलिस का रिकॉर्ड अच्छा ही था लेकिन इस मामले में जिलाधिकारी और पुलिस प्रशासन की हिचकिचाहट- चौंकाने वाली बात है, चिंताजनक तो है ही.

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