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फिलीपींस में मई में चुनाव खत्म हुए, नया राष्ट्रपति चुना गया. देश को नई सरकार के साथ-साथ टनों ढेर कचरा भी मिला, उन कागजों और पोस्टरों के रूप में जो प्रचार के दौरान इस्तेमाल किए गए थे. क्या हुआ उसका?
चुनाव में कई बड़े नेताओं को हार मिली है. इनमें पांच बार पंजाब के सीएम रहे प्रकाश सिंह बादल और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी शामिल हैं. देखिए इस बार के चुनाव में हार का मुंह देखे वाले कुछ बड़े नाम.
उत्तर प्रदेश चुनाव में बस एक और चरण का मतदान बचा है. करोड़ों लोग पहले ही अपने वोट डाल चुके हैं. 10 मार्च को जनादेश आएगा, लेकिन सरकारी नौकरियों की तैयारी करने वाले युवा मौजूदा सरकार से खफा दिखते हैं.
बरसों से नौकरी की तैयारी कर रहे युवाओं से जब चुनावी मुद्दों की बात करें तो कुछ का गला रूंध जाता है. हमारी साथी निमिषा जायसवाल ने प्रयागराज में कुछ युवाओं से बात की और उनके हालात जानने की कोशिश की.
ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री चर्चिल ने कभी कहा था कि भारत लोकतंत्र के लिए परिपक्व ही नहीं है? प्रयागराज में संगम पर जब हमारे साथी समीरात्मज मिश्र ने कुछ प्रबुद्ध लोगों से चुनावी चर्चा की, तो यही बात छिड़ गई. आखिर क्यों?
पंजाब के मालवा इलाके को "कैंसर बेल्ट" के रूप में भी जाना जाता है. राज्य के 16 मुख्यमंत्रियों में से 15 इसी इलाके से रहे हैं, लेकिन फिर भी यहां कैंसर घर घर में व्याप्त है. क्या इन चुनावों में कैंसर की समस्या की बात हो रही है? जानिए बठिंडा के चट्ठेवाला गांव से इस ग्राउंड रिपोर्ट में.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के चुनावी माहौल में कैराना कस्बे से हिंदुओं के कथित पलायन की गूंज फिर सियासी बयानबाजी में सुनाई पड़ रही है. क्या वहां वाकई ऐसा हुआ था? और अब वहां हवा का रुख किस तरफ है, चलिए जानते हैं.
भारत के आम बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने टैक्स दरों में कोई बदलाव नहीं किया है. आम लोगों के लिए वित्त मंत्री के पिटारे से क्या-क्या निकला, जानते हैं.
भारत के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश में पिछले 15 सालों से मुख्यमंत्री विधान सभा की जगह विधान परिषद के सदस्य रहे हैं. एक नजर बिना सीधा चुनाव लड़े सत्ता पाने वाले नेताओं पर.
भारतीय चुनाव आयोग ने पांच राज्यों में चुनावों की तिथि का ऐलान कर दिया है. जानिए कैसे होंगे उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में चुनाव. पांचों राज्यों के नतीजे 10 मार्च को आएंगे.
चुनावों के तीन महीनों बाद आखिरकार जर्मनी को एक नई सरकार मिल गई है. आइए आपको अंगेला मैर्केल के युग के अंत के बाद की पहली जर्मन सरकार के मुख्य चेहरों से मिलवाते हैं.
अफ्रीकी देशों में सैन्य तख्तापलट की घटनाएं बढ़ रही हैं. इसी साल सूडान में दो बार तख्तापलट की कोशिश हुई, एक बार वह विफल हो गया लेकिन दूसरी बार जनरल आब्देल-फतह बुरहान इसमें कामयाब हुए.
जर्मनी में आम चुनावों के नतीजों में लगभग 26 प्रतिशत वोटों के साथ एसपीडी सबसे आगे चल रही है जबकि चांसलर मैर्केल की सीडीयू-सीएसयू पार्टी 24 प्रतिशत वोटों के साथ दूसरे नंबर पर है. ग्रीन पार्टी की उम्मीदें भी पूरी नहीं हुई. छोटी पार्टियों के पास सत्ता की चाबी हो सकती है.
जर्मनी में नई सरकार बनाने के लिए संसद में 50 प्रतिशत से एक सीट ज्यादा यानि स्पष्ट बहुमत चाहिए, लेकिन किसी पार्टी को अकेले दम पर इतना समर्थन नहीं मिलता.
कई सालों तक वोट डालने के हक से महरूम रखे जाने के बाद आखिरकार 2021 के जर्मन आम चुनाव में वे वयस्क भी पहली बार वोट डाल पाएंगे जो लर्निंग डिसएबिलिटी के शिकार हैं या किसी और की कानूनी गार्डियनशिप में हैं. उनके लिए इसके क्या मायने हैं, उन्हीं से जानिए.
जर्मनी में नई सरकार चुनने के लिए 26 सितंबर को वोट डाले जाएंगे. जर्मनी में रहने वाले भारतीय और भारतीय मूल के लोगों को नई सरकार से कैसी उम्मीदें हैं, उन्हीं से जानिए.
जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल की पार्टी ने इस बार आर्मिन लाशेट को चुनाव में उम्मीदवार बनाया है. वो लंबे समय से मैर्केल के सहयोगी रहे हैं लेकिन क्या उनमें वो काबिलियत है कि मैर्केल की जगह ले सकें.
जर्मनी के राजनीतिक दलों को पैसा कहां मिलता है? उससे भी बड़ा सवाल है कि सरकार एनपीडी जैसी नव नाजी पार्टी को पैसा क्यों देती है? देखिए जर्मनी का पार्टी फाइनेंसिंग सिस्टम और इसकी कमियां.
दुनिया भर के कई देशों में चुनावों को प्रभावित करने की भरपूर कोशिशें हो रही हैं. फिर बात चाहे, जर्मनी की हो या अमेरिका या फिर भारत की. जानिए कैसे मतदाताओं को प्रभावित किया जाता है.
जर्मनी के चुनाव में चांसलर पद की दौड़ में एसपीडी के ओलाफ शॉल्त्स फिलहाल सबसे आगे चल रहे हैं. कुछ हफ्ते पहले तक इस पार्टी की उम्मीदें बहुत कमजोर थीं लेकिन शॉल्त्स के उम्मीदवार बनते ही सब कुछ बदल गया है.