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सचिन के नाम पर दबाव ले रही है टीम इंडिया

१५ फ़रवरी २०११

कुछ समय पहले ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर एंड्रयू साइमंड्स ने अपने ऑटोग्राफ वाली खास टीशर्ट सचिन तेंदुलकर को तोहफे में दी. उस टीशर्ट पर साइमंड्स ने लिखा: तुम्हारे लिए सचिन, हम में से हर कोई सिर्फ तुम्हारे जैसा बनना चाहता है.

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सचिन को लेकर दबावतस्वीर: UNI

मास्टर ब्लास्टर के विराट व्यक्तित्व को उन्होंने बेहद थोड़े से शब्दों से सजा दिया.

क्रिकेट प्रेमियों के अनगिनत सपनों को पूरा करने वाले सचिन तेंदुलकर से एक उम्मीद खेल प्रेमियों को अब भी है. वर्ल्ड कप जिताने की. अब तक पांच विश्व कप खेल चुके सचिन वर्ल्ड कप नहीं जिता पाए हैं. और यह वर्ल्ड कप उनके लिए आखिरी लगता है.

इसकी अहमियत जानकर ही भारतीय टीम के खिलाड़ी लगातार बयान दे रहे हैं कि वे विश्व कप मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर के लिए जीतना चाहते हैं. गौतम गंभीर, महेंद्र सिंह धोनी, विराट कोहली सहित कई अन्य खिलाड़ियों का मानना है कि सचिन को विश्व कप का तोहफा भारत के महानतम खिलाड़ी को एक अनमोल तोहफा होगा.

भारतीय खिलाड़ियों के इस बयान से जहां यह विवाद खड़ा हो गया कि क्रिकेटर देश से ज्यादा अहमियत सचिन को दे रहे हैं वहीं दूसरी मुश्किल यह है कि टीम अपने लिए दबाव की एक और वजह तैयार करती नजर आ रही है.

वर्ल्ड कप में एक अरब से ज्यादा दर्शकों के सपनों को पूरा करने का दबाव खिलाड़ियों की नींद को उड़ा देता है, टीम की हर छोटी सी गलती पर मीडिया में होने वाली चीर फाड़ खिलाड़ियों को सोते से जगा देती है. टीम इंडिया को 2007 विश्व कप का वो दौर भी याद होगा जब बांग्लादेश से पहला मैच हार जाने के बाद भारतीय टीम की जबरदस्त किरकिरी हुई थी.

टूथपेस्ट से लेकर चमचमाती गाड़ी बेचने वाले क्रिकेटर जल्द ही टीवी विज्ञापनों के पर्दे से गायब हो गए. महीनों तक देश ने क्रिकेट से नाता तोड़ लिया. महीनों बाद ट्वेंटी 20 वर्ल्ड कप में मिली जीत ही उन दुखद यादों को धुंधला कर पाई.

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तस्वीर: Picture-alliance/Dinodia Photo Library

वो कड़वी याद निश्चित रूप से भारतीय टीम पर जबरदस्त दबाव का काम करेगी. वनडे रैंकिंग में दुनिया में दूसरे नंबर की टीम इस बार खिताब की प्रबल दावेदार होने के चलते भी दबाव में होगी. ऐसे में बार बार सचिन तेंदुलकर के लिए जीतने की बात कह कर खिलाड़ी क्या अपने ऊपर अतिरिक्त दबाव नहीं बना रहे हैं. और फिर सचिन तेंदुलकर तो करोड़ों प्रशंसकों की उम्मीदों के दबाव में होंगे ही. वैसे भी यह उनका शायद आखिरी वर्ल्ड कप है और जिसे जीत के साथ वो यादगार बनाना चाहेंगे.

लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि अगर खिलाड़ियों पर दबाव है तो उसे झेलने के लिए वे पहले की अपेक्षा बेहतर ढंग से तैयार हैं. 1990 के दशक में भारतीय क्रिकेट टीम भले ही सचिन पर निर्भरता के लिए जानी गई हो लेकिन इस दशक की शुरूआत से ही टीम का चरित्र और चेहरा बदला है.

वनडे क्रिकेट की जरूरतों के मुताबिक अपने खेल को ढालने वाली खिलाड़ियों की नई पीढ़ी में आक्रामकता है, विकट परिस्थितियों में हथियार डालने के बजाए खिलाड़ियों में अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करने की क्षमता है. और फिर ऐसी क्षमतावान भारतीय टीम के पास सचिन तेंदुलकर का होना तुरुप के पत्ते की तरह है.

1992 से हर वर्ल्ड कप में भारत ने आस भरी नजरों से सचिन तेंदुलकर की ओर देखा है. करोड़ों चेहरों की उम्मीदों को सचिन ने अपने मजबूत कंधों पर ढोया है. शारजाह में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उनकी दो यादगार शतकीय पारियां उनके उसी जुझारूपन को दर्शाती हैं जिसमें उन्होंने अकेले ही क्रिकेट की बड़ी ताकत ऑस्ट्रेलिया से टक्कर ली. 21 साल से उसी लगन, समर्पण और मासूमियत से क्रिकेट की पारियों को संजो रहे सचिन के लिए दबाव में खेलना कोई नई बात नहीं है.

और फिर आज सचिन की जिम्मेदारी को बांटने के लिए कई खिलाड़ी मौजूद हैं. युवा भारतीय टीम पर अगर वर्ल्ड कप जीतने का दबाव है तो असंभव को संभव कर दिखाने का माद्दा रखने भी है. हो सकता है कि वर्ल्ड कप में खिताबी दावेदार होने, सचिन तेंदुलकर के लिए कप जीतने, मीडिया और प्रशंसकों की उम्मीदों का दबाव टीम के लिए एक भंवर साबित हो.

लेकिन यह भी सच है कि इस भंवर से अगर कोई टीम को निकालने में कामयाब हुआ तो वो सचिन तेंदुलकर ही होंगे. क्योंकि दुनिया में दो तरह के बल्लेबाज हैं. एक सचिन तेंदुलकर और दूसरे बाकी सब.

रिपोर्टः सचिन गौड़

संपादनः ए जमाल

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