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शहरों के नाम बदलकर विफलता छुपा रही बीजेपी?

मुरली कृष्णन
१३ नवम्बर २०१८

भारतीय जनता पार्टी आलोचना के बावजूद एक के बाद एक शहरों के नाम बदल रही है. जानकारों का कहना है कि इससे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के तौर पर भारत की छवि को धक्का लगेगा.

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Indien Amtseid Yogi Adityanath, Staat Pradesh
तस्वीर: Reuters/P. Kumar

हाल ही में यूपी सरकार ने इलाहाबाद का नाम बदल कर प्रयागराज और फैजाबाद का नाम अयोध्या कर दिया. सरकार का कहना है कि पहले इन शहरों के यही ऐतिहासिक नाम थे, जिन्हें मुस्लिम शासकों ने बदल दिया था. फैजाबाद का नाम बदलकर अयोध्या करते समय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा, "अयोध्या हमारे सम्मान, गर्व और प्रतिष्ठा का प्रतीक है."

सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नाम नहीं बदले जा रहे हैं. बीजेपी शासित अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री भी इसी तरह शहरों, हवाई अड्डों और सड़कों के नाम बदल रहे हैं. गुजरात में भारतीय जनता पार्टी की सरकार अहमदाबाद का नाम बदलकर कर्णावती रखना चाहती है. वहीं तेलंगाना में भारतीय जनता पार्टी के एक विधायक राजा सिंह ने प्रस्ताव रखा कि राज्य की राजधानी हैदराबाद का नाम बदल कर भाग्यनगर कर दिया जाए.

बिहार में बीजेपी के एक विधायक गिरिराज किशोर ने बख्तियारपुर का नाम बदलने की मांग की है. ताज महल की नगरी आगरा का नाम भी बदलने की कोशिश हो रही है. उसके लिए अग्रवान और अग्रवाल जैसे नाम सुझाए जा रहे हैं. इसी तरह बीजेपी विधायक संगीत सोम मुजफ्फरनगर का नाम बदल कर लक्ष्मीनगर करना चाहते हैं.

मजेदार बात यह है कि सिर्फ उन्हीं शहरों के नाम बदले जा रहे हैं जिनके नाम कहीं ना कहीं मुस्लिम पृष्ठभूमि से जुड़े हैं. जानकारों का कहना है कि बीजेपी 2019 में होने वाले आम चुनाव से पहले शहरों के नाम बदलकर हिंदू मतदाताओं को लुभाना चाहती है.

प्रधानमंत्री मोदी के आलोचकों का कहना है कि दुनिया भर में शहरों के नाम बदलने का चलन रहा है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी राजनीतिक स्वार्थों को साधने के लिए नाम बदल रही है. उनका कहना है कि बीजेपी भारत का 'हिंदूकरण' करना चाहती है.

समाजशास्त्री संजय श्रीवास्तव ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "यह भारत की बहुलतावादी पहचान को नुकसान पहुंचाने की सोची समझी कोशिश है. भारतीय जनता पार्टी 2019 के आम चुनावों से पहले रुढ़िवादी हिंदू वोटरों का तुष्टीकरण कर रही है. लेकिन इससे बहुत खतरनाक संदेश दिए जा रहे हैं." दूसरी तरफ, अर्थशास्त्री प्रतीक्षित घोष कहते हैं कि बीजेपी बीते चार साल के दौरान अपनी सरकार की नाकामियों से लोगों का ध्यान हटाने के लिए शहरों के नाम बदल रही है.

राजनीतिक गलियारों में भी शहरों के नाम बदलने का विरोध हो रहा है. बीजेपी के विरोधियों का कहना है कि इससे देश में सामाजिक और राजनीतिक तनाव बढ़ेगा. लोकतांत्रिक जनता दल के नेता शरद यादव कहते हैं, "बीजेपी की मुहिम देश के बहुसंस्कृति वाद के लिए एक चुनौती है. अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद से यही बहुसंस्कृतिवाद हमारे राजनीतिक और सामाजिक ताने बाने की पहचान रही है. पार्टी उन शहरों के नाम बदल रही है जिनके मुस्लिम नाम रहे हैं."

इससे पहले भी भारत में कई शहरों के नाम बदले जाते रहे हैं. इनमें बॉम्बे से मुंबई, मद्रास से चेन्नई और कलकत्ता से कोलकाता होने जैसी प्रमुख मिसालें शामिल हैं. समाजशास्त्री संजय श्रीवास्तव कहते हैं, "पिछले 50 सालों में कम से कम 100 शहरों और कस्बों के नाम बदले गए हैं. लेकिन अब ऐसा सिर्फ धार्मिक बुनियाद पर हो रहा है."

वहीं हिंदू राष्ट्रवादी नहीं मानते कि उनकी नीतियां समाज को बांट रही हैं. पेशे से वकील और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य राघव अवस्थी कहते हैं, "हमारा राष्ट्रवाद अपनी प्यारी मातृभूमि की एकता और अखंडता के बारे में है. यह लोगों को भारत की महान परंपराओं और सांस्कृतिक विरासत के बारे में जागरूक बनाने के बारे में है. हमारा उद्देश्य सांस्कृतिक एकता है." लेकिन यह भी सच है कि 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा के मामले बढ़े हैं. खासकर तथाकथिक गौरक्षकों ने कई मुसलमानों को पीट पीट कर मार डाला.

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